श्रीहनुमानजीद्वारा भगवान श्रीराम और सीताका स्तवन sita ram stavan stotra sanskrit in hindi
गुरुवार, 14 मई 2020
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श्रीहनुमानजीद्वारा भगवान श्रीराम और सीताका स्तवन
sita ram stavan stotra sanskrit in hindi
इस स्तोत्रके प्रतिदिन-
आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसम्पदाम् ।
लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम् ॥'
-सम्पुटसहित श्रद्धा-भक्तियुक्त पाठ और अनुष्ठानसे पापतापनाश और मनोवाञ्छित सर्वार्थसिद्धि होती है।
नमो रामाय हरये विष्णवे प्रभविष्णवे ।
आदिदेवाय देवाय पुराणाय गदाभृते ॥
विष्टरे पुष्पके नित्यं निविष्टाय महात्मने ।
प्रहृष्टवानरानीकजुष्टपादाम्बुजायते ॥
निष्पिष्टराक्षसेन्द्राय जगदिष्टविधायिने ।
नमः सहस्रशिरसे सहस्रचरणाय च ॥
सहस्राक्षाय शुद्धाय राघवाय च विष्णवे ।
भकार्तिहारिणे तुभ्यं सीतायाः पतये नमः ॥
हरये नारसिंहाय दैत्यराजविदारिणे ।
नमस्तुभ्यं वराहाय दंष्ट्रोद्धतवसुन्धर ॥
त्रिविक्रमाय भवते बलियशविभेदिने ।
नमो वामनरूपाय नमो मन्दरधारिणे ॥
नमस्ते मत्स्यरूपाय त्रयीपालनकारिणे ।
नमः परशुरामाय क्षत्रियान्तकराय ते ॥
नमस्ते राक्षसघ्नाय नमो राघवरूपिणे ।
महादेवमहाभीममहाकोदण्डभेदिने ॥
क्षत्रियान्तकरक्रूरभार्गवत्रासकारिणे ।
नमोऽस्त्वहल्यासंतापहारिणे चापहारिणे ॥
नागायुतबलोपेतताटकादेहहारिणे ।
शिलाकठिन विस्तारवालिवक्षोविभेदिने ॥
नमो मायामृगोन्माथकारिणेऽशानहारिणे ।
दशस्यन्दनदुःखाब्धियोषणागस्त्यरूपिणे ॥
अनेकोर्मिसमाधूतसमुद्रमदहारिणे ।
मैथिलीमानसाम्भोजभानवे लोकसाक्षिणे ॥
राजेन्द्राय नमस्तुभ्यं जानकीपतये हरे ।
तारकब्रह्मणे तुभ्यं नमो राजीवलोचन ॥
रामाय रामचन्द्राय वरेण्याय सुखात्मने ।
विश्वामित्रप्रियायेदं नमः खरविदारिणे ॥
प्रसीद देवदेवेश भक्तानामभयप्रद ।
रक्ष मां करुणासिन्धो रामचन्द्र नमोऽस्तु ते ॥
रक्ष मां वेदवचसामप्यगोचर राघव ।
पाहि मां कृपया राम शरणं त्वामुपैम्यहम् ॥
रघुवीर महामोहमपाकुरु ममाधुना ।
स्नाने चाचमने भुक्तौ जाग्रत्स्वप्नसुषुप्तिषु ॥
सर्वावस्थासु सर्वत्र पाहि मां रघुनन्दन ।
महिमानं तव स्तोतुं कः समर्थो जगत्त्रये ॥
त्वमेव त्वन्महत्त्वं वै जानासि रघुनन्दन ।
इति स्तुत्वा वायुपुत्रो रामचन्द्रं करुणानिधिम् ॥
श्रीहनुमानजीद्वारा भगवान श्रीराम और सीताका स्तवन
sita ram stavan stotra sanskrit in hindi
(श्रीजानकीजीका स्तवन)
जानकि त्वां नमस्यामि सर्वपापप्रणाशिनीम् ॥
दारिद्रयरणसंही भक्तानामिष्टदायिनीम् ।
विदेहराजतनयां राघवानन्दकारिणीम् ॥
भूमे हितरं विद्यां नमामि प्रकृति शिवाम् ।
पौलस्त्यैश्वर्यसंही भक्ताभीष्टां सरस्वतीम् ॥
पतिव्रताधुरीणां त्वां नमामि जनकात्मजाम् ।
अनुग्रहपरामृद्धिमनघां हरिवल्लभाम् ॥
आत्मविद्यां त्रयीरूपामुमारूपां नमाम्यहम् ।
प्रसादाभिमुखी लक्ष्मी क्षीराब्धितनयां शुभाम् ॥
नमामि चन्द्रभगिनी सीतां सर्वाङ्गसुन्दरीम् ।
नमामि धर्मनिलयां करुणां वेदमातरम् ॥
पद्मालयां पद्महस्तां विष्णुवक्षःस्थलालयाम् ।
नमामि चन्द्रनिलयां सीतां चन्द्रनिभाननाम् ॥
आह्लादरूपिणी सिद्धि शिवां शिवकरी सतीम् ।
नमामि विश्वजननी रामचन्द्रष्टवल्लभाम् ॥
सीतां सर्वानवद्याङ्गी भजामि सततं हृदा।
श्रीसूत उवाच स्तुत्वैवं हनुमान् सीतारामचन्द्रौ सभक्तिकम् ॥
आनन्दाशुपरिक्लिन्नस्तूष्णीमास्ते द्विजोत्तमाः।
य इदं वायुपुत्रेण कथितं पापनाशनम् ॥
स्तोत्रं श्रीरामचन्द्रस्य सीतायाः पठतेऽन्वहम् ।
स नरो महदैश्वर्यमश्नुते वाञ्छितं सदा ॥
अनेकक्षेत्रधान्यानि गाश्च दोग्ध्रीः पयस्विनीः ।
आयुविद्याश्च पुत्रांश्च भार्यामपि मनोरमाम् ॥
एतत् स्तोत्रं सद्विप्राः पठन्नाप्नोत्यसंशयः ।
एतत्स्तोत्रस्य पाठेन नरकं नैव यास्यति ॥
ब्रह्महत्यादिपापानि नश्यन्ति सुमहान्त्यपि ।
सर्वपापविनिर्मुक्तो देहान्ते मुक्तिमाप्नुयात् ॥
( स्कन्द ० ब्रह्म० सेतु० ४६ । ३१-६३)
श्रीहनुमानजीद्वारा भगवान श्रीराम और सीताका स्तवन
sita ram stavan stotra sanskrit in hindi
श्रीहनुमानजीने कहा-सबकी उत्पत्तिके आदिकारण सर्वव्यापी श्रीहरिस्वरूप श्रीरामचन्द्रजीको नमस्कार है।
आदिदेव पुराणपुरुष भगवान् गदाधरको नमस्कार है। पुष्पकके आसनपर नित्य विराजमान महात्मा श्रीरघुनाथजीको नमस्कार है। प्रभो ! हर्षमें भरे हुए वानरोंका समुदाय आपके युगल चरणा रविन्दोंकी सेवा करता है, आपको नमस्कार है।
आदिदेव पुराणपुरुष भगवान् गदाधरको नमस्कार है। पुष्पकके आसनपर नित्य विराजमान महात्मा श्रीरघुनाथजीको नमस्कार है। प्रभो ! हर्षमें भरे हुए वानरोंका समुदाय आपके युगल चरणा रविन्दोंकी सेवा करता है, आपको नमस्कार है।
राक्षसराज रावणको पीस डालनेवाले तथा सम्पूर्ण जगत्का अभीष्ट सिद्ध करनेवाले श्रीरामचन्द्रजीको नमस्कार है। आपके सहस्रो मस्तक एवं सहस्रो चरण हैं। आपके सहस्रों नेत्र हैं, आप विशुद्ध विष्णुस्वरूप राघवेन्द्रको नमस्कार है ।
आप भक्तोंकी पीड़ा दूर करनेवाले तथा सीताके प्राणवल्लभ है, आपको नमस्कार है। दैत्यराज हिरण्यकशिपुके वक्षःस्थलको विदीर्ण करनेवाले आप नृसिंहरूपधारी भगवान् विष्णुको नमस्कार है । अपनी दाढ़ोंपर पृथ्वीको उठानेवाले भगवान् वराहरूप आपको नमस्कार है।
बलिके यज्ञको भंग करनेवाले आप भगवान् त्रिविक्रमको नमस्कार है। वामनरूपधारी भगवान्को नमस्कार है । अपनी पीठपर महान् मन्दराचल धारण करनेवाले भगवान् कच्छपको नमस्कार है ।
तीनों वेदोंकी रक्षा करनेवाले मत्स्यरूपधारी भगवान्को नमस्कार है। क्षत्रियोंका अन्त करनेवाले परशुरामरूपी आपको नमस्कार है। राक्षसोंका नाश करनेवाले आपको नमस्कार है ।
राघवेन्द्रका रूप धारण करनेवाले आपको नमस्कार है। महादेवजीके महान् भयङ्कर महाधनुषको भंग करनेवाले आपको नमस्कार है। क्षत्रियोंका अन्त करनेवाले क्रूर परशुरामको भी त्रास देनेवाले आपको नमस्कार है। भगवन् ! आप अहल्याके संताप और महादेवजीके चापको खण्ड-खण्ड कर देनेवाले हैं, आपको नमस्कार है । दस हजार हाथियोंका बल रखनेवाली ताड़काके शरीरका अन्त करनेवाले आपको नमस्कार है।
पत्थरके समान कठोर और चौड़ी छातीको छेद डालनेवाले आपको नमस्कार है । आप मायामृगका नाश करनेवाले तथा अज्ञानको हर लेनेवाले हैं, आपको नमस्कार है। दशरथजीके दुःखरूपी समुद्रको सोख लेनेके लिये आप मूर्तिमान् अगस्त्य हैं, आपको नमस्कार है । अनन्त उत्ताल तरङ्गोंसे उद्वेलित समुद्रका भी दर्प-दलन करनेवाले आपको नमस्कार है । मिथिलेशनन्दिनी सीताके हृदयकमलको विकसित करनेवाले सूर्यरूप आप लोकसाक्षीको नमस्कार है ।
हरे ! आप राजाओंके भी राजा और जानकीजीके प्राणवल्लभ हैं, आपको नमस्कार है । कमलनयन ! आप ही तारक ब्रह्म हैं, आपको नमस्कार है। आप ही योगियोंके मनको रमानेवाले 'राम' हैं। राम होते हुए चन्द्रमाके समान आह्वाद प्रदान करनेके कारण 'रामचन्द्र' हैं।
सबसे श्रेष्ठ और सुखस्वरूप हैं। आप विश्वामित्रके प्रिय तथा खर नामक राक्षसका हृदय विदीर्ण करनेवाले हैं, आपको नमस्कार है। भक्तोंको अभयदान देनेवाले देवदेवेश्वर ! प्रसन्न होइये। करुणासिन्धु श्रीरामचन्द्र ! आपको नमस्कार है, मेरी रक्षा कीजिये । वेदवाणीके भी अगोचर राघवेन्द्र ! मेरी रक्षा कीजिये । श्रीराम ! कृपा करके मुझे उबारिये ! मैं आपकी शरण आया हूँ ।
रघुवीर ! मेरे महान् मोहको इसी समय दूर कीजिये । रघुनन्दन ! स्नान, आचमन, भोजन, जाग्रत्, स्वप्न, सुषुप्ति आदि सभी क्रियाओं और सभी अवस्थाओंमें आप मेरी रक्षा कीजिये ।
तीनों लोकोंमें कौन ऐसा पुरुष है, जो भार महिमाका बखान करने में समर्थ हो। रघुकुलको आन करनेवाले श्रीराम ! आप ही अपनी महिमाको जानते हैं।
बलिके यज्ञको भंग करनेवाले आप भगवान् त्रिविक्रमको नमस्कार है। वामनरूपधारी भगवान्को नमस्कार है । अपनी पीठपर महान् मन्दराचल धारण करनेवाले भगवान् कच्छपको नमस्कार है ।
तीनों वेदोंकी रक्षा करनेवाले मत्स्यरूपधारी भगवान्को नमस्कार है। क्षत्रियोंका अन्त करनेवाले परशुरामरूपी आपको नमस्कार है। राक्षसोंका नाश करनेवाले आपको नमस्कार है ।
राघवेन्द्रका रूप धारण करनेवाले आपको नमस्कार है। महादेवजीके महान् भयङ्कर महाधनुषको भंग करनेवाले आपको नमस्कार है। क्षत्रियोंका अन्त करनेवाले क्रूर परशुरामको भी त्रास देनेवाले आपको नमस्कार है। भगवन् ! आप अहल्याके संताप और महादेवजीके चापको खण्ड-खण्ड कर देनेवाले हैं, आपको नमस्कार है । दस हजार हाथियोंका बल रखनेवाली ताड़काके शरीरका अन्त करनेवाले आपको नमस्कार है।
पत्थरके समान कठोर और चौड़ी छातीको छेद डालनेवाले आपको नमस्कार है । आप मायामृगका नाश करनेवाले तथा अज्ञानको हर लेनेवाले हैं, आपको नमस्कार है। दशरथजीके दुःखरूपी समुद्रको सोख लेनेके लिये आप मूर्तिमान् अगस्त्य हैं, आपको नमस्कार है । अनन्त उत्ताल तरङ्गोंसे उद्वेलित समुद्रका भी दर्प-दलन करनेवाले आपको नमस्कार है । मिथिलेशनन्दिनी सीताके हृदयकमलको विकसित करनेवाले सूर्यरूप आप लोकसाक्षीको नमस्कार है ।
हरे ! आप राजाओंके भी राजा और जानकीजीके प्राणवल्लभ हैं, आपको नमस्कार है । कमलनयन ! आप ही तारक ब्रह्म हैं, आपको नमस्कार है। आप ही योगियोंके मनको रमानेवाले 'राम' हैं। राम होते हुए चन्द्रमाके समान आह्वाद प्रदान करनेके कारण 'रामचन्द्र' हैं।
सबसे श्रेष्ठ और सुखस्वरूप हैं। आप विश्वामित्रके प्रिय तथा खर नामक राक्षसका हृदय विदीर्ण करनेवाले हैं, आपको नमस्कार है। भक्तोंको अभयदान देनेवाले देवदेवेश्वर ! प्रसन्न होइये। करुणासिन्धु श्रीरामचन्द्र ! आपको नमस्कार है, मेरी रक्षा कीजिये । वेदवाणीके भी अगोचर राघवेन्द्र ! मेरी रक्षा कीजिये । श्रीराम ! कृपा करके मुझे उबारिये ! मैं आपकी शरण आया हूँ ।
रघुवीर ! मेरे महान् मोहको इसी समय दूर कीजिये । रघुनन्दन ! स्नान, आचमन, भोजन, जाग्रत्, स्वप्न, सुषुप्ति आदि सभी क्रियाओं और सभी अवस्थाओंमें आप मेरी रक्षा कीजिये ।
तीनों लोकोंमें कौन ऐसा पुरुष है, जो भार महिमाका बखान करने में समर्थ हो। रघुकुलको आन करनेवाले श्रीराम ! आप ही अपनी महिमाको जानते हैं।
श्रीहनुमानजीद्वारा भगवान श्रीराम और सीताका स्तवन
sita ram stavan stotra sanskrit in hindi
जनकनन्दिनी ! आपको नमस्कार करता हूँ। सब पापोंका नाश तथा दारिद्रयका संहार करनेवाली हैं। भक्तोंको अभीष्ट वस्तु देनेवाली भी आप ही हैं। राघवेन्ट श्रीरामको आनन्द प्रदान करनेवाली विदेहराज जनककी लाड़ली श्रीकिशोरीजीको मैं प्रणाम करता हूँ।
आप पृथ्वीको कन्या और विद्या (ज्ञान) स्वरूपा हैं, कल्याणमयी प्रकृति भी आप ही हैं। रावणके ऐश्वर्यका संहार तथा भक्तोंके अभीष्टका दान करनेवाली सरस्वतीरूपा भगवती सीताको मैं नमस्कार करता हूँ।
पतिव्रताओंमें अग्रगण्य आप श्रीजनकदुलारीको मैं प्रणाम करता हूँ। आप सबपर अनुग्रह करनेवाली समृद्धि, पापरहित और विष्णुप्रिया लक्ष्मी हैं। आप ही आत्मविद्या, वेदत्रयी तथा पार्वतीस्वरूपा हैं। मैं आपको नमस्कार करता हूँ।
आप ही क्षीरसागरकी कन्या महालक्ष्मी हैं, जो भक्तोंपर कृपाका प्रसाद करनेके लिये सदा उत्सुक रहती हैं। चन्द्रमाकी भगिनी (लक्ष्मीस्वरूपा) सर्वाङ्गसुन्दरी सीताको मैं प्रणाम करता हूँ।
धर्मकी आश्रयभूता करुणामयी वेदमाता गायत्रीस्वरूपिणी श्रीजानकीको मैं नमस्कार करता हूँ। आपका कमलमें निवास है, आप ही हायमें कमल धारण करनेवाली तथा भगवान् विष्णुके वक्षःस्थलमें निवास करनेवाली लक्ष्मी हैं, चन्द्रमण्डलमें भी आपका निवास है, आप चन्द्रमुखी सीतादेवीको मैं नमस्कार करता हूँ।
आप श्रीरघुनन्दनकी आह्नादमयी शक्ति हैं, कल्याणमयी सिद्धि हैं और भगवान् शिवकी अर्धाङ्गिनी कल्याणकारिणी सती हैं।
श्रीरामचन्द्रजीकी परम प्रियतमा जगदम्बा जानकीको मैं प्रणाम करता हूँ। सर्वाङ्गसुन्दरी सीताजीका मैं अपने हृदयमें निरन्तर चिन्तन करता हूँ।
आप पृथ्वीको कन्या और विद्या (ज्ञान) स्वरूपा हैं, कल्याणमयी प्रकृति भी आप ही हैं। रावणके ऐश्वर्यका संहार तथा भक्तोंके अभीष्टका दान करनेवाली सरस्वतीरूपा भगवती सीताको मैं नमस्कार करता हूँ।
पतिव्रताओंमें अग्रगण्य आप श्रीजनकदुलारीको मैं प्रणाम करता हूँ। आप सबपर अनुग्रह करनेवाली समृद्धि, पापरहित और विष्णुप्रिया लक्ष्मी हैं। आप ही आत्मविद्या, वेदत्रयी तथा पार्वतीस्वरूपा हैं। मैं आपको नमस्कार करता हूँ।
आप ही क्षीरसागरकी कन्या महालक्ष्मी हैं, जो भक्तोंपर कृपाका प्रसाद करनेके लिये सदा उत्सुक रहती हैं। चन्द्रमाकी भगिनी (लक्ष्मीस्वरूपा) सर्वाङ्गसुन्दरी सीताको मैं प्रणाम करता हूँ।
धर्मकी आश्रयभूता करुणामयी वेदमाता गायत्रीस्वरूपिणी श्रीजानकीको मैं नमस्कार करता हूँ। आपका कमलमें निवास है, आप ही हायमें कमल धारण करनेवाली तथा भगवान् विष्णुके वक्षःस्थलमें निवास करनेवाली लक्ष्मी हैं, चन्द्रमण्डलमें भी आपका निवास है, आप चन्द्रमुखी सीतादेवीको मैं नमस्कार करता हूँ।
आप श्रीरघुनन्दनकी आह्नादमयी शक्ति हैं, कल्याणमयी सिद्धि हैं और भगवान् शिवकी अर्धाङ्गिनी कल्याणकारिणी सती हैं।
श्रीरामचन्द्रजीकी परम प्रियतमा जगदम्बा जानकीको मैं प्रणाम करता हूँ। सर्वाङ्गसुन्दरी सीताजीका मैं अपने हृदयमें निरन्तर चिन्तन करता हूँ।
श्रीसूतजी कहते हैं-द्विजवरो ! इस प्रकार हनुमान्जी भक्तिपूर्वक श्रीसीताजी और श्रीरामचन्द्रजीकी स्तुति करके आनन्दके आँसू बहाते हुए मौन हो गये।
जो वायुपुत्र हनुमान्जीद्वारा वर्णित श्रीराम और सीताके इस पापनाशक स्तोत्रका प्रतिदिन पाठ करता है, वह सदा मनोवाञ्छित महान् ऐश्वर्यका उपभोग करता है ।
इस स्तोत्र का एक बार भी पाठ करनेवाला मनुष्य अनेक क्षेत्र, धान्य, दूध देनेवाली गौएँ, आयु, विद्याएँ, मनोरमा भार्या तथा श्रेष्ठ पुत्र इन सब वस्तुओं को निसंदेह प्राप्त कर लेता है |
इसके पाठ से मनुष्य नर्क में नहीं पड़ता उसके ब्रह्महत्यादि बड़े-बड़े पाप नष्ट हो जाते हैं, वह सब पापों से मुक्त हो देहावसान होने पर मोक्ष को पा लेता है |
इस स्तोत्र का एक बार भी पाठ करनेवाला मनुष्य अनेक क्षेत्र, धान्य, दूध देनेवाली गौएँ, आयु, विद्याएँ, मनोरमा भार्या तथा श्रेष्ठ पुत्र इन सब वस्तुओं को निसंदेह प्राप्त कर लेता है |
इसके पाठ से मनुष्य नर्क में नहीं पड़ता उसके ब्रह्महत्यादि बड़े-बड़े पाप नष्ट हो जाते हैं, वह सब पापों से मुक्त हो देहावसान होने पर मोक्ष को पा लेता है |
श्रीहनुमानजीद्वारा भगवान श्रीराम और सीताका स्तवन
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