स्वर्ग कौन जाते हैं स्वर्ग जाने का रास्ता Who goes to heaven? Way to Heaven

स्वर्ग में कौन जाते हैं ?

स्वर्ग कौन जाते हैं स्वर्ग जाने का रास्ता Who goes to heaven?  Way to Heaven

स्वर्ग कौन जाते हैं स्वर्ग जाने का रास्ता
Who goes to heaven?  Way to Heaven
( पद्म पुराण पाताल खंड-९२,१०-२३ )
जो सब पापों को हरने वाले, दिव्य स्वरुप ,व्यापक, बिजई ,सनातन ,अजन्मा, चतुर्भुज ,विष्णुरूप, दिव्य पुरुष श्री नारायण देव का पूजन ,ध्यान और स्मरण करते हैं, वे श्रीहरि के परमधाम को प्राप्त होते हैं | यह सनातन श्रुति है |

भगवान दामोदर के गुणों का कीर्तन ही मंगलमय है, वही धन का उपार्जन है तथा वही इस जीवन का फल है | अमित तेजस्वी देवाधिदेव श्री विष्णु के कीर्तन से सब पाप उसी प्रकार नष्ट हो जाते हैं ,जैसे दिन निकलने पर अंधकार | जो प्रतिदिन श्रद्धा पूर्वक भगवान श्री विष्णु की यशोगाथा का गान करते हैं और सदा स्वाध्याय में लगे रहते हैं वह मनुष्य स्वर्गगामी होते हैं |

विप्रवर , भगवान वासुदेव के नाम जप में लगे हुए मनुष्य पहले के पापी रहे हों तो भी भयानक यमदूत उनके पास नहीं फटकने पाते | द्विजश्रेष्ठ ! हरि कीर्तन को छोड़कर दूसरा कोई ऐसा साधन मैं नहीं देखता जो जीवो के संपूर्ण पापों का नाश करने वाला प्रायश्चित हो |
 स्वर्ग में कैसे जाते हैं |
स्वर्ग कौन जाते हैं स्वर्ग जाने का रास्ता
Who goes to heaven?  Way to Heaven
जो मांगने पर प्रसन्न होते हैं, देखकर प्रिय वचन बोलते हैं तथा जिन्होंने दान के फल का परित्याग कर दिया है, वे मनुष्य स्वर्ग जाते हैं | जो दिन में सोना छोड़ देते हैं, सब कुछ सहन करते हैं, पर्व के अवसर पर लोगों को आश्रय देते हैं, वे मनुष्य स्वर्ग में जाते हैं |

जो अपने से द्वेष रखने वालों के प्रति भी कभी द्वेष अहितकारक वचन नहीं निकालते ,अपितु सभी के गुणों का ही बखान करते हैं ,वे मनुष्य स्वर्ग में जाते हैं | जो पराई स्त्री की ओर से उदासीन होते हैं और सतोगुण में स्थित होकर मन ,वाणी अथवा क्रिया के द्वारा कभी उनमें रमण नहीं करते, वे मनुष्य स्वर्गगामी होते हैं |
स्वर्ग में कैसे जाते हैं |
स्वर्ग कौन जाते हैं स्वर्ग जाने का रास्ता
Who goes to heaven?  Way to Heaven
जब किसी कुल में उत्पन्न होकर भी जो दयालु, यशस्वी कृपा पूर्वक उपकार करने वाले और सदाचारी होते हैं, वे मनुष्य स्वर्ग में जाते हैं | जो व्रत को क्रोध से ,लक्ष्मी को डाह से , विद्या को मान और अपमान से, आत्मा को प्रमाद से, बुद्धि को लोभ से , मन को काम से तथा धर्म को कुसंग से बचाए रखते हैं , वे मनुष्य स्वर्गगामी होते हैं |
पद्म पुराण पाताल खंड-९२,५८ 
दरिद्र का दान, सामर्थ साली की क्षमा, नौजवानों की तपस्या, ज्ञानियों का मौन, सुख भोगने के योग्य पुरुषों की सूखेच्छा निवृत्ति तथा संपूर्ण प्राणियों पर दया-- ये सद्गुण स्वर्ग में ले जाते हैं |
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 जानें ? नाम के दस अपराध ¡

नारद पुराण ८२,२२-२४ 
 गुरू का अपमान ,साधु महात्माओं की निंदा, भगवान शिव और विष्णु में भेद, वेद निंदा , भगवान नाम के बल पर पाप करना ,भगवान नाम की महिमा को अर्थवाद समझना, नाम लेने में पाखंड फैलाना ,आलसी और नास्तिक को भगवान नाम का उपदेश करना ,भगवान नाम को भूल जाना तथा नाम में अनादर बुद्धि करना, यह दस भयानक दोष हैं, उनको दूर से ही त्याग देना चाहिए |

नारद पुराण ६१,२ 
शोक के  सहस्त्रों और भय के सैकड़ों स्थान हैं | वे प्रतिदिन मूढ़ मनुष्य पर ही अपना प्रभाव डालते हैं , विद्वान पुरुष पर नहीं |
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जानें ? ब्रह्म के बारे में |

केनोपनिषद १,५ 
जिसको कोई भी मन से----   अंतःकरण के द्वारा नहीं समझ सकता ,जिससे मन मनुष्य का जाना हुआ हो जाता है--- यों कहते हैं, उसको ही तू ब्रह्म जान | मन और बुद्धि के द्वारा जानने में आने वाले जिस तत्व की लोग उपासना करते हैं, वह यह ब्रम्ह नहीं है |


केनोपनिषद १,६
जिसको कोई भी चक्षु के द्वारा नहीं देख सकता , बल्कि जिससे मनुष्य नेत्र और उसकी वृत्तियों को देखता है , उसको ही तू ब्रह्म जान | चक्षु के द्वारा देखने में आने वाले जिस दृश्य वर्ग की लोग उपासना करते हैं, यह ब्रह्म नहीं है |


केनोपनिषद २,२
मैं ब्रम्ह को भली भांति जान गया हूं, यों नहीं मानता और न ऐसा ही मानता हूं , कि नहीं जानता | क्योंकि जानता भी हूं | किंतु यह जानना विलक्षण है | हम में से जो कोई भी उस ब्रह्म को जानता है , वही मेरे उक्त वचन के अभिप्राय को भी जानता है | कि मैं जानता हूं और नहीं जानता यह दोनों ही नहीं हैं |


केनोपनिषद १,३
जिसका यह मानना है कि ब्रह्म जानने में नहीं आता उसका तो वह जाना हुआ है और जिसका यह मानना है कि ब्रह्म मेरा जाना हुआ है , वह नहीं जानता , क्योंकि जानने का अभिमान रखने वालों के लिए वह ब्रम्ह तत्व जाना हुआ नहीं है | और जिनमें ज्ञातापन का अभिमान नहीं है ,उनका वह ब्रम्ह तत्व जाना हुआ है अर्थात उनके लिए वह अपरोक्ष है |
 
केनोपनिषद १,५ 
यदि इस मनुष्य शरीर में परम ब्रह्म को जान लिया तो बहुत कुशल है | यदि इस शरीर के रहते उसे नहीं जान पाया तो महाविनाश हैव| यही सोचकर बुद्धिमान प्राणी-प्राणी मे ( प्राणी मात्र में ) परमात्मा को समझकर  इस लोक से प्रयाण करके अमृत ( ब्रम्हरूप ) हो जाते हैं |

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