संतो के अनमोल वचन Good things Sermons of saints

वैराग्य को धारण करने वाले सूत्र 
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जवानी में मौज करना और बुढ़ापा आने पर माला लेकर भगवान को भजना ,आम खाकर गुठली का दान करने जैसा है , अतः जवानी से ही प्रभु की भक्ति करनी चाहिए |

धनी मनुष्य के आमने सामने बैठने से तो, साधु पुरुष के आगे बैठना अच्छा है | 
भक्तजन तो भगवान के स्मरण कीर्तन को ही अपनी आजीविका समझते हैं |                        
बबूल के पेड़ के नीचे बैठने से कांटा लगता ही है, वैसे ही दुष्ट जनों की संगति से दुख होना सुनिश्चित हि है |
जिस प्रकार सर्प के एक ही जहरीले दंश से मनुष्य मर जाता है , उसी प्रकार नरक में जाने के लिए एक ही पाप काफी है 
जैसे टूटे हुए नगाड़े की आवाज अच्छी नहीं होती वैसे ही अनीति मान गुरु का बोध भी भक्तों पर असर नहीं करता |
फल वाली डाल जैसे झुकी रहती है , वैसे ही गुणवान पुरुष विनम्र बने रहते हैं |
भगवान का वास जहां होता है वहां अहम भाव नहीं रहता , जहां अहं भाव रहता है वहां प्रभु का निवास नहीं होता |
जिन विश्वरूप भगवान की कृपा से तुम्हें धन प्राप्त हुआ है, उन्हीं की सेवा में खर्च करने में ही उसकी शोभा है |
जैसे इत्र की शीशी खोलने से सदा सुगंध ही आती है , वैसे ही सद्गुरु के मुख से सदा उपदेश वाक्य हि  निकला करते हैं |
जो आदमी दूसरे को कुएं से बाहर निकालना चाहता है , उसे पहले अपने पैर मजबूत कर लेने चाहिए | इसी तरह जो गुरु बनना चाहे , उसे पहले स्वयं पूरा ज्ञानी बनना चाहिए |
जैसे नाव चारों ओर पानी से घिरी हुई रहती है फिर भी जल उसमें प्रवेश नहीं कर सकता, उसी प्रकार संसार की घोर वासनाओं के बीच में रहते हुए भी संतजन अलिप्त रहते हैं |
मनुष्य को अपने घर पर स्नेह होता है , परंतु पैसों वाली तिजोरी पर उससे ज्यादा स्नेह होता है, उसी प्रकार भगवान को सारा संसार प्यारा है पर उसमें जो भी भक्तजन है अभी उनको अधिक प्यारे हैं |
जैसे सूर्य के सामने जाने पर मनुष्य को अपनी छाया नही दिखती ,इसी प्रकार भगवान के सम्मुख जाने वाले को अज्ञान और नरक का मुंह भी नहीं देखना पड़ता |
शक्ति से उपरांत पैसे खर्च करके तीर्थ यात्रा करने की अपेक्षा तो घर बैठे ही मन शुद्ध करना अधिक उत्तम तीर्थ सेवन |
भला करने वाले का भला तो प्रायः सभी करते हैं, पर जो बुरा करने वाले का भी भला करता है , वही असल में भगवान का भक्त है |
सांसारिक पुरुषों को जैसे कुटुम्बियों के यहां जाना अच्छा लगता है, वैसे ही जब तुम्हें भगवान के मंदिर में जाना अच्छा लगे तभी समझना की भक्ति का आरंभ हुआ है |
ईश्वर मनुष्य के लिए अवतार लेता है, परंतु मनुष्य अपने को ईश्वर के अर्पण नहीं करता |
जैसे सब नदियां समुद्र की ओर जाती हैं, वैसे ही सब धर्म प्रभु का ज्ञान बतलाते हैं |
संसार तो मुसाफिर खाना है , असली घर तो प्रभु का धाम है |
जिसे घर में चोर न घुसने दे ना हो , उसे दीपक जलता हुआ रखना चाहिए | वैसे ही जिसे पापों से बचना हो उसे सदा प्रभु का स्मरण करते रहना चाहिए |
अंधे के हाथ में जैसे रोशनी दूसरों के लिए ही होती है, वैसे ही आजकल के अधिकांश ज्ञानियों का ज्ञान भी दूसरों के लिए होता है |
कसाई के घर पुष्ट बना बकरा आखिर मारा हि जाता है , वैसे ही मौज उड़ाने वालों की अन्त मे दुर्दशा ही होती है |
जो प्राणी ईश्वरोन्मुख होता है, वह कभी पाप नहीं कर सकता ,सदा निर्दोष रहता है और आगे चलकर एक महान संत हो जाता है |
हमें सदा ईश्वर पर भरोसा करना चाहिए, ऐसा करने से निसंदेह हमें बहुत बड़ी सांत्वना मिलेगी |
ईश्वर दयालु पिता की तरह सब से प्रेम करते हैं और सबकी समान रूप से सहायता करते हैं | संदेह नहीं करना चाहिए, ईश्वर पर विश्वास करना चाहिए वे हमारी समस्त आवश्यकताएं पूरी कर देते हैं |
सदा ईश्वर से प्रेम करते रहने की ही हमारी कामना है , ईश्वर हमारे परम प्रेमास्पद हैं |
वास्तव में हमें ईश्वर से ही प्रेम करना चाहिए, ईश्वर के प्रति प्रेम एक विशाल निधि है |
वह प्राणी भाग्यवान-- धन्य है जो ईश्वर से प्रेम करता है |
जो मनुष्य कठिनाई से हताश हो जाता है और आपत्ति के सामने सिर झुका देता है, उससे कुछ भी नहीं हो सकता | परंतु जो मनुष्य विजय प्राप्त करने का संकल्प कर लेता है वह कभी असफल नहीं होता |
जीवन मृत्यु और मरणांत ही जीवन है | हम जो कुछ भी हद गोचर होते हैं,  यथार्थ में वह नहीं है | समाधि ( कब्र,अनंत ) के इस ओर हम वनवासी हैं , उस पर नागरिक हैं , इस ओर अनाथ हैं , उस ओर सनाथ है , इस ओर बंदी हैं, उस और स्वतंत्र है , इस ओर अज्ञात छद्मबेशी हैं परंतु उस ओर प्रकाशित तथा भगवान की संतति के नाम से  उदघोषित किए जाते हैं |
प्रभु की प्रभुता उसके दाएं हांथ में नहीं, भगवान का आधिपत्य उसकी विवेक शक्ति में नहीं | ईश्वर का साम्राज्य ( प्रभुता ) तो उसके प्रेम में ही है |
जब हम विचार करते हैं कि इस पुरुष में इतनी बुराई है , उतनी ही बुराई हम उसे देते हैं |
जितना जो कमजोर होगा उतना ही अधिक दूसरों के विचारों का प्रभाव उस पर पड़ेगा, इस प्रकार जितना हम दूसरों को बुरा समझते हैं उतना ही उनके प्रति बुराई के हम भागी होते हैं |
जब हम किसी मनुष्य को अच्छा सच्चा और ईमानदार समझते हैं तो उसके जीवन पर हम अपना बहुत अच्छा प्रभाव डालते हैं |
 यदि हम उन्हें प्यार करते हैं जो हमारे संपर्क में आते हैं तो वह भी हमें प्यार करते हैं, इस कहावत में एक गहरा वैज्ञानिक सिद्धांत है | 
यदि तुम चाहते हो कि संसार तुम से प्रेम करें तो तुम पहले संसार के लोगों से प्रेम करो |
एक प्रकार से चारों ओर प्रेम ही प्रेम है, प्रेम जीवन की कुंजी है | प्रेम का प्रभाव इतना होता है कि उससे संसार हिल उठता है |
सबके साथ प्रेम करने का ही विचार चौबीस घंटे करो , तो तुम्हें सब ओर से प्रेम ही प्रेम मिलेगा | लोगों से यदि तुम घृणा करोगे तो चारों ओर से तुम्हे घृणा ही प्राप्त होगी |
बुराई करने से विष पैदा होता है, ईर्ष्या तीर की तरह लौट कर हम ही को बेधती देती है और हृदय में ऐसा घाव करती है , कि जो कभी भी अच्छा नहीं हो सकता , क्रोधाग्नि अपने ही हृदय को जलाया करती है |
प्रेम करो तो तुम्हारे हृदय में प्रेम की सरिता बहेगी और तुम्हारी अत्यंत आवश्यकता के अवसर पर तुम्हें बल मिलेगा |
अपने में विश्वास रखो तो तुम्हारे वचनों और कार्यों में सैकड़ों हृदय विश्वास करेंगे |
एक दूसरे को अपने कोमल करों से गले लिपटाओ और प्रेम की मिठास से उन्हें अपनाओ |
मीठे वचन बोलने से कभी ना चूको जबकि हमें जीवन यापन करना है, मीठे वचन प्रायः स्वर्ग के अमृत रूपी पदार्थ के तुल्य हैं |
सर्वोच्च दृष्टि से जीवन की बातों पर विचार करना ही प्रार्थना है | प्रार्थना जागरूक आनंद मग्न आत्मा का स्वागत भाषण है | प्रार्थना भगवान की शक्ति के रूप में उनकी कृतियों की प्रशंसा करती है |
स्वार्थ साधन के लिए की गई प्रार्थना तो चोरी और क्षूद्रता है | ऐसी प्रार्थना तो द्वैत भाव को लेकर चलती है, इसमें स्वरूप गत और चेतनागत एकता का भाव नहीं होता |
ज्यों ही मनुष्य भगवान में एकाकार होता है , उसकी याचना समाप्त हो जाती है और वह अपने समस्त कर्म प्राथना से परिपूर्ण देखता है  |
धैर्य वीरता का अति उत्तम मूल्यवान और दुष्प्राप्य अंग है |  धीरज सारी आनंद और शक्तियों का मूल है |
कोई भी मनुष्य वास्तविक उत्कृष्टता को प्राप्त नहीं कर सका, जिसने किसी अंश ( सीमा ) तक इस बात का अनुभव नहीं किया कि उसका जीवन जातीय है , तथा जो कुछ भी उसे भगवान से उपलब्ध हुआ है ,ईश्वर ने उसको वह सब मानव जाति के लिए ही दिया है |
ईश्वर की सच्ची उपासना यही है कि जिसके हम उपासक हैं, उसी के प्रतिरूप बन जाए |  सूर्य के सदृस जहां से प्रकाश ,पवित्रता ,विवेक तथा शक्ति एक ही आत्मा में बहती है , उसका सामीप्य प्राप्त करें |
हम पवित्रता से उसे देखें , प्रेम से उसमें निवास करें , सत्य के द्वारा उसके ज्ञाता बने , सम्मान के भाव से उसको समझे , नम्रता से उसमें आनंद तथा प्रसन्नता का अनुभव करें , प्रफुल्लित मन से उसके कार्यों में आश्रय प्राप्त करें तथा बलपूर्वक उसके कार्यों को करें | मूल तत्व यह है कि भगवान का विज्ञान प्राप्त करके उसके अनंत सौंदर्य का रसपान करें |


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