उर्वशी ने क्यों दिया अर्जुन को नपुंसक होने का श्राप/hindi story Arjun Urvashi

उर्वशी ने क्यों दिया अर्जुन को नपुंसक होने का श्राप/hindi story Arjun Urvashi
एक दिन अर्जुन इंद्र के साथ उनके सिंहासन पर बैठे थे देवराज ने देखा कि पार्थ की दृष्टि देव सभा में नाचती हुई उर्वशी अप्सरा पर लगी है | इंद्र ने समझा कि अर्जुन उस उर्वशी अप्सरा पर आसक्त हैं , पराक्रमी धनंजय को प्रसन्न करने के लिए उन्होंने एकांत में चित्रसेन गंधर्व के द्वारा उर्वशी को रात्रि में अर्जुन के पास जाने का संदेश दिया |

उर्वशी अर्जुन के भव्य रूप एवं पराक्रम पर पहले से ही मोहित थी, इंद्र का संदेश पाकर बहुत प्रसन्न हुई | उसी दिन चांदनी रात में वस्त्रा भरण से अपने को भलीभांति सजाकर अर्जुन के पास पहुंची,

अर्जुन ने उसका आदर से स्वागत किया |

जो उर्वशी बड़े-बड़े तपस्वी ऋषियों को खूब सरलता से विचलित करने में समर्थ हुई थी |भगवान नारायण की दी हुई जो स्वर्ग की सर्वश्रेष्ठ सुंदरी थी | एकांत में वह रात्रि के समय अर्जुन के पास गई थी , उसने इंद्र का संदेश कहकर अपनी वासना प्रकट की |

अर्जुन के मन में इससे तनिक भी विकार नहीं आया, उन्होंने कहा माता आप हमारे पुरु वंश के पूर्वज महाराज पुरुरवा की पत्नी रही हैं,आपसे हमारा वंश चला है | भरतकुव की जननी समझकर ही देव सभा में मैं आपको देख रहा था और मैंने मन ही मन आपको प्रणाम किया था | देवराज को समझने में भूल हुई, मैं तो आपके पुत्र के समान हूं, मुझे क्षमा करें |

उर्वशी काममोहिता थी उसने बहुत समझाया कि स्वर्ग की अप्सराएं किसी की पत्नी नहीं होती , 

उनका उपभोग करने का सभी स्वर्ग आए लोगों को अधिकार है | परंतु अर्जुन का मन अविचल था उन्होंने कहा देवी मैं जो कहता हूं, उसे आप सब दिशाएं और सब देवता सुनलें | जैसे मेरे लिए माता कुंती और माद्री पूज्य हैं, जैसे सची मेरी माता हैं, वैसे ही मेरे वंश की जननी आप मेरी माता हैं !

 मैं आपके चरणों में प्रणाम करता हूं | रुष्ट होकर उर्वशी ने एक वर्ष तक नपुंसक रहने का शाप दे दिया | अर्जुन के इस त्याग का कुछ ठिकाना है ! सभाओं में दूसरों के सामने बड़ी ऊंची बातें करना तो सभी जानते हैं,

किंतु एकांत में युवती स्त्री प्रार्थना करें और उसे माता कहकर वहां से अछूता निकल जाए , 

ऐसे तो विरले ही होते हैं | अर्जुन का यह इंद्रिय संयम तो इससे भी महान है | उन्होंने उस उर्वशी को एकांत में रोती , गिडगिडाती लौटा दिया, जिसके कटाक्ष मात्र से बड़े-बड़े तपस्वी क्षणभर में विचलित हो जाते थे |

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