पापप्रशमनस्तोत्र - papprashman stotra lyrics sanshkrit hindi

पापप्रशमनस्तोत्र 
पापप्रशमनस्तोत्र - papprashman stotra lyrics sanshkrit hindi

(देवर्षि नारदरचित इस स्तोत्रका पापों के प्रायश्चित्तरूप श्रद्धाभक्तिपूर्वक पाठ करनेसे पापोंका निश्चित नाश होता है।)

अथाकर्णय भूपाल स्तवं दुरितनाशनम् ।
यमाकर्ण्य नरो भक्त्या मुच्यते पापराशिभिः॥१॥

यस्य स्मरणमात्रेण पापिनः शुद्धिमागताः ।
अन्येऽपि बहवो मुक्ताः पापादज्ञानसम्भवात् ॥२॥

परदारपरद्रव्यजीवहिंसादिके यदा।
प्रवर्तते नृणां चित्तं प्रायश्चित्तं स्तुतिस्तदा ॥३॥

विष्णवे विष्णवे नित्यं विष्णवे विष्णवे नमः ।
नमामि विष्णुं चित्तस्थमहंकारगतं हरिम् ॥ ४॥

चित्तस्थमीशमव्यक्तमनन्तमपराजितम् ।
विष्णुमीड्यमशेषाणामनादिनिधनं हरिम् ॥५॥

विष्णुश्चित्तगतो यन्मे विष्णुबुद्धिगतश्च यत् ।
योऽहंकारगतो विष्णुर्यो विष्णुमयि संस्थितः ॥६॥

करोति कर्तृभूतोऽसौ स्थावरस्य चरस्य च।
तत्पापं नाशमायाति तस्मिन् विष्णो विचिन्तिते॥ ७

ध्यातो हरति यः पापं स्वप्ने दृष्टश्च पापिनाम् ।
तमुपेन्द्रमहं विष्णुं नमामि प्रणतप्रियम् ॥ ८॥

जगत्यस्मिन्निरालम्बे हजमक्षरमव्ययम् ।
हस्तावलम्बनं स्तोत्रं विष्णुं वन्दे सनातनम् ॥९॥

सर्वेश्वरेश्वर विभो परमात्मन्नधोक्षज ।
हृषीकेश हृषीकेश हृषीकेश नमोऽस्तु ते ॥१०॥

नृसिंहानन्त गोविन्द भूतभावन केशव ।
दुरुक्तं दुष्कृतं ध्यातं शमयाशु जनार्दन ॥११॥

यन्मया चिन्तितं दुष्टं स्वचित्तवशवर्तिना ।
आकर्णय महाबाहो तच्छमं नय केशव ॥१२॥

ब्रह्मण्यदेव गोविन्द परमार्थपरायण ।
जगन्नाथ जगद्धातः पापं शमय मेऽच्युत ॥१३॥

यच्चापराले सायाते मध्याह्ने च तथा निशि ।
कायेन मनसा वाचा कृतं पापमजानता ॥१४॥

जानता च हृषीकेश पुण्डरीकाक्ष माधव ।
नामत्रयोच्चारणतः सर्व यातु मम क्षयम् ॥१५॥

शारीरं मे हृषीकेश पुण्डरीकाक्ष मानसम् ।
पापं प्रशममायातु वाक्कृतं मम माधव ॥१६॥

यद भुआनः पिबस्तिष्ठन् स्वपापद् यदा स्थितः ।
अकार्ष पापमर्थार्थ कायेन मनसा गिरा ॥१७॥

महदल्पं च यत्पापं दुर्योनिनरकावहम् ।
तत्सर्व विलयं यातु वासुदेवस्य कीर्तनात् ॥१८॥

परं ब्रह्म परं धाम पवित्रं परमं च यत् ।
अस्मिन् संकीर्तिते विष्णौयत् पापं तत् प्रणश्यतु॥ १९

यत्प्राप्य न निवर्तन्ते गन्धस्पर्शविवर्जितम् ।
सूरयस्तत्पदं विष्णोस्तत्सर्वे मे भवत्वलम् ॥२०॥

पापप्रशमनं स्तोत्रं यः पठेच्छृणुयान्नरः ।
शारीरैर्मानाचा कृतैः पापैः प्रमुच्यते ॥२१॥

मुक्तः पापग्रहादिभ्यो याति विष्णोः परं पदम् ।
तस्मात्सर्वप्रयत्नेन स्तोत्रं सर्वाघनाशनम् ॥ २२ 

प्रायश्चित्तमघौघानां पठितव्यं नरोत्तमैः।
प्रायश्चित्तः स्तोत्रजपैर्वतैनश्यति पातकम् ॥ २३॥

ततः कार्याणि संसिद्धयै तानि वै भुक्तिमुक्तये ।
पूर्वजन्मार्जितं पापमैहिकं च नरेश्वर ॥२४॥

स्तोत्रस्य श्रवणादस्य सद्य एव विलीयते ।
पापद्रुमकुठारोऽयं पापेन्धनदवानलः ॥ २५॥

 पापराशितमस्तोमभानुरेष स्तवो नृप ।
मया प्रकाशितस्तुभ्यं तथा लोकानुकम्पया ॥ २६॥

स्तवोऽयं यो मया प्राप्तो रहस्यं पितुरादरात् ।
इति ते यन्मया प्रोक्तं स्तोत्रं पापप्रणाशनम् ॥ २७ 

अस्यापि पुण्यं माहात्म्यं वक्त शक्तः स्वयं हरिः ॥२८॥
(पद्य० पाताल० ८८ । ६९-९५)


श्रीनारदजी कहते हैं-राजन् ! अब तुम पापप्रशमन नामक स्तोत्र सुनो। इसका भक्तिपूर्वक श्रवण करके भी मनुष्य पापराशियोंसे मुक्त हो जाता है । इसके चिन्तनमात्रसे बहुतेरे पापी शुद्ध हो चुके हैं ।
इसके सिवा और भी बहुत-से मनुष्य इस स्तोत्रका सहारा लेकर अज्ञानजनित पापसे मुक्त हो गये हैं। जब मनुष्यका चित्त परायी स्त्री, पराये धन तथा जीवहिंसा आदिकी ओर जाय, उस समय यह स्तोत्र ही प्रायश्चित्तका काम देता है ।।१-३॥

यह स्तुति इस प्रकार है सम्पूर्ण विश्वमें व्यापक भगवान् श्रीविष्णुको सर्वदा नमस्कार है । विष्णुको बारंबार प्रणाम है । मैं अपने चित्तमें विराजमान विष्णुको बारंबार नमस्कार करता हूँ।

अपने अहंकारमें व्याप्त श्रीहरिको मस्तक झुकाता हूँ। श्रीविष्णु चित्तमें विराजमान ईश्वर ( मन और इन्द्रियोंके शासक ), अव्यक्त, अनन्त, अपराजित, सबके द्वारा स्तवन करने योग्य तथा आदि-अन्तसे रहित हैं। ऐसे श्रीहरिको मैं नित्य-निरन्तर प्रणाम करता हूँ।

जो विष्णु मेरे चित्तमें विराजमान हैं, जो विष्णु मेरी बुद्धिमें स्थित हैं, जो विष्णु मेरे अहंकारमें व्याप्त हैं तथा जो विष्णु सदा मेरे स्वरूपमें स्थित हैं, वे ही कर्ता होकर सब कुछ करते हैं ।

उन विष्णुभगवान्का गाढ़ चिन्तन करनेपर चराचर प्राणियोंका सारा पाप नष्ट हो जाता है । जो ध्यान करने और स्वप्नमें दीख जानेपर भी पापियोंके पापको हर लेते हैं तथा चरणोंमें पड़े हुए शरणागत भक्त जिन्हें अत्यन्त प्रिय हैं, उन वामनरूपधारी भगवान् विष्णुको नमस्कार करता हूँ।

जो अजन्मा, अक्षर और अविनाशी हैं तथा इस अवलम्बशून्य संसारमें हाथका सहारा देनेवाले हैं, स्तोत्रोंद्वारा जिनकी स्तुति की जाती है, उन सनातन विष्णुको मैं प्रणाम करता हूँ । हे सर्वेश्वर

हे ईश्वर ! हे व्यापक परमात्मन् ! हे इन्द्रियायीत एवं इन्द्रियोंका शासन करनेवाले अन्तर्यामी हृषीकेश ! आपको नमस्कार है । हे नृसिंह ! हे अनन्त ! हे गोविन्द ! हे भूतभावन ! हे केशव ! हे जनार्दन ! मेरे दुर्वचन, दुष्कर्म और दुश्चिन्तनको शीघ्र नष्ट कीजिये ।

महाबाहो ! मेरी प्रार्थना सुनिये-अपने चित्तके वशमें होकर मैंने जो कुछ बुरा चिन्तन किया हो, उसको शान्त कर दीजिये । ब्राह्मणोंका हित साधन करनेवाले देवता गोविन्द ! परमार्थमें तत्पर रहनेवाले जगन्नाथ !


जगत्को धारण करनेवाले अच्युत ! मेरे पापोका नाश कीजिये। मैंने अपराह्न, सायाह्न, मध्याह्न तथा रात्रिके समय शरीर, मन और वाणीके द्वारा, जानकर या अनजानमें जो कुछ पाप किया हो, वह सब हृषीकेश' 'पुण्डरीकाक्ष' और 'माधव'. इन तीन नामोंके उच्चारणसे नष्ट हो जाय । हृषीकेश ! आपके नामोच्चारणसे मेरा शारीरिक पाप नष्ट हो जाय, पुण्डरीकाक्ष !

आपके स्मरणसे मेरा मानस-पाप शान्त हो जाय तथा माधव ! आपके नाम-कीर्तनसे मेरे वाचिक पाप नष्ट हो जायँ ।

_मैंने खाते, पीते, खड़े होते, सोते, जागते तथा ठहरते समय मन, वाणी और शरीरसे, स्वार्थ या धनके लिये जो कुत्सित योनियों और नरकोंकी प्राप्ति करानेवाला महान् या थोड़ा पाप किया है, वह सब भगवान् वासुदेवका नामोच्चारण करनेसे नष्ट हो जाय ।

जो परब्रह्म, परमधाम और परम पवित्र है, वह तत्त्व भगवान् विष्णु ही हैं। इन श्रीविष्णुभगवान्का कीर्तन करनेसे मेरे जो भी पाप हों, वे नष्ट हो जायँ । जो गन्ध और स्पर्शसे रहित हैं, ज्ञानी पुरुष जिसे पाकर पुनः इस संसारमें नहीं लौटते, वह विष्णुका ही परम पद है; वह सब मुझे पूर्णरूपसे प्राप्त हो जाय ॥ ४-२० ।। _

यह पापप्रशमन' नामक स्तोत्र है । जो मनुष्य इसे पढ़ता और सुनता है, वह शरीर, मन और वाणीद्वारा किये हुए पापोंसे मुक्त हो जाता है ।

इतना ही नहीं, वह पापग्रह आदिके भयसे भी मुक्त होकर भगवान् विष्णुके परमपदको प्राप्त होता है।

यह स्तोत्र सब पापोंका नाशक तथा पापराशिका
प्रायश्चित्त है; इसलिये श्रेष्ठ मनुष्योंको पूर्ण प्रयत्न करके इस ___ स्तोत्रका पाठ करना चाहिये ।

स्तोत्र-पाठ, मन्त्रजप और व्रतरूपी प्रायश्चित्तसे पापका नाश होता है; इसलिये भोग तथा मोक्ष आदि अभीष्टोंकी सिद्धिके लिये उपर्युक्त कार्य करने चाहिये ।

राजन् ! इस स्तोत्रके श्रवणमात्रसे पूर्वजन्म तथा इस जन्मके किये हुए पाप भी तत्काल नष्ट हो जाते हैं । यह स्तोत्र पापरूपी वृक्षके लिये कुठार और पापमय ईधनके लिये दावानल है । पापराशिरूपी अन्धकारसमूहका नाश करनेके लिये यह स्तोत्र सूर्यके समान है ।

मैंने सम्पूर्ण जगत्पर अनुग्रह करनेके लिये इसे तुम्हारे सामने प्रकाशित किया है। इसके पुण्यमय माहात्म्यका वर्णन करनेमे एकमात्र श्रीहरि ही समर्थ हैं ॥ २१-२८ ॥

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