जगन्नाथाष्टकम् स्तोत्र
jagannatha ashtakam hindi lyrics
जगन्नाथाष्टकम् स्तोत्र
jagannatha ashtakam hindi lyrics
जो बाएं हाथ में वंशी मस्तक पर मोर पंख कटि तट में पीतांबर तथा नेत्रों के प्रांत में शाखाओं के प्रति कटाक्ष पूर्ण दृष्टि धारण करते हैं ,जो सदा सर्वदा निरतिशय शोभाशाली वृंदावन धाम में ही निवास करते हैं तथा वहीं जिनकी विविध लीलाओं का परिचय होता है वह मेरे स्वामी जगन्नाथ जी कृपा पूर्वक मेरे नेत्र पथ में प्रविष्ट हों|
जो महासागर के तट पर स्वर्ण सी कांति वाले नीलांचल पर दिव्यातिदिव्य प्रसाद में अपने अग्रज महाबली श्री बलभद्र जी एवं बहन सुभद्रा के बीच में विराजमान रहकर समस्त देववृन्दों को अपनी पुनीत सेवा का शुभ अवसर प्रदान करते हैं वह जगन्नाथ स्वामी सदा मेरे नेत्रों के सम्मुख रहें|
जो कृपा के सागर हैं जिनकी छटा सजल मेघों की घटा को मात करती है जो अपनी ग्रहणियों श्री लक्ष्मी जी तथा सरस्वती को आनन्दित करते रहते हैं, जिनका श्रीमुख देदीप्यमान निर्मल कमल की शोभाको धारण करता है, बड़े-बड़े देवताओं के द्वारा जो आराधन किए जाने योग्य हैं तथा श्रुतियों के शीर्ष स्थानीय उपनिषदों में जिनके पावन चरित्रों का गान किया गया है, वे मेरे प्रभु श्री जगन्नाथ जी सदा मुझे दर्शन देते रहें |
जो रथ यात्रा के समय मार्ग में एकत्रित हुए भूसुरवृन्दों के द्वारा किए हुए स्तवन को सुनकर पद पद पर दया से द्रवित होते रहते हैं, वे दयासागर , निखिल ब्रह्मांडोके बंधु एवं समुद्र पर कृपा करके उसके तट पर निवास करने वाले श्री जगन्नाथ स्वामी मेरे नैनों के अतिथि बनें |
साक्षात परब्रह्म ही जिनके मस्तक पर भूषण रूप में विद्यमान हैं, जिनके नेत्र खिले हुए कमल के समान सुंदर हैं ,जो नीलाचल पर भक्तों को सुख देने के लिए निवास करते हैं तथा जो से स्थाई रूप से भगवान अनंत के मस्तक पर चरण रखे रहते हैं और प्रेमानंदमय विग्रह से श्री राधा के रसमय शरीर के अंदर का अनुपम सुख लूटते रहते हैं , वे मेरे प्रभु श्री जगन्नाथ जी निरंतर मेरे नेत्रों को आनंदित करते रहें |
न तो में राज्य की याचना करता हूं और ना स्वर्ण एवं माणिक्यादि रत्नों के वैभव की ही प्रार्थना करता हूं ,जिसे सब लोग चाहते होंट ऐसी सुंदरी एवं श्रेष्ठ रमणी की भी मुझे कामना नहीं है मैं तो केवल यही चाहता हूं कि भगवान भूत पति समय-समय पर जिनके निर्मल चरित्रों का गान करते रहते हैं , वे प्रभु श्री जगन्नाथ जी सदा सर्वदा मेरे नेत्रों के सम्मुख नाचते रहें |
हे सुरेश्वर ! शीघ्रातिशीघ्र इस असार संसार को मेरे नेत्रों के सामने से हटा दो | हे यदुनाथ मेरे पापों की अमित राशि को भस्म कर दो , अरे यह ध्रुव सत्य है कि मेरे स्वामी दीन अनाथो को अपने श्री चरणों का प्रसाद अवश्य देते हैं , वे ही श्री जगन्नाथ मेरे नेत्रों को भी दर्शन से कृतार्थ करें |
इस पवित्र श्री जगन्नाथाष्टक का जो एकाग्र चित्त एवं पवित्र होकर पाठ करता है उसके अंतःकरण के समस्त पाप धुल जाते हैं और अंत में उसे विष्णु लोक की प्राप्ति होती है |
जगन्नाथाष्टकम् स्तोत्र
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