F महर्षि अत्रि maharshi atri ऋषियों की अमृतवाणी - bhagwat kathanak
महर्षि अत्रि maharshi atri ऋषियों की अमृतवाणी

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महर्षि अत्रि maharshi atri ऋषियों की अमृतवाणी

महर्षि अत्रि maharshi atri ऋषियों की अमृतवाणी
ऋषियों की अमृतवाणी
महर्षि अत्रि maharshi atri ऋषियों की अमृतवाणी

महर्षि अत्रि-

प्राप्त हुआ धन इसी लोक में आनंददायक होता है मृत्यु के बाद तो वह बड़े ही कटु परिणाम को उत्पन्न करता है, अतः जो सुख एवं अनंत पद की इच्छा रखता हो उसे तो इसे कदापि नहीं लेना चाहिए |

जो परा प्रकृति आदि से भी परे है वह परम पुरुष जनार्दन जिससे संतुष्ट होते हैं उसी को वह अक्षय पद मिलता है ,यह मैं सत्य सत्य कहता हूं |

जो गुणियों के गुणनखंड नहीं करता किसी के थोड़े से गुणों की भी प्रशंसा करता है , दूसरे के दोष देखने में मन नहीं लगाता उसी के इस भाव को अनुसूया कहते हैं |

परायों में से हो या अपने भाई बन्धुओं मे से, मित्र है, द्वैष का पात्र या वैर रखने वाला हो , जिस किसी को भी विपत्ति में देखकर उसकी रक्षा करना ही दया कहलाती है |

अक्रूरता (दया), क्षमा, सत्य, अहिंसा, दान, नम्रता, प्रीति, प्रसन्नता, मधुर वाणी और कोमलता ये दस यम हैं |

पवित्रता, यज्ञ, तप, दान, स्वाध्याय, जननेंद्रिय का निग्रह, व्रत और उपवास और स्नान यह दस नियम हैं |

महर्षि पिप्पलाद-

ब्रम्ह लोक किसको मिलता है-  जिनमें तप और ब्रह्मचर्य है, जिनमें सत्य प्रतिष्ठित है उन्हीं को ब्रह्म लोक मिलता है |

जिनमें ना दो कुटिलता और मिथ्या भाषण है और ना ही कपट है उन्हीं को ही विशुद्ध ब्रह्मलोक मिलता है |

हे प्रिय जिसमें समस्त प्राण, पांचों भूत तथा सभी इंद्रियों और अंतःकरण के सहित विज्ञान स्वरूप आत्मा आश्रय लेते हैं उस अविनाशी परमात्मा को जो जान लेता है, वह सर्वज्ञ है तथा वह सर्वस्वरूप परमात्मा में प्रविष्ट हो जाता है |

महर्षि विश्वामित्र-

भोग से कामना की शांति नहीं होती- किसी कामना की पूर्ति चाहने वाले मनुष्य की यदि एक कामना पूर्ण होती है तो दूसरी नई कामना उत्पन्न होकर उसे पुनः बाण के समान बींधने लगती है|

भोगों की इच्छा उपभोग के द्वारा कभी शांत नहीं होती , प्रत्युत घी डालने से प्रज्वलित होने वाली अग्नि की भांति वह अधिकाधिक बढ़ती ही जाती है , भोगों की अभिलाषा रखने वाला पुरुष मोह वस कभी सुख नहीं पाता |

सत्य की महिमा- सत्य से ही सूर्य तप रहा है, सत्य पर ही प्रथ्वी टिकी हुई है , सत्य भाषण सबसे बड़ा धर्म है, सत्य पर ही स्वर्ग प्रतिष्ठित है, एक हजार अश्ववमेघ और एक सत्य को यदि तौला जाए तो एक सत्य ही भारी सिद्ध होगा |

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