महर्षि गौतम maharshi gautam ऋषियों के उपदेश

 maharshi gautam
 ऋषियों के उपदेश
महर्षि गौतम maharshi gautam ऋषियों के उपदेश
महर्षि गौतम
दीर्घकाल तक क्या करें ?

चिरकाल तक परीक्षा करके कोई किसी को मित्र बनाए और बनाए हुए मित्र का जल्दी त्याग ना करे, चिरकाल तक सोच कर बनाए हुए मित्र को दीर्घकाल तक धारण किए रहना उचित है |

राग, दर्प, अभिमान, द्रोह, पाप कर्म तथा अप्रिय कर्तव्य में चिरकारी विलंब करने वाला प्रशंसा का पात्र है |

बंधु, सुहृद, भृत्य और स्त्री वर्ग के अव्यक्त अपराधों में जल्दी कोई दंड ना देकर देर तक विचार करने वाला पुरुष प्रशंसनीय माना गया है|

दीर्घकाल तक ज्ञान वृद्ध एवं वयोवृद्ध पुरुषों का संग करें | चिरकाल तक उनकी सेवा में रहकर उनका यथावत सम्मान करें | चिरकाल तक धर्मों का सेवन करें | किसी बात की खोज का कार्य चिरकाल तक करता रहे |

विद्वान पुरुषों का संग अधिक काल तक करे | शिष्ट पुरुषों का सेवन दीर्घकाल तक करें, अपने को चिर काल तक विनय शील बनाए रखने वाला पुरुष दीर्घकाल तक आदर का पात्र बना रहता है|

दूसरा कोई भी यदि धर्मयुक्त वचन कहे तो उसे देर तक सुने और यदि कोई प्रश्न करें तो उस पर देर तक विचार करके ही उसका उत्तर दें , ऐसा करने से मनुष्य चिरकाल तक संताप का भागी नहीं बनता |

संतोष

इंद्रियों के लोभ ग्रस्त होने से सभी मनुष्य संकट में पड़ जाते हैं | जिसके चित्त में संतोष है , उसके लिए सर्वत्र धन-संपत्ति भरी हुई है, जिसके पैर जूते में हैं उसके लिए सारी पृथ्वी मानो चमड़े से ढकी है |

संतोष रूपी अमृत से तृप्त एवं शांत चित्त वाले पुरुषों को जो सुख प्राप्त है, वह धन के लोभ से इधर-उधर दौड़ने वाले लोगों को कहां से प्राप्त हो सकता है |

असंतोष ही सबसे बड़ा दुख है और संतोष ही सबसे बड़ा सुख है , अतः सुख चाहने वाले पुरुष को सदा संतुष्ट रहना चाहिए |

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