सिद्ध नारायणवर्म
सम्पूर्ण नारायण कवच विधी

Narayan Kavach
(इस स्तोत्रके श्रद्धा-विधिपूर्वक पाठ और अनुष्ठानसे प्राणसंकट, शत्रुसंकट और काम-क्रोधादिका बेगरूप संकट दूर होते हैं। यह देवराज इन्द्रका अनुभूत सिद्ध कवच है।)
श्रीशुक उवाच
सम्पूर्ण नारायण कवच विधी

Narayan Kavach
(इस स्तोत्रके श्रद्धा-विधिपूर्वक पाठ और अनुष्ठानसे प्राणसंकट, शत्रुसंकट और काम-क्रोधादिका बेगरूप संकट दूर होते हैं। यह देवराज इन्द्रका अनुभूत सिद्ध कवच है।)
श्रीशुक उवाच
वृतः पुरोहितस्त्वाष्ट्रो महेन्द्रायानुपृच्छते ।
नारायणाख्यं वर्माह तदिहैकमनाः शृणु ॥१॥
विश्वरूप उवाच धौताघ्रिपाणिराचम्य सपवित्र उदङ्मुखः ।
कृतवाङ्गकरन्यासो मन्त्राभ्यां वाग्यतः शुचिः ॥२॥
नारायणमयं वर्म संनह्येद् भय आगते ।
पादयोर्जानुनोरूर्वोरुरे हृद्यथोरसि ॥३॥
मुखे शिरस्यानुपूादोंकारादीनि विन्यसेत् ।
ॐ नमो नारायणायेति विपर्ययमथापि वा॥४॥
करन्यासं ततः कुर्याद् द्वादशाक्षरविद्यया ।
प्रणवादियकारान्तमङ्गुल्यङ्गुष्ठपर्वसु ॥५॥
न्यसेद्धृदय ओंकारं विकारमनु मूर्धनि ।
षकारं तु ध्रुवोर्मध्ये णकारं शिखया दिशेत् ॥६॥
वेकार नेत्रयोयुज़्यान्नकारं सर्वसंधिषु ।
मकारमस्त्रमुद्दिश्य मन्त्रमूर्तिर्भवेद् बुधः ॥ ७॥
सविसर्ग फडन्तं तत् सर्वदिक्षु विनिर्दिशेत् ।
ॐ विष्णवे नम इति ॥ ८॥
आत्मानं परमं ध्यायेद् ध्येयं षटशक्तिभिर्युतम् ।
विद्यातेजस्तपोमूर्तिमिमं मन्त्रमुदाहरेत् ॥९॥
ॐ हरिर्विध्यान्मम सर्वरक्षां न्यस्ताघ्रिपद्मः पतगेन्द्रपृष्ठे ।
दरारिचर्मासिगदेषुचापपाशान्द धानोऽष्टगुणोऽष्टबाहुः ॥ १०॥
जलेषु मां रक्षतु मत्स्यमूर्तिर्यादोगणेभ्यो वरुणस्य पाशात् ।
स्थलेषु मायावटुवामनोऽव्यात् त्रिविक्रमः खेऽवतु विश्वरूपः ॥ ११॥
दुर्गेष्वटव्याजिमुखादिषु प्रभुः पायान्नृसिंहोऽसुरयूथपारिः ।
विमुञ्चतो यस्य महाट्टहासं दिशो विनेदुय॑पतंश्च गर्भाः ॥१२॥
रक्षत्वसौ माध्वनि यज्ञकल्पः स्वदंष्ट्रयोनीतधरो वराहः ।
रामोऽद्रिकूटेष्वथ विप्रवासे सलक्ष्मणोऽव्याद् भरताग्रजोऽस्मान् ॥ १३ ॥
मामुग्रधर्मादखिलात् प्रमादान्नारायणः पातु नरश्च हासात् ।
दत्तस्त्वयोगादथ योगनाथः पायाद् गुणेशः कपिलः कर्मबन्धात् ॥ १४॥
सनत्कुमारोऽवतु कामदेवाद्धयशीर्षा मां पथि देवहेलनात् ।
देवर्षिवर्यः पुरुषार्चनान्तरात् कूमों हरिमा निरयादशेषात् ॥ १५ ॥
धन्वन्तरिभगवान् पात्वपथ्याद् द्वन्द्वाद् भयादृषभो निर्जितात्मा ।
यज्ञश्च लोकादवताजनान्ताद् बलो गणात् क्रोधवशादहीन्द्रः ॥ १६॥
द्वैपायनो भगवानप्रबोधाद् बुद्धस्तु पाखण्डगणात् प्रमादात् ।
कल्किः कलेः कालमलात् प्रपातु धर्मावनायोरुकृतावतारः ॥ १७ ॥
मां केशवो गदया प्रातरव्याद् गोविन्द आसङ्गवमात्तवेणुः ।
नारायणः प्राण उदात्तशक्तिमध्यन्दिने विष्णुररीन्द्रपाणिः ॥ १८॥
देवोऽपराले मधुहोगधन्वा सायं विधामावतु माधवो माम् ।
दोष हृषीकेश उतार्धरात्रे निशीथ एकोऽवतु पद्मनाभः ॥ १९ ॥
श्रीवत्सधामापररात्र ईशः प्रत्यूष ईशोऽसिधरो जनार्दनः ।
दामोदरोऽव्यादनुसंध्यं प्रभाते विश्वेश्वरो भगवान् कालमूर्तिः ॥ २०॥
चक्रं युगान्तानलतिग्मनेमि भ्रमत् समन्ताद् भगवत्प्रयुक्तम् ।
दन्दग्धि दन्दग्ध्यरिसैन्यमाशु कक्षं यथा वातसखो हुताशः ॥ २१ ॥
गदेऽशनिस्पर्शनविस्फुलिङ्गे निष्पिण्ढि निपिण्ड्यजितप्रियासि ।
कूष्माण्डवैनायकयक्षरक्षोभूतग्रहांश्चूर्णय चूर्णयारीन् ॥ २२ ॥
त्वं यातुधानप्रमथप्रेतमातृपिशाचविप्रग्रहघोरदृष्टीन् ।
दरेन्द्र विद्रावय कृष्णपूरितो भीमस्वनोऽरेहृदयानि कम्पयन् ॥ २३॥
त्वं तिग्मधारासिवरारिसैन्यमीशप्रयुक्तो मम छिन्धि छिन्धि ।
चभृषि चर्मञ्छतचन्द्र छादय द्विषामघोनां हर पापचक्षुषाम् ॥२४॥
यत्रो भयं ग्रहेभ्योऽभूत् केतुभ्यो नभ्य एव च ।
सरीसृपेभ्यो दंष्ट्रिभ्यो भूतेभ्योऽहोभ्य एव वा ॥ २५
मण्येतानि भगवन्नामरूपास्त्रकीर्तनात् ।
प्रयान्तु संक्षयं सद्यो ये नः श्रेयाप्रतीपकाः ॥ २६
गरुडो भगवान् स्तोत्रस्तोमश्छन्दोमयः प्रभुः।
रक्षत्वशेषकृच्छ्रेभ्यो विष्वक्सेनः स्वनामभिः ॥ २७
सर्वापद्भ्यो हरेर्नामरूपयानायुधानि नः।
बुद्धीन्द्रियमन प्राणान् पान्तु पार्षदभूषणाः ॥ २८
यथा हि भगवानेव वस्तुतः सदसञ्च यत् ।
सत्येनानेन नः सर्वे यान्तु नाशमुपद्रवाः ॥ २९
पथकात्म्यानुभावानां विकल्परहितः स्वयम् ।
भूषणायुधलिङ्गाख्या धत्ते शक्कीः स्वमायया ॥ ३०
तेनैव सत्यमानेन सर्वशो भगवान् हरिः ।
पातु सर्वैः स्वरूपैनः सदा सर्वत्र सर्वगः ॥ ३१ ॥
विदिक्षु दिसूर्ध्वमधः समन्तादन्तर्बहिर्भगवान् नारसिंहः।
प्रहापयल्लोकभयं स्वनेन स्वतेजसा ग्रस्तसमस्ततेजाः ॥ ३२॥
मघवन्निदमाख्यातं वर्म नारायणात्मकम् ।
विजेष्यस्यञ्जसा येन दंशितोऽसुरयूथपान् ॥ ३३॥
एतद् धारयमाणस्तु यं यं पश्यति चक्षुषा ।
पदावा संस्पृशेत् सद्यःसाध्वसात् स विमुच्यते॥ ३४॥
न कुतश्चिद् भयं तस्य विद्यां धारयतो भवेत् ।
राजदस्युग्रहादिभ्यो व्याघ्रादिभ्यश्च कर्हिचित् ॥ ३५॥
( श्रीमद्भागवत ६ । ८ । ३-३७)
सम्पूर्ण नारायण कवच विधी
Narayan Kavach
Narayan Kavach
श्रीशुकदेवजीने कहा-परीक्षित् ! जब देवताओंने विश्वरूपको पुरोहित बना लिया, तब देवराज इन्द्रके प्रश्न करनेपर विश्वरूपने उन्हें नारायणकवचका उपदेश किया ! तुम एकाग्रचित्तसे उसका अब श्रवण करो ॥ १॥
__ विश्वरूपने कहा-देवराज इन्द्र ! भयका अवसर उपस्थित होनेपर नारायणकवच धारण करके अपने शरीरकी रक्षा कर लेनी चाहिये।
उसकी विधि यह है कि पहले हाथ-पैर धोकर आचमन करे, फिर हाथमें कुशकी पवित्री धारण करके उत्तर मुँह बैठ जाय । इसके बाद कवचधारणपर्यन्त और कुछ न बोलनेका निश्चय करके पवित्रतासे ॐ नमो नारायणाय' और 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय'इन मन्त्रोंके द्वारा अङ्गन्यास तथा करन्यास करे ।
पहले ॐ नमो नारायणाय' इस अष्टाक्षर मन्त्रके ॐ आदि आठ अक्षरोंका क्रमशः पैरों, घुटनों, जाँघों, पेट, हृदय, वक्षःस्थल, मुख और सिरमें न्यास करे।
अथवा पूर्वोक्त मन्त्रके यकारसे लेकर ॐकारपर्यन्त आठ अक्षरोंका सिरसे आरम्भ करके उन्हीं आठ अङ्गोंमें विपरीत क्रमसे न्यास करे ।। २-४॥
__ तदनन्तर ॐ नमो भगवते वासुदेवाय'—इस द्वादशाक्षर मन्त्रके ॐसे लेकर य-पर्यन्त बारह अक्षरोंका दायीं तर्जनीसे बायीं तर्जनीतक दोनों हाथोंकी आठ अँगुलियों और दोनों अँगूठोंकी दो-दो गाँठोंमें न्याप्त करे ।। ५ ॥
फिर ॐ विष्णवे नमः' इस मन्त्रके पहले अक्षर ॐ का हृदयमें, 'वि' का ब्रह्मरन्ध्रमे, '' का भौंहोंके बीचमें, ' का चोटीमें, 'वे' का दोनों नेत्रोंमें और 'न' का शरीरकी सब गाँठोंमें न्यास करे ।
तदनन्तर ॐ मः अस्त्राय फट' कहकर दिग्बन्ध करे । इस प्रकार न्यास करनेसे इस विधिको जाननेवाला पुरुष मन्त्रस्वरूप हो जाता है ।। ६-८ । इसके बाद समग्र ऐश्वर्य, धर्म, यश, लक्ष्मी, ज्ञान और वैराग्यसे परिपूर्ण इष्टदेव भगवान्का ध्यान करे और अपनेको भी तद्रूप ही चिन्तन करे । तत्पश्चात् विद्या, तेज और तपःस्वरूप इस कवचका पाठ करे—॥ ९॥
सम्पूर्ण नारायण कवच विधी Narayan Kavach
भगवान् श्रीहरि गरुड़जीकी पीठपर अपने चरणकमल रक्खे हुए हैं। अणिमादि आठों सिद्धियाँ उनकी सेवा कर रही हैं । आठ हाथोंमें शङ्ख, चक्र, ढाल, तलवार, गदा ,बाण, धनुष और पाश ( फंदा) धारण किये हुए हैं । वे - ही कारस्वरूप प्रभु सब प्रकारसे, सब ओरसे मेरी रक्षा करें ॥ १० ॥
मत्स्यमूर्ति भगवान् जलके भीतर जलजन्तुओंके रूपमें स्थित वरुणके पाशसे मेरी रक्षा करें। मायासे ब्रह्मचारीका रूप धारण करनेवाले वामन भगवान् स्थलपर और विश्वरूप श्रीत्रिविक्रम भगवान् आकाशमें मेरी रक्षा करें ॥ ११ ॥
जिनके घोर अट्टहाससे सब दिशाएँ गूंज उठी थीं और गर्भवती दैत्यपत्नियोंके गर्भ गिर गये थे, वे दैत्य-यूथपतियोंके शत्रु भगवान् नृसिंह जंगल, रणभूमि आदि विकट स्थानोंमें मेरी रक्षा करें ॥ १२ ॥
अपनी दाढोपर पृथ्वीको धारण करनेवाले यज्ञमूर्ति वराह भगवान् मार्गमें, परशुरामजी पर्वतोंके शिखरोंपर और लक्ष्मणजीके सहित भरतके बड़े भाई भगवान् रामचन्द्र प्रवासके समय हमारी रक्षा करें ।। १३||
भगवान नारायण ऋषि मारण-मोहन आदि भयंकर अभिचारों और सब प्रकारके प्रमादोंसे मेरी रक्षा करें। ऋषिश्रेष्ठ नर गर्वसे, __योगेश्वर भगवान् दत्तात्रेय योगके विघ्नोंसे और त्रिगुणाधिपति भगवान् कपिल कर्मबन्धनोंसे मेरी रक्षा करें ॥ १४ ।।
परमर्षि सनत्कुमार कामदेवसे, हयग्रीव भगवान् मार्गमें चलते समय देवमूतियोंको नमस्कार आदि न करनेके अपराधसे, देवर्षि नारद सेवापराधोंसे और भगवान् कच्छप सब प्रकारके नरकोंसे मेरी रक्षा करें ।। १५॥
भगवान् धन्वन्तरि कुपथ्यसे, जितेन्द्रिय भगवान् ऋषभदेव सुख-दुःख आदि भयदायक द्वन्द्वोंसे, यज्ञ भगवान् लोकापवादसे, बलरामजी प्रलयसे और श्रीशेषजी क्रोधवश नामक सोंके गणसे मेरी रक्षा करें ॥ १६ ॥
भगवान् श्रीकृष्णद्वैपायन व्यासजी - अज्ञानसे तथा बुद्धदेव पाखण्डियोंसे और प्रमादसे मेरी रक्षा करें। धर्मरक्षाके लिये महान् अवतार धारण करनेवाले । भगवान् कल्कि कालके मलरूप कलिकालसे मेरी रक्षा करें ॥ १७ ॥
प्रातःकाल भगवान् केशव अपनी गदा लेकर, कुछ दिन चढ़ आनेपर भगवान् गोविन्द अपनी बाँसुरी लेकर, दोपहरके पहले भगवान् नारायण अपनी तीक्ष्ण शक्ति लेकर और दोपहरको भगवान् विष्णु चक्रराज सुदर्शन लेकर मेरी रक्षा करें ।। १८ ॥
तीसरे पहरमें भगवान् मधुसूदन अपना प्रचण्ड धनुष लेकर मेरी रक्षा करें । सायंकालमें ब्रह्मा आदि त्रिमूर्तिधारी माधव, सूर्यास्तके बाद तथा अर्धरात्रिके पूर्व हृषीकेश तथा अर्धरात्रिके समय अकेले भगवान् पद्मनाभ मेरी रक्षा करें ॥ १९ ॥
रात्रिके पिछले प्रहरमें श्रीवत्सलाञ्छन श्रीहरि, उषःकालमें खड्गधारी भगवान् जनार्दन, सूर्योदयसे पूर्व श्रीदामोदर और सम्पूर्ण संध्याओंमें कालमूर्ति भगवान् विश्वेश्वर मेरी रक्षा करें ।। २० ॥
सुदर्शन ! आपका आकार चक्र ( रथके पहिये ) की तरह है । आपके किनारेका भाग प्रलयकालीन अग्निके समान अत्यन्त तीव्र है । आप भगवान्की प्रेरणासे सब ओर घूमते रहते हैं।
जैसे आग वायुकी सहायतासे सूखे घास-फूसको जला डालती है, वैसे ही आप हमारी शत्रु-सेनाको शीघ्र-सेशीघ्र जला दीजिये, जला दीजिये ।। २१ ।।
कौमोदकी गदा ! आपसे छूटनेवाली चिनगारियोंका स्पर्श वज्रके समान असह्य है । आप भगवान् अजितकी प्रिया हैं और मैं उनका सेवक हूँ। इसलिये आप कूष्माण्ड, विनायक, यक्ष, राक्षस, भूत और प्रेतादि ग्रहोंको पीत डालिये, कुचल डालिये तथा मेरे शत्रुओंको चूर-चूर कर दीजिये ।। २२ ॥
शङ्खश्रेष्ठ पाञ्चजन्य ! आप भगवान् श्रीकृष्णके फूंकनेसे भयंकर शब्द करके मेरे शत्रुओंका दिल दहलाते हुए यातुधान, प्रमथ, प्रेत, मातृका, पिशाच तथा ब्रह्मराक्षप्त आदि क्रूरदृष्टिवाले प्राणियोंको यहाँसे दूर भगा दीजिये ॥ २३ ॥
भगवान्की श्रेष्ठ तलवार ! आपकी धार बहुत तीक्ष्ण है। आप भगवान्की प्रेरणासे मेरे शत्रुओंको छिन्न-भिन्न कर दीजिये । भगवान्की प्यारी ढाल ! आपमें सैकड़ों चन्द्राकार मण्डल हैं। आप पापदृष्टि पापात्मा शत्रुओंकी आँखें बंद कर दीजिये और उन्हें सदाके लिये अंधा बना दीजिये ॥ २४ ॥
सूर्य आदि जिन-जिन ग्रह, धूमकेतु (पुच्छल तारे) आदि केतुओं दुष्ट मनुष्यों, सादि रेंगनेवाले जन्तुओं, दाढोंवाले हिंसक पशुओं तथा भूत-प्रेत आदि पापी प्राणियोंसे हमें भय हो और जो-जो हमारे मङ्गलके विरोधी हों-वे सभी भगवान्के नामरूपी आयुधोंका कीर्तन करनेसे तत्काल नष्ट हो जायें ॥ २५-२६॥
बृहद्, रथन्तर आदि सामवेदीय स्तोत्रोंसे जिनकी स्तुति की जाती है, वे वेदमूर्ति भगवान् गरुड और पार्षदश्रेष्ठ विष्वक्सेनजी अपने नामोंके द्वारा हमें सब प्रकारकी विपत्तियोंसे बचायें ।। २७ ।।
श्रीहरिके नाम, रूप, वाहन तथा आयुध हमें सब प्रकारकी आपत्तियोंसे बचायें और श्रेष्ठ पार्षद हमारी बुद्धि, इन्द्रिय, मन और प्राणोंकी रक्षा करें ॥ २८ ॥
जितना भी कार्य अथवा कारणरूप जगत् है, वह वास्तवमें भगवान् ही हैं—इस सत्यके प्रभावसे हमारे सारे उपद्रव नष्ट हो जायँ ।॥ २९ ॥
जो लोग ब्रह्म और आत्माकी एकताका अनुभव कर चुके हैं, उनकी दृष्टि में भगवान्का स्वरूप समस्त विकल्पों-भेदोंसे रहित है।
फिर भी वे स्वयं अपनी माया-शक्तिके द्वारा भूषण, आयुध और रूप नामक शक्तियोंको धारण करते हैं—यह बात निश्चितरूपसे सत्य है । इसी प्रमाणके बलसे सर्वज्ञ, सर्वव्यापक भगवान् श्रीहरि सदा-सर्वत्र सब स्वरूपोंसे हमारी रक्षा करें।। ३०-३१ ।।
जो अपने भयंकर अट्टहाससे सब लोगोंके भयको भगा देते हैं और अपने तेजसे सबका तेज ग्रस लेते हैं, वे भगवान् नृसिंह दिशाविदिशामें, नीचे-ऊपर, बाहर-भीतर-सब ओर हमारी रक्षा करें ॥ ३२ ॥
देवराज इन्द्र ! मैंने तुम्हें यह नारायणकवच सुना दिया। इस कवचसे सुरक्षित होकर तुम अनायास ही सब दैत्ययूथपतियोंको जीत लोगे ॥ ३३ ॥
इस नारायणकवचको धारण करनेवाला पुरुष जिसको भी अपने नेत्रोंसे देख लेता अथवा पैरसे छू देता है, वह तत्काल समस्त भयोंसे सर्वथा मुक्त हो जाता है ।। ३४ ।।
जो इस वैष्णवी विद्याको धारण कर लेता है, उसे राजा, डाकू, प्रेत-पिशाचादि ग्रहों आर बाघ आदि हिंसक जीवोंसे कभी किसी प्रकारका भय नही होता ।। ३५ ॥
सम्पूर्ण नारायण कवच विधी
Narayan Kavach
Narayan Kavach
[ स्तोत्र संग्रह ]
यहां पर उपयोगी स्तोत्रों की लिस्ट दी जा रही है जो भी स्तोत्र पड़ना हो आप उस पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं।
इस वेबसाइट पर आने के लिए आप गूगल में टाइप करें - bhagwat kathanak और इस वेबसाइट में आकर धार्मिक ज्ञान प्राप्त करें। सनातन धर्म को जानें।
- अथ सप्तश्लोकी दुर्गा
- अथ नवग्रह स्तोत्र
- गंगा अष्टकम स्तोत्र
- काल भैरव अष्टकम्
- सप्तश्लोकी गीता
- तुलसीस्तोत्रम्
- कृष्णाष्टकम् -भजे व्रजैक
- अच्युताष्टकम्
- कनकधारा स्तोत्र
- अन्नपूर्णा स्तोत्रम्
- श्रीविष्णुसहस्त्रनाम ,
- देव्यपराधक्षमापनस्तोत्रम् ,
- श्रीशिवपञ्चाक्षरस्तोत्रम् ,
- श्रीशिवमहिम्नःस्तोत्रम् ,
- शिव मानस पूजा ,
- गणेशपञ्चरत्नम् स्तोत्र ,
- श्रीसत्यनारायणाष्टकम् ,
- श्रीआदित्यहृदयस्तोत्रम् ,
- चाक्षुषी विद्या ,
- श्रीगणपत्यथर्वशीर्षम् ,
- श्रीसङ्कष्टनाशनगणेशस्तोत्रम् ,
- दारिद्र्यदहन शिव स्तोत्रम् ,
- रामरक्षा स्तोत्र ,
- नारायण कवच ,
- गजेन्द्र मोक्ष ,
- पापप्रशमनस्तोत्र ,
- जगन्मोहन अष्टकम ,
- जगन्नाथाष्टकम् स्तोत्र ,
- श्रीराधाष्टकम्