चाक्षुषोपनिषद् (चाक्षुषी विद्या*)
विनियोग-ॐ अस्याश्चाक्षुषीविद्याया अहिर्बुध्य ऋषिर्गायत्री छन्दः सूर्यो देवता चस्रोगनिवृत्तये विनियोगः।
ॐ चक्षुः चक्षुः चक्षुः तेजः स्थिरो भव। मां पाहि पाहि। त्वरितं चक्षूरोगान् शमय शमय। मम जातरूपं तेजो दर्शय दर्शय। यथा अहम् अन्धो न स्यां तथा कल्पय कल्पय। कल्याणं कुरु कुरु। यानि मम पूर्वजन्मोपार्जितानि चक्षुःप्रतिरोधकदुष्कृतानि सर्वाणि निर्मूलय निर्मूलय।
ॐ नमः चक्षुस्तेजोदात्रे दिव्याय भास्कराय। ॐ नमः करुणाकरायामृताय। ॐ नमः सूर्याय। ॐ नमो भगवते सूर्यायाक्षितेजसे नमः। खेचराय नमः। महते नमः। रजसे नमः। तमसे नमः। असतो मा सद्गमय। तमसो मा ज्योतिर्गमय। मृत्योर्मा अमृतं गमय। उष्णो भगवाञ्छुचिरूपः। हंसो भगवान् शुचिरप्रतिरूपः।
य इमां चाक्षुष्मतीविद्यां ब्राह्मणो नित्यमधीते न तस्याक्षिरोगो भवति। न तस्य कुले अन्धो भवति। अष्टौ ब्राह्मणान् सम्यग् ग्राहायत्वा विद्यासिद्धिर्भवति। ॐ नमो भगवते आदित्याय अहोवाहिनी स्वाहा।
॥ श्रीकृष्णयजुर्वेदीया चाक्षुषी विद्या सम्पूर्णा ॥
इस चाक्षुषी विद्याके श्रद्धा-विश्वासपूर्वक पाठ करनेसे नेत्रके समस्त रोग दूर हो जाते हैं।
आँखकी ज्योति रहती है। इसका पाठ नित्य करनेवालेके कुलमें कोई अन्धा नहीं होता। पाठके अन्तमें गन्धादियुक्त जलसे सूर्यको अर्घ्य देकर नमस्कार करना चाहिये।
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