भगवान् शिवका मनोहर ध्यान
shiva ji dhyan shlok

चारुचम्पकवर्णाभमेकवक्त्रं त्रिलोचनम् ।
ईषद्धास्यप्रसन्नास्यं रत्नवर्णादिभूषितम् ॥
मालतीमाल्यसंयुक्तं सद्रत्नमुकुटोज्ज्वलम् ।
सत्कण्ठाभरणं चारुवलयाङ्गदभूषितम् ॥
वह्निशौचेनातुलेन त्वतिसूक्ष्मेण चारुणा।
अमूल्यवस्त्रयुग्मेन विचित्रेणातिराजितम् ॥
चन्दनागरुकस्तूरीचारुकुङ्कुमभूषितम् ।
रत्नदर्पणहस्तं च कजलोज्ज्वललोचनम् ॥
सर्वस्वप्रभयाच्छन्नमतीव सुमनोहरम् ।
अतीव तरुणं रम्यं भूषिताङ्गैश्च भूषितम् ॥
कामिनीकान्तमव्यग्रं कोटिचन्द्राननाम्बुजम् ।
कोटिस्मराधिकतनुच्छविं सर्वाङ्गसुन्दरम् ॥
(शिवमहापुराण--रुद्रसंहिता, पार्वतीखण्ड ४५ । ५-१०)
भगवान् शिवकी मनोहर छविका इस प्रकार चिन्तन करे--उनकी अङ्गकान्ति मनोहर चम्पाके पुष्पकी भाँति उद्भासित हो रही है। उनके एक मुख है और वे तीन नेत्रों से सुशोभित हैं।
उनके मुखपर मन्द मुसकानके रूपमें प्रसन्नता खेल रही है । वे रत्न और स्वर्ण आदिके आभूषणोंसे विभूषित हैं । मालतीकी माला उनके गलेकी शोभा बढ़ा रही है।
वे परम सुन्दर रत्नमय मुकुटकी प्रभासे प्रकाशित हो रहे हैं। उनके कण्ठमें और भी बहुत-से सुन्दर आभूषण हैं । मनोहर वलय (कड़ा) और अंगद ( भुजबंद ) उनकी भुजाओंकी शोभा बढ़ा रहे हैं ।
वे आगमें तपाकर शुद्ध किये हुए बहुमूल्य, अनुपम, अत्यन्त सूक्ष्म, मनोहर एवं विचित्र वस्त्र और उपवस्त्रसे अत्यन्त शोभा पा रहे हैं। चन्दन, अगुरु, कस्तूरी और मनोहर कुंकुमसे विभूषित हैं।
उनके हाथमें रत्नमय दर्पण है और नेत्र कजरारे और उज्ज्वल हैं । उन्होंने अपनी प्रभासे सबको आच्छादित एवं प्रकाशित __ कर रखा है। उनका रूप अत्यन्त मनोहर है।
उनकी नयी तरुण अवस्था है । वे विभूषित अङ्गोंसे सुशोभित एवं परम रमणीय हैं। अपनी कामना करनेवाली गिरिराजनन्दिनीके वे कमनीय प्रियतम हैं। उनमें व्यग्रताका लेशमात्र भी नहीं है।
उनका मुखारविन्द करोड़ों चन्द्रमाओंसे भी कान्तिमान है। उनके श्रीअङ्गोंकी सुषमा करोड़ों कामदेवोंसे भी बढ़कर है और वे सर्वाङ्गसुन्दर हैं।
उनके मुखपर मन्द मुसकानके रूपमें प्रसन्नता खेल रही है । वे रत्न और स्वर्ण आदिके आभूषणोंसे विभूषित हैं । मालतीकी माला उनके गलेकी शोभा बढ़ा रही है।
वे परम सुन्दर रत्नमय मुकुटकी प्रभासे प्रकाशित हो रहे हैं। उनके कण्ठमें और भी बहुत-से सुन्दर आभूषण हैं । मनोहर वलय (कड़ा) और अंगद ( भुजबंद ) उनकी भुजाओंकी शोभा बढ़ा रहे हैं ।
वे आगमें तपाकर शुद्ध किये हुए बहुमूल्य, अनुपम, अत्यन्त सूक्ष्म, मनोहर एवं विचित्र वस्त्र और उपवस्त्रसे अत्यन्त शोभा पा रहे हैं। चन्दन, अगुरु, कस्तूरी और मनोहर कुंकुमसे विभूषित हैं।
उनके हाथमें रत्नमय दर्पण है और नेत्र कजरारे और उज्ज्वल हैं । उन्होंने अपनी प्रभासे सबको आच्छादित एवं प्रकाशित __ कर रखा है। उनका रूप अत्यन्त मनोहर है।
उनकी नयी तरुण अवस्था है । वे विभूषित अङ्गोंसे सुशोभित एवं परम रमणीय हैं। अपनी कामना करनेवाली गिरिराजनन्दिनीके वे कमनीय प्रियतम हैं। उनमें व्यग्रताका लेशमात्र भी नहीं है।
उनका मुखारविन्द करोड़ों चन्द्रमाओंसे भी कान्तिमान है। उनके श्रीअङ्गोंकी सुषमा करोड़ों कामदेवोंसे भी बढ़कर है और वे सर्वाङ्गसुन्दर हैं।
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