निर्जला एकादशी-व्रत का महत्व
nirjala ekadashi vrat ka mahatva
जानिए निर्जला एकादशी व्रत का महत्व ...
ज्येष्ठ कृष्णा परमा एकादशी
धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्णजी से कहा कि ज्येष्ठ कृष्णा एकादशी के व्रत का क्या महत्व है। सो बतलाईये।
श्रीकृष्ण भगवान बोले-हे धर्मराज! इस एकादशी का नाम अपरा एकादशी है। इस व्रत को करने से सब पाप छूटकर महान सुख को भोगता है।
संसार में जितने भी गऊहत्या, ब्रह्म हत्या आदि महापाप हैं वे सब एक एकादशी के व्रत करने से छूट जाते हैं और अन्त में मोक्ष मिलता है।
रिश्वत लेने वाला, झूठी गवाही देने वाला, लड़ाई में कायरता दिखाने वाला, व्यापार में जरूरत से अधिक लाभ लेने वाला आदि सभी प्रकार के अपराधी भी इस अपरा एकादशी के व्रत करने से अपराध से छूट जाते हैं।
पुष्कर, प्रयाग, काशी आदि तीर्थ स्थानों में स्नान करने तथा स्वर्णदान, गौदान, भूदान करने से जो फल मिलता है वह इस अपरा एकादशी के करने से मिलता है।
विधि विधान से इस व्रत को करने से भक्त पर भगवान प्रसन्न होकर सुखों की वर्षा करते हैं। इसलिए सब सुखों को पाने के लिए अपरा एकादशी का व्रत करना चाहिए।
ज्येष्ठ शुक्ला निर्जला एकादशी
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा-हे धर्मराज! अब मैं तुम्हें शुक्ल पक्ष में आने वाली अति उत्तम निर्जला एकादशी की कथा सुनाऊँगा जिसके करने से व्यक्ति के सभी दुःख दारिद्र छूटकर उसके इच्छित फल प्राप्त होते हैं इसलिये मन से सुनो।
एक बार भीमसेन ने वेदव्यास जी से प्रार्थना की कि मेरे भाई पांडव, मेरी माता कुन्तीऔर मेरी पत्नी हमेशा मुझे एकादशी का व्रत करने के लिए आग्रह करते रहते हैं लेकिन मेरे पेट में वृक नामक अग्नि का निवास होने से मेरे को हर समय भूख रहती है और उसको शांत करने के लिए मैं कुछ न कुछ खाता-पीता रहता हूँ इसलिए मैं भूखा रहकर कोई व्रत नहीं कर सकता कृपा करके मेरे को कोई दूसरा व्रत बताइये जिससे यह संकट दूर हो सके।
वेदव्यासजी ने कहा कि आपको एक माह में आने वाली दो एकादशियों का व्रत करना पड़ेगा जिससे आपको स्वर्ग मिल सके। भीमसेन बोला-मेरे को एक ही ऐसा व्रत बताओ जिसके करने से साल की एकादशियों के व्रत करने का फल मिल सके।
वेदव्यास जी बोले हे भीमसेन! तुम्हें ज्येष्ठ शुक्ला निर्जला एकादशी का व्रत करना चाहिए। इस व्रत के करने वालों को काम, क्रोध, लोभ मोह, छल-कपट, हिंसा और अभिमान का त्याग कर देना चाहिए विधि यह है कि दशमी के दिन स्नानादि करके पवित्र वस्त्र धारण करने चाहिए।
उसके बाद रात्रि में जल पूरी तरह से भरकर आचमन करना चाहिए। रात्रि को जागरण कर द्वादशी को कीर्तन और सत्संग करना चाहिए।
निर्जला एकादशी-व्रत का क्या महत्व है
प्रातःकाल अपनी शक्ति अनुसार ब्राह्मणों को भोजन, वस्त्र तथा धन दान करें और फिर अन्न-जल ग्रहण करना चाहिए।
इस प्रकार विधिपूर्वक निर्जला एकादशी का व्रत करने से तुम सब संकटों से छूटकर वीरों में श्रेष्ठ कहलाओगे।
भीमसेन ने वेदव्यास के कथानुसार निर्जला एकादशी का व्रत किया और ब्राह्मणों को भोजन तथा इच्छानुसार दान दिया जिसके प्रभाव से वे सब संकटों से छूटकर वीरों में श्रेष्ठ वीर कहलाये और सब सुखों को प्राप्त हुए।