धनका मोह करने से कल्याण नहीं होता
dhan Ka moh na kare
- हमें धन के मोह से बचना चाहिए क्योंकि यह मोह है, विनाश का मूल कारण है |
हम अपने इस लेख में कुछ श्लोक और उनके अर्थ बताएंगे जो हमें प्रेरणा देते हैं कि हमें धन के मोह से बचना चाहिए |यह श्लोकार्थ हम पद्मपुराण के सृष्टिखंड से ले रहे हैं,, आशा करते हैं कि यह लेख आप के लिए उपयोगी साबित होगा |
अनर्थों ब्राह्मणस्यैष यदर्थनिचयो महान् ।
अर्थश्वर्यविमूढो हि श्रेयसो भ्रश्यते द्विजः ॥
अर्थश्वर्यविमूढो हि श्रेयसो भ्रश्यते द्विजः ॥
यदि ब्राह्मणके पास धनका महान् संग्रह हो जाय तो यह उसके लिये अनर्थका ही हेतु है; धन-ऐश्वर्यसे मोहित ब्राह्मण कल्याणसे भ्रष्ट हो जाता है।
अर्थसम्पद्विमोहाय विमोहो नरकाय च।
तस्मादर्थमनर्थाय श्रेयोऽर्थी दूरतस्त्यजेत् ॥
तस्मादर्थमनर्थाय श्रेयोऽर्थी दूरतस्त्यजेत् ॥
धन-सम्पत्ति मोहमें डालनेवाली होती है । मोह नरकमें गिराता है, इसलिये कल्याण चाहनेवाले पुरुषको अनर्थक साधनभूत अर्थका दूर ही परित्याग कर देना चाहिये।
यस्य धर्मार्थमर्थहा तस्यानीहा गरीयसी।
प्रक्षालनाद्धि पङ्कस्य दूरादस्पर्शनं वरम् ॥
प्रक्षालनाद्धि पङ्कस्य दूरादस्पर्शनं वरम् ॥
जिसको धर्मके लिये धनसंग्रहकी इच्छा होती है, उसके लिये उस इच्छाका त्याग ही श्रेष्ठ है; क्योंकि कीचड़को लगाकर धोनेकी अपेक्षा उसका दूरसे स्पर्श न करना ही उत्तम है।
योऽर्थेन साध्यते धर्मः क्षयिष्णुः स प्रकीर्तितः ।
यः परार्थे परित्यागः सोऽक्षयो मुक्तिलक्षणम् ॥
धनके द्वारा जिस धर्मका साधन किया जाता है, वह क्षयशील माना गया है । दूसरेके लिये जो धनका परित्याग है, वही अक्षय धर्म है, वही मोक्षकी प्राप्ति करानेवाला है।
- ( पद्म० सृष्टि० १९ । २५०-२५३ )
धनका मोह करने से कल्याण नहीं होता
dhan Ka moh na kare