मनुष्यका हक कितनेपर
How much human rights
यावद् भ्रियेत जठरं तावत् स्वत्वं हि देहिनाम् ।
अधिकं योऽभिमन्येत स स्तेनो दण्डमर्हति ॥
मनुष्योंका हक केवल उतने ही धनपर है, जितनेसे उनका पेट भर जाय । इससे अधिक सम्पत्तिको जो अपनी मानता है, वह चोर है, उसे दण्ड मिलना चाहिये ।
मृगोष्ट्रखरमर्काखुसरीसृप्खगमक्षिकाः ।
आत्मनः पुत्रवत् पश्येत्तैरेषामन्तरं कियत् ॥
हरिन, ऊँट, गधा, बंदर, चूहा, सरीसृप (रेंगकर चलनेवाले प्राणी), पक्षी और मक्खी आदिको अपने पुत्रके समान ही समझे। उन्हें और पुत्रों को अन्तर ही क्यों।
(श्रीमद्भा० ७ । १४ । ८-९ )
( हक छोड़नेवाले संत )
कृमिविभस्मनिष्टान्तं क्वेदं तुच्छं कलेवरम् ।
क्व तदीयरतिर्भार्या क्वायमात्मा नभश्छदिः ॥
यह शरीर अन्तमें कीड़े, विष्ठा या राखकी ढेरी होकर रहेगा । कहाँ तो यह तुच्छ शरीर और इसके लिये जिसमें आसक्ति होती है वह स्त्री, और कहाँ अपनी महिमासे आकाशको भी ढक रखनेवाला अनन्त आत्मा !
सिद्धैर्यज्ञावशिष्टाथैः कल्पयेद् वृत्तिमात्मनः ।
शेषे स्वत्वं त्यजन्प्राज्ञः पदवीं महतामियात् ॥
गृहस्थको चाहिये कि प्रारब्धसे प्राप्त और पञ्चयज्ञ आदिसे बचे हुए अन्नसे ही अपना जीवन-निर्वाह करे । जो बुद्धिमान् पुरुष इतनेके सिवा शेष सबपरसे अपना हक त्याग देते हैं, उन्हें संतोंका पद प्राप्त होता है।
(श्रीमद्भा० ७ । १४ । १३-१४ )
मनुष्यका हक कितनेपर
How much human rights
Harin, camel, donkey, monkey, rat, reptile (crawling animal), bird and fly etc. were considered like his son. What is the difference between them and sons.
Rightful saint
This body will eventually be surrounded by insects, feathers or ashes. Where is this insignificant body and the woman who has attachment for it, and where is the everlasting soul covering the sky with its glory!The householder should take care of his life from the predetermined and the leftovers from the magistrate etc.
The wise men who relinquish their rights to everyone but others get the rank of saints.
मनुष्यका हक कितनेपर
How much human rights