।।जय जय रघुवीर समर्थ।।
दास्य भक्ति का अनुपम उदाहरण
🌷दास्य भक्ति🌷
सो अनन्य जाके असि मति न टरइ हनुमंत।
मैं सेवक सचराचर रूप स्वामी भगवंत।।
भगवान के गुण, तत्व, रहस्य और प्रभाव को जानकर श्रद्धा प्रेम पूर्वक उनकी सेवा करना और उनकी आज्ञा का पालन करना दास्य भक्ति है। मंदिरों में भगवान के विग्रह की सेवा करना, मन में प्रभु के स्वरूप का ध्यान करके उनकी सेवा करना, सम्पूर्ण चराचर को ईश्वर का स्वरूप जान कर यथा शक्ति सबकी सेवा करना, गीता आदि शास्त्रों के बताये गये मार्ग पर भगवान की आज्ञा मानकर चलना और जो कर्म भगवान की रुचि, प्रसन्नता और इच्छा के अनुकूल हो उन्हीं कर्मों को करना ये सभी दास्य भक्ति के प्रकार है।
अब अगर कोई कहे कि दास्य भक्ति प्राप्त कैसे हो। भगवान के रहस्यों को जानने वाले प्रेमी भक्तों के संग और सेवन से दास्य भक्ति की प्राप्ति होती है। दास्य भक्ति से मनुष्य को सहज ही भगवान की प्राप्ति हो जाती है।
श्री काकभुशुण्डि जी श्री गरुड़ जी से कहते हैं~
सेवक सेव्य भाव बिनु भव न तरिअ उरगारि।
श्री हनुमान जी का तो सारा जीवन ही दास्य भक्ति से ओतप्रोत है। दास्य भक्ति का भक्त अपने स्वामी की कृपा का कितना विश्वासी होता है, इसके संबंध में श्री हनुमान जी ने विभीषण जी से जो कहा वह याद करने योग्य:- सुनहु विभीषण प्रभु कै रीति, करहि सदा सेवक पर प्रीती।
इसी प्रकार जब अंगद जी को राम जी अयोध्या जी से लौटने को कहते है, तो अंगद जी प्रभु से कहते है:-
मोरे तुम्ह प्रभु गुर पितु माता,
जाऊँ कहाँ तजि पद जलजाता।
दास्य भक्ति के ऐसे अनेकों उदाहरण श्रीरामचरितमानस, भक्तमाल, भागवत आदि धर्म ग्रंथों में प्राप्त होते है। अतः तन, मन, धन सबकुछ भगवान को समर्पित करके दास्य भक्ति को स्वीकार करना चाहिए।
दास्य भक्ति का अनुपम उदाहरण
*।।श्री राम जय राम जय जय राम।।*
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