जय जय रघुवीर समर्थ
sita ka janam kaise hua story in hindi
- श्री सीता माता के अवतार की कथा
आदिसक्ति जेहिं जग उपजाया।
सोउ अवतरिहि मोरि यह माया।। मानस-1/151/4*
🏹पवित्र ग्रंथ "श्री रामायण" के अनुसार, एक बार मिथिला राज्य में कई वर्षों से बारिश नहीं हो रही थी। इससे मिथिला नरेश जनक जी (सीरध्वज) बहुत चिंतित हो उठे।इसके लिए उन्होंने ऋषि मुनियों से विचार-विमर्श किया और मार्ग प्रशस्त करने का अनुरोध किया। उस समय ऋषि मुनियों ने राजा जनक को खेत में हल चलाने की सलाह दी।
उन्होंने कहा कि अगर आप ऐसा करते है तो इंद्र देवता की कृपा जरूर बरसेगी। राजा जनक ने ऋषि मुनियों के वचनानुसार, वैशाख माह में शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन खेत में हल चलाया। इसी दौरान उनके हल से कोई वस्तु टकराई, यह देखकर राजा जनक ने सेवादारों से उस स्थान पर खुदाई करवाया।
उस समय खुदाई में उन्हें एक कलश प्राप्त हुआ, जिसमें एक कन्या थी। राजा जनक ने उन्हें अपनी पुत्री मानकर उनका पालन-पोषण किया। तत्कालीन समय में हल को "सीत" कहा जाता था। इसलिए राजा जनक ने उस कन्या का नाम "सीता" रखा।
प्रमाण के लिए देखें-
"या सीराग्रतो जातः सा एव सीता।
श्री जानकी माता के जन्म संबंध में पुराणों और धर्मग्रंथों में अलग-अलग कथाएं मिलती हैं।जन्म संबंध से माता सीता जी के अलग-अलग नामों का भी उल्लेख है~
०१~भूमिजा~ भूमि से उत्पन्न।
०२~जनकात्मजा~ जनक की पुत्री
*विदेह राजो जनकः सीता तस्यात्मजा विभो।*
०३~जनक की मानसी कन्या~ *"मेनकायाः समुत्पन्ना कन्येयं मानसी तव।" (वाल्मीकि रामायण)*
०४~वेदवती का सीता होना~ वाल्मीकि रामायण के अनुसार ऋषि कुशध्वज की पुत्री "वेदवती" नारायण को पति रूप में पाने हेतु तपस्या करती है।
०५~रावणात्मजा~ रावण की पुत्री।
०६~रक्तजा सीता~ रक्त से उत्पन्न सीता।
दिग्विजयी रावण ने ऋषियों से कर-रूप में रक्त एकत्रित किया। जिस पात्र में रावण ने यह रक्त रखा था, वह "ऋषि गृत्समद" का था, जिसमें थोडा सा कुश का रस था। इस पात्र में ऋषि के मंत्र प्रभाव से लक्ष्मी जी विद्यमान थी।
०७~अग्नि से उत्पन्न सीता
०८~फलजा सीता~ इस कथा के अनुसार लक्ष्मी जी की उत्पत्ति एक फल से होती है, जिसका पालन-पोषण "वेदमुनी" नामक ऋषि करते हैं।
०९~वृक्ष से उत्पन्न सीता~ ब्रम्हचक्र के अनुसार माता सीता जी की उत्पत्ति रावण के वाटिका के एक वृक्ष से होती है।
१०~पद्मजा~ कमल से उत्पन्न सीता।
उक्त के अतिरिक्त माता सीता जी के जन्म संबंध में और अनेकों कथाएं प्राप्त होती है। परन्तु बहु-प्रचलित मान्य कथा वही है, जो भूमिजा सीता के क्रम में वर्णित है।
*निष्कर्षतः* जैसे श्री राम जी परात्पर परब्रह्म परमात्मा और *"बिधि हरि हर बंदित पद रेनू"* है, वैसे ही माता सीता जी *मूलप्रकृति, आदि शक्ति, पराम्बा भगवती, महामाया और राघव की नित्य आल्हादिनी परात्पर पराशक्ति तथा जगत् की उत्पत्ति कारिका है।*
यदि श्री राम जी के चरणधूलि की वंदना बिधि, हरि, हर करते हैं तो गोस्वामी जी ने सीता माता के लिए भी लिखा है कि~
उमा रमा ब्रम्हादि बंदिता।
जगदंबा संततमनिंदिता।
श्री सीता माता के अवतार की कथा