।।जय जय रघुवीर समर्थ।।
ज्ञानवर्धक कहानियां
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- मित्र कैसा नहीं होना चाहिए?
- इस विषय में गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं~
आगें कह मृदु बचन बनाई।
पाछें अनहित मन कुटिलाई॥
जाकर चित अहि गति सम भाई।
अस कुमित्र परिहरेहिं भलाई॥
भावार्थ~
जो सामने तो बना-बनाकर कोमल वचन कहता है और पीठ-पीछे बुराई करता है तथा मन में कुटिलता रखता है- हे भाई! (इस तरह) जिसका मन साँप की चाल के समान टेढ़ा है, ऐसे कुमित्र को तो त्यागने में ही भलाई है।
एक बार उल्लू और बाज में दोस्ती हो जाती है। दोनों साथ बैठकर खूब बातें करते हैं। बाज ने उल्लू से कहा कि अब जब हम दोस्त बन ही गए हैं, तो मैं तुम्हारे बच्चों पर कभी हमला नहीं करूंगा और न ही उन्हें मारकर खाऊंगा। लेकिन मेरी समस्या यह है कि मैं उन्हें पहचानूंगा कैसे कि ये तुम्हारे ही बच्चे हैं?
उल्लू ने कहा कि तुम्हारा बहुत-बहुत शुक्रिया दोस्त। मेरे बच्चों को पहचानना कौन-सा मुश्किल है भला। वो बेहद खूबसूरत है, उनके सुनहरे पंख हैं और उनकी आवाज़ एकदम मीठी-मधुर हैं।
बाज ने कहा ठीक है दोस्त, मैं अब चला अपने लिए भोजन ढूंढ़ने। बाज उडते हुए एक पेड़ के पास गया। वहां उसने एक घोसले में चार बच्चे देखे। उनका रंग काला था, वो जोर-जोर से कर्कश आवाज में चिल्ला रहे थे। बाज ने सोचा न तो इनका रंग सुनहरा, न पंख, न ही आवाज़ मीठी-मधुर, तो ये मेरे दोस्त उल्लू के बच्चे तो हो ही नहीं सकते। मैं इन्हें खा लेता हूँ और बाज ने उन बच्चों को खा लिया।
इतने में ही उल्लू उड़ते हुए वहाँ पहुंचा और उसने कहा कि ये तुने क्या किया? ये तो मेरे बच्चे थे। बाज हैरान था कि उल्लू ने उससे झूठ बोलकर उसकी दोस्ती को भी धोखा दिया। वो वहाँ से चला गया।
उल्लू मातम मना रहा था कि तभी एक कौआ आया और उसने कहा कि अब रोने से क्या फायदा, तुमने बाज से झूठ बोला, अपनी असली पहचान छिपाई और इसी की तुम्हें सज़ा मिली।
शिक्षा~ कभी भी अपनी असली पहचान छिपाने की भूल नहीं करनी चाहिए। न ही दोस्तों को धोखा देने की कोशिश करनी चाहिए।
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