महाकालेश्वर मंदिर उज्जैन के बारे में- महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की कहानी
Mahakaleshwar Jyotirlinga
स्थिति- गांव के के लिए मंदिर होता है लेकिन मंदिर के लिए गांव होता है | या मन्दिरों का हि गांव होता है | यह बहुत कम सुनने को मिलता है |मध्यप्रदेश में क्षिप्रा नदी के किनारे उज्जैन नगर बसा हुआ है, जिस नगर को इंद्रपुरी- अमरावती या अवंतिका कहते हैं | यहां सैकड़ों मंदिरों की स्वर्ण चाटियों को देखकर इस नगर को स्वर्ण शृंगा भी कहते हैं |मोक्ष दायक सप्त पुर मे से एक इस नगर में 7 सागर तीर्थ हैं, 28 तीर्थ, 84 सिद्ध लिंग, 25-30 शिवलिंग, अष्टभैव, एकादश रुद्रस्थान, सैकड़ों देवताओं के मंदिर, जलकुंड और स्मारक है | ऐसा महसूस होता है की,
33 करोड़ देवताओं की इंद्रपुरी इस उज्जैन में बसी हुई है |
अवंतीवासी एक ब्राह्मण के शिवोपासक चार पुत्र थे | ब्रह्मा से वर प्राप्त दुष्ट दैत्यराज दूषण ने अवंती में आकर वहां के निवासी वेद पढ़ने वाले ब्राह्मणों को बड़ा कष्ट दिया, परंतु शिवजी के ध्यान में लीन ब्राम्हण तनिक भी खिन्न नहीं हुए |दैत्य राज ने अपने चारो अनुचर दैत्यों को नगरी में घेरकर वैदिक धर्म अनुष्ठान ना होने देने का आदेश दिया , दैत्यों के उत्पात से पीड़ित प्रजा ब्राह्मणों के पास आई | ब्राह्मण प्रजाजनों को धीरज बंधाकर शिवजी की पूजा में तत्पर हुए |
इसी समय ज्यों ही दूषण दैत्य अपनी सेना सहित उन ब्राह्मणों पर झपटा तभी पार्थिव मूर्ति के स्थान पर एक भयंकर शब्द के साथ धरती फटी और वहां पर गड्ढा हो गया | उसी गर्त में शिव जी का विराट रूप धारी महाकाल के रूप में प्रकट हुए |
उन्होंने उस दुष्ट को ब्राह्मणों के निकट ना जाने को कहा परन्तु उस दुष्ट ने शिवजी की आज्ञा ना मानी फलतः शिव जी ने अपनी एक ही हुंकार से उस दैत्य को भस्म कर दिया | शिव जी को इस रूप में प्रगट हुआ देखकर ब्रम्हा, विष्णु तथा इंद्र आदि देवों ने आकर भगवान शंकर की स्तुति वंदना की |
महाकालेश्वर की महिमा अवर्णनीय है |
उज्जैनी नरेश चंद्रसेन शास्त्रज्ञ होने के साथ पक्का शिवभक्त भी था |उसके मित्र माहेश्वर जी के गण भद्र मणिभद्र ने उसे एक सुन्दर चिन्तामणि प्रदान की | चन्द्रसेन कण्ठ में धारण करता था तो इतना अधिक तेजस्वी दीखता था कि देवताओं को भी ईर्ष्या होती |कुछ राजाओं के मांगने पर मणि से इनकार करने पर उन्होंने चंद्रसेन पर चढायी कर दी |चंद्रसेन महाकाल की शरण में आ गया , भगवान शंकर प्रसन्न होकर उसकी रक्षा का उपाय किया | संयोगवश अपने बालक को गोद में लिए हुए एक ब्राह्मणी भ्रमण करती हुए महाकाल के समीप पहुंची तो वह विधवा हो गई |
अबोध बालक ने महाकालेश्वर मंदिर में राजा को शिव पूजन करते देखा तो उसके मन में भी भक्ति भाव उत्पन्न हुआ, उसने एक रमणीय पत्थर को लाकर सूने घर में स्थापित किया उसको शिव रूप मान उसकी पूजा करने लगा भजन में लीन बालक को भोजन की सुधि ही नहीं रही, माता उसे बुलाने गई ,
बार-बार बुलाने पर भी बालक ध्यान मग्न हो बैठा रहा |
इस पर उसकी माया विमोहित माता ने शिवलिंग को दूर फेंक कर उस उसकी पूजा नष्ट कर दी | माता के इस कृत्य पर दुखी हो वह शिवभक्त स्मरण करने लगा | शिवजी की कृपा होते देर नहीं लगी , गोपी पुत्र द्वारा पूजित पाषाण रत्न जड़ित ज्योतिर्लिंग रूप में आविर्भूतहो गया |
शिवजी की स्तुति वंदना के उपरांत जब बालक घर को गया तो उसने देखा कि उसकी कुटिया के स्थान शुविशाल भवन ले लिया है , इस प्रकार शिव जी की कृपा से वह बालक विपुल धन-धान्य से समृद्ध होकर जीवन बिताने लगा |
इधर विरोधी राजाओं ने जब चंद्रसेन के नगर पर अभियान किया तो वे आपस में ही एक दूसरे से कहने लगे कि राजा चंद्रसेन तो शिवभक्त है और यह उज्जैनी नगरी है , जिसे जीतना असंभव है वह विचार कर उन राजाओं ने चन्द्रसेन से मित्रता कर ली और सब मिलकर महाकाल की पूजा की |
इस समय वहां वानराधीस हनुमान जी प्रकट हुए और उन्होंने राजाओं को बताया कि शिवजी के बिना गति देने वाला अन्य कोई नहीं है वह तो बिना मंत्रों से की गई पूजा से भी प्रसन्न हो जाते हैं | गोपी पुत्र का तुम्हारे सामने ही है | इसके पश्चात हनुमान जी चंद्रसेन को स्नेह और कृपा पूर्ण दृष्टि से देखकर वहीं अंतर्धान हो गए |
इधर विरोधी राजाओं ने जब चंद्रसेन के नगर पर अभियान किया तो वे आपस में ही एक दूसरे से कहने लगे कि राजा चंद्रसेन तो शिवभक्त है और यह उज्जैनी नगरी है , जिसे जीतना असंभव है वह विचार कर उन राजाओं ने चन्द्रसेन से मित्रता कर ली और सब मिलकर महाकाल की पूजा की |
इस समय वहां वानराधीस हनुमान जी प्रकट हुए और उन्होंने राजाओं को बताया कि शिवजी के बिना गति देने वाला अन्य कोई नहीं है वह तो बिना मंत्रों से की गई पूजा से भी प्रसन्न हो जाते हैं | गोपी पुत्र का तुम्हारे सामने ही है | इसके पश्चात हनुमान जी चंद्रसेन को स्नेह और कृपा पूर्ण दृष्टि से देखकर वहीं अंतर्धान हो गए |
संस्कृत विद्या का आद्यपीठ ऐर धर्म ज्ञान तथा कला का त्रिवेणी संगम यहां हुआ है |
इस नगर का वैभव माौर्य, गुप्त और अन्य राजाओं ने बढ़ाया है | संवतकर्ता विक्रमादित्य के साम्राज्य की उज्जैन राजधानी थी | यहां राजा भर्तहरि की विरह- कथा, नीतिशतक, प्रद्योत की राजकन्या वासदत्ता और उदयन की प्रेम कहानी , इस नगर का प्रकृति- सौन्दर्य आदि का वर्णन अनेक लेखकों ने किया है |प्रभात के मंगल समय पर नगर की स्त्रियां कुमकुम मिश्रित पानी आंगन में छिड़क कर उसे रंगोली से सुशोभित किया करती थी | प्रातः कालीन पूजा छिप्रा नदी के किनारे उज्जैन में इस महाकाल शिव के मंदिर में प्रातः 4:00 बजे पूजा होती है ,
अभिषेक के पश्चात महाकाल को चिता भस्म लगाया जाता है |
शास्त्र में चिता भस्म अशुद्ध माना गया है चिता भस्म का स्पर्श हो तो स्नान करना पड़ता है, परंतु महाकाल शिव के स्पर्श से भष्म पवित्र होती है क्योंकि शिव निष्काम है उन्हें काम का स्पर्श नहीं है | इसीलिए शिवजी मंगलमय है इस प्रकार की मंगलमय सुंदर अवंती नगरी शिव की प्रिय नगरी है |महाकाल के जो दर्शन करते हैं उसे स्वप्न में भी दुख नहीं होता, मानव जिस जिस कल्पना से महाकाल के ज्योतिर्लिंग की उपासना करता है उसके सभी की सिद्धि मिलती है , मोक्ष की प्राप्ति होती है |
महाकालेश्वर मंदिर उज्जैन के बारे में- महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की कहानी