F swami vivekananda ke kathan hindi main स्वामी विवेकानंद के कथन - bhagwat kathanak
swami vivekananda ke kathan hindi main स्वामी विवेकानंद के कथन

bhagwat katha sikhe

swami vivekananda ke kathan hindi main स्वामी विवेकानंद के कथन

swami vivekananda ke kathan hindi main स्वामी विवेकानंद के कथन
swami vivekananda ke kathan hindi main
swami vivekananda ke kathan hindi main स्वामी विवेकानंद के कथन
स्वामी विवेकानंद के विचार लिखित में
कुटुम्बी-मित्र, धर्म-कर्म, बुद्धि और बाहरी विषयों के प्रति लोगोंकी जो आसक्ति देखी जाती है, वह केवल सुख . प्राप्ति के लिये है।

परंतु जिस आसक्तिको लोग सुखका साधन समझ बैठे हैं, उससे सुखके बदले दुःख ही मिलता है। बिना अनासक्त हुए हमें आनन्द नहीं मिलेगा ।

इच्छाओंका अंकुर हृदयमें उत्पन्न होते ही उसे उखाड़कर फेंक देनेकी जिनमें शक्ति है, उनके समीप दुःखोंकी छायातक नहीं पहुँच सकती।

अत्यन्त आसक्त मनुष्य उत्साहके साथ जिस प्रकार कर्म करता है, उसी प्रकार कर्म करते हुए भी उससे एकदम नाता तोड़ देनेकी जिसमें सामर्थ्य है, वही प्रकृतिद्वारा अनन्त सुखोंका उपभोग कर सकता है।

परंतु यह दशा तब प्राप्त हो सकती है, जब कि उत्साहसे कार्य करनेकी आसक्ति और उससे पृथक होनेकी अनासक्तिका बल समान हो।

कुछ लोग बिल्कुल अनासक्त देख पड़ते हैं। न उनका किसीपर प्रेम होता है और न वे संसारमें ही लीन रहते हैं। मानो उनका हृदय पत्थरका बना होता है । वे कभी दुखी नहीं दीख पड़ते । परंतु संसारमें उनकी योग्यता कुछ भी नहीं है, क्योंकि उनका मनुष्यत्व नष्ट हो चुका है।

इस दीवारने जन्म पाकर कभी दुःखका. अनुभव न किया होगा और न इसका किसीपर प्रेम ही होगा। यह आरम्भसे अनासक्त है।

परंतु ऐसी अनासक्ति से तो आसक्त होकर दुःख भोगना ही अच्छा । पत्थर बनकर बैठने से दुःखोंसे सामना नहीं करना पड़ता—यह बात सत्य है परंतु फिर सुखोंसे भी तो वञ्चित रहना पड़ता है।

यह केवल चित्तकी दुर्बलतामात्र है । यह एक प्रकारका मरण है । जड बनना हमारा साध्य नहीं है । आसक्ति होनेपर उसका त्याग करनेमें पुरुषार्थ है । मनकी दुर्बलता सब प्रकारके बन्धनोंकी जड़ है । दुर्बल मनुष्य संसारमें तुच्छ गिना जाता है, उसे यशः-प्राप्तिकी आशा ही न रखनी चाहिये ।

शारीरिक और मानसिक दुःख दुर्बलतासे ही उत्पन्न होते हैं। हमारे आस-पास लाखों रोगोंके कीटाणु हैं; परंतु जबतक हमारा शरीर - सुदृढ़ है तबतक उसमें प्रवेश करनेका उन्हें साहस नहीं होता ।

जबतक हमारा मन अशक्त नहीं हुआ है, तबतक दुखो की क्या मजाल है जो वे हमारी ओर आँख उठाकर भी देंखे  ।

शक्ति ही हमारा जीवन और दुर्बलता ही मरण  है । मनोबल ही सुखसर्वस्व, चिरन्तन जीवन और अमरत्व तथा दुरबलता ही रोगसमूह, दुःख और मृत्यु है।
swami vivekananda ke kathan hindi main 
स्वामी विवेकानंद के कथन

Ads Atas Artikel

Ads Center 1

Ads Center 2

Ads Center 3