- swami vivekananda ke thought hindi mein
किसी वस्तु से प्रेम करना-अपना सारा ध्यान उसीमें लगा देना - दूसरोंके हित-साधनमें अपने-आपको भूल जाना - यहां तक कि कोई तलवार लेकर मारने आये, तो भी उस ओर से मन चलायमान न हो—इतनी शक्ति हो जाना भी एक प्रकारका दैवी गुण है ।
वह एक प्रबल शक्ति है, परंत उसीके साथ मनको एकदम अनासक्त बनानेका गुण भी मनुष्यके लिये आवश्यक है।
क्योंकि केवल एक ही गुणके बलपर कोई पूर्ण नहीं हो सकता । भिखारी कभी सुखी नहीं रहते; क्योंकि उन्हें अपने निर्वाहकी सामग्री जुटानेमें लोगोंकी दया और तिरस्कारका अनुभव करना पड़ता है।
यदि हम अपने कर्मका प्रतिफल चाहेंगे तो हमारी गिनती भी भिखारियोंमें होकर हमें सुख नहीं मिलेगा। देन-लेनकी वणिकवृत्ति अवलम्बन करनेसे हमारी हाय-हाय कैसे छूट सकती है ।
धार्मिक लोग भी कीर्तिकी अपेक्षा रखते हैं, प्रेमी प्रेमका बदला चाहते हैं। इस प्रकारकी अपेक्षा या स्पृहा ही सब दुःखोकी जड़ है।
कभी-कभी व्यापारमें हानि उठानी पड़ती है प्रेमके बदले दुःख भोगने पड़ते हैं। इसका कारण क्या है ?
हमारे कार्य अनासक्त होकर किये हुए नहीं होते-आशा हमें फसाती है और संसार हमारा तमाशा देखता है । प्रतिफल की आशा न रखनेवालेको ही सच्ची यश:-प्राप्ति होती है।
swami vivekananda ke thought hindi mein