साधारण तौरसे विचार करनेपर यह बात व्यवहारसे विरुद्ध दीख पड़ेगी; परंतु वास्तवमें इसमें कोई विरोध नहीं, किंतु विरोधाभासमात्र है ।
जिन्हें किसी प्रकारके प्रतिफलकी इच्छा नहीं, ऐसे लोगोंको अनेक कष्ट भोगते हुए हम देखते हैं। परंतु उनके वे कष्ट उन्हें प्राप्त होनेवाले सुखोंके सामने पासंगेके बराबर भी नहीं होते।
महात्मा ईसाने जीवनभर निःस्वार्थभावसे परोपकार किया और अन्तमें उन्हें फाँसीकी सजा मिली।
यह बात असत्य नहीं है। परंतु सोचना चाहिये कि अनासक्तिके बलपर उन्होंने साधारण विजय-सम्पादन नहीं किया था। करोड़ों लोगोंको मुक्तिका रास्ता बतानेका पवित्र यश उन्हें प्राप्त हुआ।
अनासक्त होकर कर्म करनेसे आत्माको प्राप्त हुए अनन्त सुखके आगे उनका शरीर-कष्ट सर्वथा नगण्य था ।
कर्मके प्रतिफलकी इच्छा करना ही दुःखोंको निमन्त्रण देना है। यदि आपको सुखी होना हो तो कर्मके प्रतिफलकी इच्छा न कीजिये ।
स्वामी विवेकानंद के विचार/swami vivekanand ke vichar hindi mein
जिन्हें किसी प्रकारके प्रतिफलकी इच्छा नहीं, ऐसे लोगोंको अनेक कष्ट भोगते हुए हम देखते हैं। परंतु उनके वे कष्ट उन्हें प्राप्त होनेवाले सुखोंके सामने पासंगेके बराबर भी नहीं होते।
महात्मा ईसाने जीवनभर निःस्वार्थभावसे परोपकार किया और अन्तमें उन्हें फाँसीकी सजा मिली।
यह बात असत्य नहीं है। परंतु सोचना चाहिये कि अनासक्तिके बलपर उन्होंने साधारण विजय-सम्पादन नहीं किया था। करोड़ों लोगोंको मुक्तिका रास्ता बतानेका पवित्र यश उन्हें प्राप्त हुआ।
अनासक्त होकर कर्म करनेसे आत्माको प्राप्त हुए अनन्त सुखके आगे उनका शरीर-कष्ट सर्वथा नगण्य था ।
कर्मके प्रतिफलकी इच्छा करना ही दुःखोंको निमन्त्रण देना है। यदि आपको सुखी होना हो तो कर्मके प्रतिफलकी इच्छा न कीजिये ।
स्वामी विवेकानंद के विचार/swami vivekanand ke vichar hindi mein