F संत,सद्गुरु,सद्बुद्धि/adhyatmik gyan ki baten padhe - bhagwat kathanak
संत,सद्गुरु,सद्बुद्धि/adhyatmik gyan ki baten padhe

bhagwat katha sikhe

संत,सद्गुरु,सद्बुद्धि/adhyatmik gyan ki baten padhe

 संत,सद्गुरु,सद्बुद्धि/adhyatmik gyan ki baten padhe
 adhyatmik gyan ki baten padhe 
  •  संत, सद्गुरु, सद्बुद्धि  । 
 संत, सद्गुरु, सद्बुद्धि/adhyatmik gyan ki baten padhe
दुर्लभो मानुषो देहो देहिनां क्षणभङ्गुरः। 
तत्रापि दुर्लभं मन्ये वैकुण्ठप्रियदर्शनम् ॥ 
( श्रीमद्भा० ११ । २ । २९ )

जीवोंके लिये मनुष्य-शरीरका प्राप्त होना दुर्लभ है । यदि यह प्राप्त भी हो जाता है तो प्रतिक्षण मृत्युका भय सिरपर सवार रहता है, क्योंकि यह क्षणभङ्गुर है ।

इसलिये अनिश्चित मनुष्य-जीवनमें भगवान्के प्यारे और उनको प्यार करनेवाले भक्तजनोंका, संतोंका दर्शन तो और भी दुर्लभ है।

न विना ज्ञानविज्ञाने मोक्षस्थाधिगमो भवेत् । 
न विना गुरुसम्बन्धं ज्ञानस्याधिगमः स्मृतः ॥ 
गुरुः प्लावयिता तस्य ज्ञानं प्लब इहोच्यते । 
विज्ञाय कृतकृत्यस्तु तीर्णस्तदुभयं त्यजेत् ॥
( महा० शान्ति० ३२६ । २२-२३)

जैसे ज्ञान-विज्ञानके बिना मोक्ष नहीं हो सकता, उसी । प्रकार सद्गुरुसे सम्बन्ध हुए बिना ज्ञानकी प्राप्ति नहीं हो सकती ।
गुरु इस संसार-सागरसे पार उतारनेवाले हैं 
और उनका दिया हुआ ज्ञान नौकाके समान बताया गया है। मनुष्य उस ज्ञानको पाकर भवसागरसे पार और कृतकत्य हो जाता है, फिर उसे नौका और नाविक दोनोंकी ही अपेक्षा नहीं रहती।

तमःपरिगतं वेश्म यथा दीपेन दृश्यते । 
तथा बुद्धिप्रदीपेन शक्य आत्मा निरीक्षितुम् ॥
(महा० शान्ति० ३२६।४०) 
जिस प्रकार अन्धकारसे व्याप्त हुआ घर दीपकके प्रकाशसे स्पष्ट दीख पड़ता है, उसी तरह बुद्धिरूपी दीपककी सहायतासे अज्ञानसे आवृत आत्माका साक्षात्कार हो सकता है।

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