बहुत ही सुंदर प्रेरक प्रसंग- श्री कबीर दास जी dharmik prerak Prasang hindi mein

।।जय जय रघुवीर समर्थ।।
बहुत ही सुंदर प्रेरक प्रसंग- श्री कबीर दास जी
बहुत ही सुंदर प्रेरक प्रसंग- श्री कबीर दास जी dharmik prerak Prasang hindi mein
मो सम कौन कुटिल खल कामी।
जेहिं तनु दियौ ताहिं बिसरायौ, ऐसौ नमकहरामी॥
भरि भरि उदर विषय कों धावौं, जैसे सूकर ग्रामी।
हरिजन छांड़ि हरी-विमुखन की निसदिन करत गुलामी॥
पापी कौन बड़ो है मोतें, सब पतितन में नामी।
सूर, पतित कों ठौर कहां है, सुनिए श्रीपति स्वामी॥
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*राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम*
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एक बार श्री कबीरदास जी हरि भजन करते एक गली से निकल रहे थे। उनके आगे कुछ स्त्रियाँ जा रही थी। उनमें से एक स्त्री की शादी कहीं तय हुई होगी तो उसके ससुराल वालों ने शगुन में नथनी भेजी थी।

वह लडकी अपनी सहेलियों को बार-बार नथनी के बारे में बता रही थी कि नथनी ऐसी है वैसी है। ये खास उन्होंने मेरे लिए भेजी है। बार-बार बस नथनी की ही बात।

उनके पीछे चल रहे कबीर जी के कान में सारी बातें पड रही थी। तेजी से कदम बढ़ते कबीर जी उनके पास से निकले और कहा~

नथनी दीनी यार ने, तो चिंतन बारम्बार।
नाक दिनी करतार ने, उनको दिया बिसार।।

सोचो यदि नाक ही ना होती तो नथनी कहा पहनती! यही जीवन में हम भी करते हैं। भौतिक वस्तुओं का तो हमें ज्ञान रहता है परंतु जिस परमात्मा ने यह दुर्लभ मनुष्य देह दी और इस देह से संबंधित सारी वस्तुएं, सभी रिश्ते नाते दिए, उसी परमात्मा को याद करने के लिए हमारे पास समय नहीं होता।

सर्व भोगादि पदार्थ तो कुकर-सुकर, कुत्ते, बिल्ली, कीड़े मकोड़े आदि शरीर से भी प्राप्त होते हैं किन्तु "श्री सीताराम जी की भक्ति" केवल मनुष्य शरीर में ही प्राप्त होती है। अतः सदैव श्री सीताराम जी का भजन-सुमिरन करें। 

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