F भागवत पुराण में वर्णित राजा चित्रकेतु का पावन संवाद। bhagwat puran chitraketu shlok sanskrit in hindi - bhagwat kathanak
भागवत पुराण में वर्णित राजा चित्रकेतु का पावन संवाद। bhagwat puran chitraketu shlok sanskrit in hindi

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भागवत पुराण में वर्णित राजा चित्रकेतु का पावन संवाद। bhagwat puran chitraketu shlok sanskrit in hindi

भागवत पुराण में वर्णित राजा चित्रकेतु का पावन संवाद। bhagwat puran chitraketu shlok sanskrit in hindi
  •  राजा चित्रकेतु 

    भागवत पुराण में वर्णित राजा चित्रकेतु का पावन संवाद। bhagwat puran chitraketu shlok sanskrit in hindi
      भागवत पुराण में वर्णित राजा चित्रकेतु का पावन संवाद। 
    नैवात्मा न परश्चापि कर्ता स्यात् सुखदुःखयोः । 
    कर्तारं मन्यतेऽप्राज्ञ आत्मानं परमेव च ॥ 
    माता पार्वतीजी ! सुख और दुःखको देनेवाला न तो अपना आत्मा है और न कोई दूसरा । जो अज्ञानी हैं, वे ही अपनेको अथवा दूसरेको सुख-दुःखका कर्ता माना करते हैं।

    गुणप्रवाह एतस्मिन्कः शापः को न्वनुग्रहः । 
    कः स्वर्गो नरकः को वा किं सुखं दुःखमेव वा ॥ 
    यह जगत् सत्त्व, रज आदि गुणोंका स्वाभाविक प्रवाह है । इसमें क्या शाप, क्या अनुग्रह, क्या स्वर्ग, क्या नरक और क्या सुख, क्या दुःख ।

    एक: सृजति भूतानि भगवानात्ममायया । 
    एषां बन्धं च मोक्षं च सुखं दुःखं च निष्कलः ॥ 
    एकमात्र परिपूर्णतम भगवान् ही बिना किसीकी सहायताके अपनी आत्मस्वरूपिणी मायाके द्वारा समस्त प्राणियोंकी तथा उनके बन्धन, मोक्ष और सुख-दुःखकी रचना करते हैं।

    न तस्य कश्चिद्दयितः प्रतीपो न ज्ञातिबन्धुन परो न च स्वः । 
    समस्य सर्वत्र निरञ्जनस्य सुखे न रागः कुत एव रोषः ॥ 
    माताजी! भगवान् श्रीहरि सबमें सम और माया आदि मलसे रहित हैं। उनका कोई प्रियअप्रिय, जाति-बन्धु, अपना-पराया नहीं है ।

    तथापि तच्छक्तिविसर्ग एषां सुखाय दुःखाय हिताहिताय । 
    बन्धाय मोक्षाय च मृत्युजन्मनोः शरीरिणां संसृतयेऽवकल्पते ॥
    जब उनका सुखमें राग ही नहीं है, तब उनमें रागजन्य क्रोध तो हो ही कैसे सकता है । तथापि उनकी माया-शक्तिके कार्य पाप और पण ही प्राणियोंके सुख-दुःख, हित-अहित, बन्ध-मोक्ष, मत्य. जन्म और आवागमनके कारण बनते हैं।
    (श्रीमद्भा० ६ । १७ । १९-२३ ) 

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