हरिगुणानुवादकी महिमा-भागवत महापुराण संत विदुर के द्वारा/hari gunanuvad mahima bhagwat puran

  •  हरिगुणानुवादकी महिमा 
 हरिगुणानुवादकी महिमा-भागवत महापुराण संत विदुर के द्वारा/hari gunanuvad mahima bhagwat puran
भागवत महापुराण संत विदुर के द्वारा हरि गुणानुवाद की महिमा। 
कस्तृप्नुयात्तीर्थपदोऽभिधानात्स त्रेषु वः सूरिभिरोड्यमानात् । 
यः कर्णनाडों पुरुषस्य थातो भवप्रदां गेहरति छिनत्ति ॥
( श्रीमद्भा० ३ । ५ । ११) 
उन तीर्थपाद श्रीहरिके गुणानुवादसे तृप्त हो भी कौन सकता है। उनका तो नारदादि महात्मागण भी आप-जैसे साधुओंके समाजमें कीर्तन करते हैं तथा जब ये मनुष्योंके कर्णरन्ध्रों में प्रवेश करते हैं, तब उनकी संसार-चक्रमें डालनेवाली घर-गृहस्थीकी आसक्तिको काट डालते हैं ।

सा श्रद्दधानस्य विवर्धमाना विरक्तिमन्यत्र करोति पुंसः । 
हरेः पदानुस्मृतिनिवृतस्य समस्तदुःखात्ययमाशु धत्ते ॥
( श्रीमद्भा० ३ । ५ । १३ ) 
यह भगवत्कथाकी रुचि श्रद्धालु पुरुषके हृदयमें जब बढ़ने लगती है, तब अन्य विषयोंसे उसे विरक्त कर देती है । वह भगवच्चरणोंके निरन्तर चिन्तनसे आनन्दमग्न हो जाता है और उस पुरुषके सभी दुःखोंका तत्काल अन्त हो जाता है ।

तान्छोच्यशोच्यानविदोऽनुशोचे हरेः कथायां विमुखानधेन । 
क्षिणोति देवोऽनिमिषस्तु येषामायुर्वृथावादगतिस्मृतीनाम्
(श्रीमद्भा० ३। ५ । १४)
मुझे तो उन शोचनीयोंके भी शोचनीय अज्ञानी पुरुषोंके लिये निरन्तर खेद रहता है, जो अपने पिछले पापोंके कारण श्रीहरिकी कथाओंसे विमुख रहते हैं । हाय ! काल भगवान् उनके अमूल्य जीवनको काट रहे हैं और वे वाणी, देह तथा मनसे व्यर्थ वाद-विवाद, व्यर्थ चेष्टा और व्यर्थ चिन्तनमें लगे रहते हैं।

0/Post a Comment/Comments

आपको यह जानकारी कैसी लगी हमें जरूर बताएं ? आपकी टिप्पणियों से हमें प्रोत्साहन मिलता है |

Stay Conneted

(1) Facebook Page          (2) YouTube Channel        (3) Twitter Account   (4) Instagram Account

 

 



Hot Widget

 

( श्री राम देशिक प्रशिक्षण केंद्र )

भागवत कथा सीखने के लिए अभी आवेदन करें-


close