इन्द्रियनिग्रह- इन्द्रियोंको सावधानीके साथ अपने काबूमें रक्खो/indriyo ko vash me rakhe apne

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इन्द्रियनिग्रह- इन्द्रियोंको सावधानीके साथ अपने काबूमें रक्खो/indriyo ko vash me rakhe apne
इन्द्रियनिग्रह- इन्द्रियोंको सावधानीके साथ अपने काबूमें रक्खो
नाकृतात्मा कृतात्मानं जातु विद्याजनार्दनम् । 
आत्मनस्तु क्रियोपायो नान्यत्रेन्द्रियनिग्रहात् ॥ 
 कोई अजितेन्द्रिय पुरुष श्रीहषीकेश भगवान्को प्राप्त नहीं कर सकता । इसके सिवा उन्हें पानेका कोई और मार्ग नहीं है ।

इन्द्रियाणामुदीर्णानां कामत्यागोऽप्रमादतः । 
अप्रमादोऽविहिंसा च ज्ञानयोनिरसंशयम् ॥ 
इन्द्रियाँ बड़ी उन्मत्त हैं, इन्हें जीतनेका साधन सावधानीसे भोगोंको त्याग देना है। प्रमाद और हिंसासे दूर रहना-निःसंदेह ये ही ज्ञानके मुख्य कारण हैं।

इन्द्रियाणां यमे यत्तो भव राजन्नतन्द्रितः । 
एतज्ज्ञानं च पन्थाश्च  येन यान्ति मनीषिणः ॥
इन्द्रियोंको सावधानीके साथ अपने काबूमें रक्खो । वास्तवमें यही शान है और यही मार्ग है जिससे कि बुद्धिमान् लोग उस परमपदकी ओर बढ़ते हैं।
( महा० उद्योग० ६९ । १७-२०)

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