Prarthna Me Shakti
प्रार्थना में शक्ति है?
हृदय की पुकार, श्रद्धा के भाव की अभिव्यक्ति का नाम है-प्रार्थना। यह भक्त और भगवान के मध्य का सेतु है। प्रार्थना से आत्मा पुष्ट होती है; जैसे शरीर भोजन से।
यह व्यक्ति को बल, आध्यात्मिक शक्ति और स्फूर्ति प्रदान करती है। प्रार्थना सभी को करनी पड़ती है। चाहे वह योगी हो या भोगी, साधक हो, गुरु हो या शिष्य हो।
प्रार्थना अपने से अधिक सामर्थ्यवान से की जाती है। ईश्वर के समतुल्य समान अन्य कोई नहीं।
अतः सर्वशक्तिमान, सष्टि के रचयिता को शरीर के रोम-रोम से, हृदय की गहराइयों से की गई प्रार्थना सदैव फल प्रदान करती है।
गीता में कहा गया है कि अर्जुन भी प्रार्थना करता हुआ श्रीकृष्ण के चरणों में गिर पड़ा।
Prarthna Me Shakti
प्रार्थना व्यक्ति की ना को हां में बदल देती है। विपत्ति के समय प्रत्येक व्यक्ति की यही स्थिति होती है क्योंकि जीव अल्पज्ञ है और परमात्मा सर्वज्ञ है और अनंत।
जीवन की अंधेरी घडी में प्रार्थना ही आशा की किरण बनके पथ-प्रदर्शक बनती है।
हृदय से की गयी प्रार्थना ईश्वर तक पहुंच जाता है। जब प्रेमपर्वक और प्रार्थना ऊपर जाती है तब प्रभु की कृपा नीचे उतरती है।
इस ढंग की प्रार्थना हमारे प्रारब्ध को काटती है, कर्मफल का लेखा-जोखा रखने वाला भगवान सारे नियम तोड़कर प्रार्थी का भाग्य बदल देता है।
Prarthna Me Shakti
प्रार्थना में हमारी कल्पना शक्ति से भी अधिक कार्य करने की शक्ति है। सुदर-सुंदर वस्तुओं के लिए प्रभु की सेवा में प्रार्थना कर देना पर्याप्त नहीं है।
प्रार्थना के पश्चात् हाथ पर हाथ धरकर जो मूर्खता में बैठा रहता है, वह कुछ पाता नहीं है। प्रार्थना तो पुरुषार्थ की भूमिका है।
पुरुषार्थ, प्रार्थना, प्रतीक्षा तीनों साथ-साथ चलते हैं।
दूसरों को कष्ट मिले ऐसी अहंकार , घृणा, ईर्ष्या से भरी प्रार्थना तामसिक है।
सात्विक प्रार्थना वह है जो निष्काम है, जो हृदय में शांति की धारा और आत्मा में आनंद की वृद्धि करती है।
Prarthna Me Shakti