Narad Ji ka Purv Janm Ki Katha
नारद जी का पूर्व जन्म की कथा
अहं पुरातीत भवे भवं मुने
दास्यास्तु कस्याश्चन वेदवादिनाम् |
निरूपितो बालक एव योगिनां
शुश्रूषणे प्रावृषि निर्विविक्षताम् ||
व्यास जी मैं पूर्व जन्म एक दासी का पुत्र था मेरा जन्म हुआ और मेरा इतना बड़ा दुर्भाग्य मेरे छोटे में ही मेरे पिता जी का स्वर्गवास हो गया था मेरी मां मेरा लालन पालन करने लगी एक दिन मेरे गांव में कुछ वेदपाठी ब्राह्मण चातुर्मास व्यतीत करने आए और उनकी सेवा में मुझे नियुक्त कर दिया गया मैं मनोयोग से उनकी सेवा करने लगा उनके भोजन कर लेने के पश्चात उनकी पत्तल में जो कुछ भी झूठा प्रसाद बस जाता उसे मैं उनकी ही अनुमति से खा लेता। narad ji ki kahani
इससे मेरे समस्त पाप धुल गए उनके धर्म में मेरी रुचि हो गई वह ब्राह्मण प्रति दिन भगवान श्री कृष्ण की लीला का गान करते जिसे सुनने से रजोगुण और तमोगुण को नाश करने वाली भक्ति का मेरे हृदय में प्रादुर्भाव हो गया चातुर्मास व्यतीत कर जब वे ब्राह्मण जाने लगे तो मैं भी उनके पीछे पीछे चल दिया।
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नमो भगवते तुभ्यं वासुदेवाय धीमहि |
प्रद्युम्नायानिरुद्धाय नमः सकंर्षणाय च ||
चतुरब्यूह मन्त्र दिया और आशीर्वाद दिया तुम्हें अपने इस जीवन में भगवान का दर्शन अवश्य होगा मैं प्रतिदिन इस का जप करने लगा एक दिन सायं काल मेरी मां गाय दुहने के लिए निकली अनजान में उनका पैर एक सर्प पर पड़ गया जिससे उसने मां को डस लिया और मां का प्रांणात हो गया मैंने मां का अंत्य कर्म किया और|narad ji ki kahani
अनुग्रहं मन्यमानः प्रातिष्ठं दिशमुत्तराम् |
Narad Ji ka Purv Janm Ki Katha
नारद जी का पूर्व जन्म की कथा
उसी समय भगवान का असली विग्रह मेरे हृदय में प्रकट हो गया उसे देख में आनंदित हो गया एकाएक वह छवि अंतर्ध्यान हो गई उसे ना देख मैं व्याकुल हो गया पुनः दर्शन की इच्छा से ध्यान लगाया परंतु मैं उसे देख नहीं सका उसी समय आकाशवाणी हुई|अभिपक्वाकषायाणां दुर्दर्षोहं कुयोगिनाम् |
जिनकी विषय वासना अभी नृवित्ति नहीं हुई है ऐसे अधकचरे कुयोगियों को मेरा दर्शन हुआ ही नहीं करता तुम्हें जो एक बार दर्शन हुआ है वह मुझ में प्रेम उत्पन्न करने तथा ऋषि यों की वाणी सत्य करने के लिए हुआ था अब इस जन्म में मैं तुम्हें मेरा दर्शन नहीं होगा इस जन्म के पश्चात तुम्हारा जो अगला जन्म होगा उसमें तुम मेरे नित्य पार्षद होगी इस आकाशवाणी को सुन मैं निस्प्रिह हो कार्य कर काल की प्रतीक्षा करता हुआ पृथ्वी में भ्रमण करने लगा।narad muni stories
समय आने पर मेरा यह पंचभौतिक शरीर छूट गया और कल के अंत में जब भगवान नारायण के सोने की इच्छा हुई उस समय मैं ब्रह्मा जी के साथ उनकी स्वास् के द्वारा उनके हृदय में प्रविष्ट हो गया और 1000 चतुर्युगी के पश्चात पुनः सृष्टि हुई तो मैं ब्रह्मा जी के पुत्र के रूप में उत्पन्न हुआ भगवान नारायण ने मुझे यह वीणा दी जिसे बजाता हुआ मैं निरंतर उन्हीं के नाम का कीर्तन करता रहता हूं।व्यास जी देखा आपने भगवान की महिमा कहा तो मैं दासी पुत्र था और अब देवर्षि नारद हो गया इस प्रकार भगावन नाम की महिमा का वर्णन कर देवर्षि नारद वहां से चले गए ,,,
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