F सड्गं त्यजेत मिथुन /sangam tyajet mithun - bhagwat kathanak
सड्गं त्यजेत मिथुन /sangam tyajet mithun

bhagwat katha sikhe

सड्गं त्यजेत मिथुन /sangam tyajet mithun

सड्गं  त्यजेत  मिथुन /sangam tyajet mithun

 सड्गं  त्यजेत  मिथुन /sangam tyajet mithun


सड्गं  त्यजेत  मिथुनव्रतिनां  मुमुक्षु:
    सर्वात्मना न   विसृजेद्    बहिरिन्द्रियाणि  ।
एकश्चरन्     रहसि    चित्त मनन्त ईशे
     युञ्जीत  तद् व्रतिषु  साधुषु चेत्   प्रसंग: ।। ९/६/५१

इसलिए जो मोह से हट के मोक्ष प्राप्त करना चाहता है, उन्हें कभी भी भोगी प्राणियों का संग नहीं करना चाहिए | वह अकेला ही भ्रमण करें अपने इंद्रियों को बाहर ना भटकने दे अपने चित्त को भगवान के चरणों में लगा दें और यदि संग करने की इच्छा है तो भगवान के प्रेमी भक्तों का संग करें |

 सड्गं  त्यजेत  मिथुन /sangam tyajet mithun


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