Drishtant Mahasagar PDF
- राजकन्या राजद्वारे....
एक धार्मिक स्वभाव वाले राजा का राजभवन। राजा-रानी अपने परिजनों के साथ बैठे थे। उनके यहाँ एक बड़ी रूपवती एवं भाग्यशाली कन्या ने जन्म लिया था।
उसके जन्म-लग्न का हाल जानने के लिए ज्योतिषाचार्य को बुलवाया गया था।
ज्योतिषाचार्य आये। राजा ने उन्हें प्रणाम किया और सम्मानपूर्वक बिठाकर नवजात कन्या के बारे में प्रश्न किया। आचार्य जी ने कुण्डली बनाई। कन्या का हाथ देखा।
कुण्डली के ग्रह और हाथों की रेखायें देखकर आचार्य आश्चर्य चकित रह गए और गम्भार विचार में पड़ गये।
कन्या की हस्त-रेखायें और कण्डली के ग्रह बता रहे थे कि यह कन्या इतनी भाग्यशाली है कि जिसका इसके साथ विवाह होगा उसे किसी प्रकार का अभाव नहीं रहेगा और लम्बी आयु तक राजसुख भोगकर स्वर्ग जाय।
आचार्य को चिन्तामग्न देखा तो राजा ने पूछा-"आचार्य जी! आप किस दुविधा में पड़ गये?" ____ आचार्य ने छलपूर्वक कहा-“राजन्! यह कन्या राज-परिवार के लिए अशुभ दुर्भाग्य लेकर आई है।
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यदि आप चाहते हैं कि आपका अमंगल न - हो तो तुरन्त काष्ठ के बक्से में बंद करके दरिया में प्रवाहित कर दीजिए अन्यथा क्या होगा, मुझसे कहा नहीं जा रहा है।"
आचार्य के निर्देश के अनुसार राजा ने काष्ठ के बक्से में बन्द करके कन्या को दरिया में बहा दिया। थोड़ी देर बाद ही आचार्य जी वहाँ से उठकर चल दिये।
दरिया का बहाव जिधर था, उधर ही दरिया के किनारे उनका आवास था। वहाँ पहुँचकर वे काष्ठ के बक्से के आने की प्रतीक्षा करने लगे।
एक घटना बीच में ही और घट गई। दरिया के किनारे कोई राजकुमार अपने मन्त्रियों सहित शिकार खेलने आया हुआ था। वह कभी दृष्टिगत और कभी अदृश्य हो जाने वाले एक भालू का पीछा कर रहे थे।
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इसी बीच उन्होंने दरिया में बहते उस सन्दूक को देख लिया। सन्दूक के अन्दर एक सुन्दर राजकन्या लेटी हुई थी।
भालू ने भी उसे देख लिया था। भालू उस अबोध बच्ची का खून पीना चाहता था और शिकारी लोग उसे राजा के पास ले जाना चाहते थे।
मन्त्री और उनके सहायकों ने बक्से को किनारे से लगा दिया। बक्से के ऊपर पड़ी छोटी-सी कन्या ने कहा-“इस बक्से में एक सुन्दर युवती बन्द है। इसे ले जाकर अपने राजा को दे दो। साथ ही बक्से में भालू को बन्द करके बहा दो।"
dharmik drishtant / दृष्टान्त महासागर
इतना कहकर लड़की अदृश्य हो गई। राजकुमार के मंत्री और सहायकों ने बक्सा खोलकर उस सुन्दर युवती को निकाल लिया और किसी तरह उस भालू को बक्से में बन्द करके दरिया में बहा दिया।
युवती को साथ ले जाकर अपने राजा को सौंप दिया। आचार्य अपने निवास पर दरिया के किनारे बैठे बक्से के आने की प्रतीक्षा कर रहे थे।
समय अनुमान से अधिक होता जा रहा था। उन्हें एक-एक क्षण घंटा जैसा लग रहा था। बक्से को दरिया के किनारे लाने के लिए उन्होंने सहायकों का प्रबन्ध किया हुआ था।
जब बक्सा आता हुआ दिखाई दिया तो उन्होंने सहायकों को सावधान किया और बक्से को किनारे से लगवा लिया।
बक्से के किनारे पर आते ही उन्होंने अपने सहायकों और परिवार जनों से बक्से को एक निश्चित किये कमरे में पहुँचाने के लिए कहा।
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सब उस भारी बक्से को उठाकर उस कमरे में ले गये जो उसके लिए निश्चित किया गया था। आचार्य जी के निर्देश से सभी लोग कमरे से बाहर निकल गये।
आचार्य जी ने कमरे के दरवाजे और खिड़कियाँ अन्दर से बन्द कर लिये। उनकी प्रसन्नता का ठिकाना नहीं था। मन में लड्डू फूट रहे थे।
कमरा पूरी तरह बन्द होने पर उन्होंने चारों ओर देखा कि कहीं कोई देख तो नहीं रहा है। तसल्ली हो जाने पर ज्यों-त्यों करके बक्से को खोला।
ऊपर का ढक्कन उठाया ही था कि उनकी घिग्घी बँध गई। जीवित भालू उन पर आक्रमण कर रहा था और वह सहायता के लिए चिल्ला रहे थे।
पर कमरा चारों ओर से बन्द होने के कारण उनकी चीख को कोई सुन ही नहीं पा रहा था।, फिर क्या था, जो होना था वही हुआ।
भालू ने झपटा मारकर ब्राह्मण को कमरे के फर्श पर गिरा लिया और उनकी छाती फाड़कर खून पीने लगा। इधर भालू की क्षुधा शान्त हुई उधर ब्राह्मण का शरीर शान्त हो गया। परिणाम हुआ--
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राजकन्या राजद्वारे ब्राह्मणं खादति भल्लूकः।
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