कृच्छ्रेणा मेध्यमध्ये /krachhena medhya shloka vairagya

 कृच्छ्रेणा मेध्यमध्ये /krachhena medhya shloka vairagya

कृच्छ्रेणा मेध्यमध्ये /krachhena medhya shloka vairagya


कृच्छ्रेणामेध्यमध्ये नियमिततनुभिः स्थीयते गर्भवासे

कान्ताविश्लेषदुः खव्यतिकरविषमे यौवने चोपभगः।

नारीणामप्यवज्ञाविलसितनियतं वृद्धभावोऽप्यसाधुः

संसारेरेमनुष्यावदतयदि सुखंस्वल्पमप्यस्तिकिञ्चत्॥९४॥

गर्भवास में अपने शरीर को संकुचित कर अपवित्र मलमूत्र में किसी तरह रहना पड़ता है, यौवन में विषयसुख प्रिया के वियोग दुःख से अत्यन्त कष्टप्रद है, वृद्धावस्था भी इन्द्रियों के शिथिल हो जाने के कारण परिहास का कारण हो जाती है, तो हे मनुष्यो! आप ही कहो, क्या इस संसार में तनिक भी सुख है?

वैराग्य शतक के सभी श्लोकों की लिस्ट देखें नीचे दिये लिंक पर क्लिक  करके।
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 कृच्छ्रेणा मेध्यमध्ये /krachhena medhya shloka vairagya

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