Yagya Ka Mahatva / यज्ञ महिमा एवं महत्त्व
यज्ञ की महिमा अनन्त है। यज्ञ से आयु, आरोग्यता, तेजस्विता, विद्या, यश, पराक्रम, वंशवृद्धि, धन-धन्यादि, सभी प्रकार के राज-भोग, ऐश्वर्य, लौकिक एवं पारलौकिक वस्तुओं की प्राप्ति होती है।
प्राचीन काल से लेकर अबतक रुद्रयज्ञ, सूर्ययज्ञ, गणेशयज्ञ, लक्ष्मीयज्ञ, श्रीयज्ञ, लक्षचण्डी, भागवत यज्ञ, विष्णुयज्ञ, ग्रह-शांति यज्ञ, पुत्रेष्टि, शत्रुजय, राजसूय, ज्योतिष्टोम, अश्वमेध, वर्षायज्ञ, सोमयज्ञ, गायत्री यज्ञ इत्यादि अनेक प्रकार के यज्ञ होते चले आ रहे हैं।
Yagya Ka Mahatva / यज्ञ महिमा एवं महत्त्व
हमारा शास्त्र, इतिहास, यज्ञ के अनेक चमत्कारों से भरा पड़ा है। हिन्दू सनातन धर्म में जन्म से लेकर मृत्यु तक के सभी षोडश-संस्कार यज्ञ से ही प्रारम्भ होते हैं एवं यज्ञ में ही समाप्त हो जाते हैं।
यज्ञ से पवित्र एवं सर्वोत्तम कृत्य और कोई नहीं। अतः प्रत्येक सद्गृहस्थ को यज्ञ करना ही चाहिए। इस संसार में वे लोग बड़े पुण्यशाली एवं धर्मध्वज कहलाते हैं, जो महायज्ञों का आयोजन करते हैं एवं उनमें बहुविध सहयोग देते हैं।
भारत भूमि में यज्ञों का अत्यधिक सम्मान है। कहीं भी यज्ञ होता है तो राक्षस (अहंकार मनोवृति वाले) लोग उसमें विघ्न डालते हैं तथा सज्जन लोग मन-वचन-कर्म से, तन-मन और धन से यज्ञ कार्य को पूरा कराना अपना नैतिक दायित्व समझते हैं।
क्योंकि यज्ञ करने से व्यष्टि नहीं अपितु समष्टि का कल्याण होता है। अब इस बात को वैज्ञानिक मानने लगे हैं कि यज्ञ करने से वायुमण्डल एवं पर्यावरण में शुद्धता आती है।
संक्रामक रोग नष्ट होते हैं तथा समय पर वर्षा होती है। यज्ञ करने से सहबन्धुत्व की सद्भावना के साथ विश्व में शांति स्थापित होती है।
Yagya Ka Mahatva / यज्ञ महिमा एवं महत्त्व