F किं पाद्यं पदपङ्कजे /kim padya pad pankje shloka - bhagwat kathanak
किं पाद्यं पदपङ्कजे /kim padya pad pankje shloka

bhagwat katha sikhe

किं पाद्यं पदपङ्कजे /kim padya pad pankje shloka

किं पाद्यं पदपङ्कजे /kim padya pad pankje shloka

 किं पाद्यं पदपङ्कजे /kim padya pad pankje shloka

किं पाद्यं पदपङ्कजे /kim padya pad pankje shloka

किं पाद्यं पदपङ्कजे समुचितं यत्रोद्भवा जाह्नवी

किं वायँ मुनिपूजिते शिरसि ते भक्तयाहृतं साम्प्रतम्।

किं पुष्पं त्वयि शोभनं व्रजपते सत्पारिजातार्चिते

किं स्तोत्रं गुणसागरे त्वयि हरे केनार्चयेत्त्वां नरः॥१०२॥

जिन चरणोंसे पुण्यसलिला भागीरथीका उद्भव हुआ है, उनको पाद्यरूपसे क्या देना उचित है ? जिस आपके मस्तकका मुनिजनोंने पूजन किया है, अब उसपर भक्तिपूर्वक अर्घ्य किसका दें?और हे व्रजराज! कल्पतरुके सुन्दर पुष्पोंसे पूजित आपको पुष्पाञ्जलि किसकी दें? तथा हे गुणोंके सागर हरे! आपका स्तवन भी कैसे करें? तो फिर कहिये, मनुष्य आपका पूजन किस प्रकार करे! ॥ १०२॥ 

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 किं पाद्यं पदपङ्कजे /kim padya pad pankje shloka


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