कहानी अच्छी सी (चक्रवर्ती की पहचान)

bhagwat katha sikhe

कहानी अच्छी सी (चक्रवर्ती की पहचान)

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 कहानी अच्छी सी

कहानी अच्छी सी (चक्रवर्ती की पहचान)

(चक्रवर्ती की पहचान)

सामुद्रिक (हस्त-पाद रेखा) के क्षेत्र में एक अत्यन्त ज्ञानी पुरुष थे। उनका नाम था पुष्पमित्र। एक दिन जब वह कहीं चले जा रहे थे तो मार्ग पर उन्हें कुछ चरण-चिन्ह दिखाई पड़े।


उन चिन्हों को देखकर उन्होंने कहा-“ये जिस व्यक्ति के चरण-चिन्ह हैं, वह कोई साधारण व्यक्ति नहीं, चक्रवर्ती सम्राट् होगा।"


यह बात सुनकर उनके साथ चलने वाले व्यक्तियों को इस पर विश्वास नहीं हुआ। वे सोचने लगे-भला, जो व्यक्ति रास्ते में नंगे पैरों घूमा है, वह चक्रवर्ती कैसे हो सकता है।

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अपने मन की यह बात उन्होंने पुष्पमित्र से भी कह दी।

उनकी बात सुनकर पुष्पमित्र ने कहा-“यदि मेरी कही हुई यह बात त होगी तो फिर सामुद्रिक शास्त्र ही गलत हो जायेगा।"


वास्तविकता को जानने के लिए वह उन चरण-चिन्हों के पीछे-पाछ चलता गया। थोड़ा आगे जाने पर उसे एक भिखारी दिखा। भिखारी किसी पान में मग्न था। वह व्यक्ति थे भगवान महावीर।


जब महावीर जी का ध्यान टूटा तो सामुद्रिक ने पूछा-“भन्ते! आप अकेले ही हैं?" भगवान महावीर बोले-“इस संसार में जो भी आता है, अकेले ही आता है और अकेले ही जाता है। उसका साथ अन्य कोई नहीं देता।"


सामुद्रिक स्पष्ट करते हुए कहने लगे-“भन्ते! मैं अध्यात्म की नहीं, व्यवहार की दृष्टि से पूछ रहा हूँ।"

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भगवान बोले-“व्यवहार की भूमिका पर मैं अकेला नहीं हूँ।" सामुद्रिक ने टोका-“आप परिवार से अलग हैं, फिर अकेले ही तो हुए

भगवान ने कहा- “मेरा परिवार मेरे साथ है।" फिर प्रश्न हुआ-“परिवार कहाँ है?"


भगवान महावीर ने समझाया-“सुनो! निर्विकल्प ध्यान मेरे पिता, अहिंसा मेरी माता, ब्रह्मचर्य मेरा भाई, किसी में आसक्त न होने की प्रक्रिया मेरी बहन, शान्ति मेरी पत्नी, विवेक मेरा पुत्र, क्षमा मेरी पुत्री, सहन-शक्ति मेरा घर, और सत्य मेरा मित्र है।


यह पूरा परिवार बिना कहीं रुके निरन्तर मेरे साथ घूम रहा है, फिर मैं अकेला कहाँ हूँ?".

सामुद्रिक महाशय आश्चर्य के साथ बोले-“मुझे अत्यधिक आश्चर्य हो रहा है कि आपके शरीर के लक्षणों से स्पष्ट है कि आप चक्रवर्ती हैं पर आपकी चर्या (आचरण) से आप साधारण व्यक्ति ज्ञात हो रहे हैं!" महावीर जी ने प्रश्न किया-“बताओ तो, चक्रवर्ती कौन होता है?"

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उत्तर मिला-"जिसके पास पचास कोस में फैली हुई सेना की रक्षा करने के लिए महाछत्र होता है, जिसके आगे-आगे चक्र चलता है, जिसके पास ऐसा धर्म-रत्न होता है जिससे बोया हुआ बीज प्रायः शाम को पक जाता है।"


महावीर जी ने स्पष्ट किया-"तुम ऊपर देखो, नीचे देखो, चाहे तिरछे नेत्र करके देखो, धर्म का चक्र मेरे आगे चल रहा है। व्यवहार मेरा छत्र रत्न है जो पूरी मानव जाति की एक साथ रक्षा कर सकता है। योग मेरा धर्मरत्न है जिसमें जिस क्षण बीज बोया जाता है उसी क्षण वह पक जाता है।


तब इन लक्षणों से युक्त होकर भी मैं चक्रवर्ती नहीं हूँ? तुम सामुद्रिक शास्त्र के ज्ञाता हो। क्या उसमें धर्म-चक्रवर्ती का कोई स्थान नहीं है?"


पुष्पमित्र नतमस्तक हो गये। कहने लगे-“भन्ते! मेरा सन्देह मिट गया। अब मैं ज्ञान से स्वच्छ और स्वस्थ हो गया हूँ।"

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