रोचक और शिक्षाप्रद कहानियाँ (धर्म में धक्के, पाप में पुण्य)

 रोचक और शिक्षाप्रद कहानियाँ

रोचक और शिक्षाप्रद कहानियाँ (धर्म में धक्के, पाप में पुण्य)

(धर्म में धक्के, पाप में पुण्य)

एक बहेलिया था। पशु-पक्षियों को पकड़कर वह अपनी जीविका चलाता था। एक दिन उसने जंगल में जाल फैला दिया और यह सोचकर कि इसमें कोई पशु-पक्षी फंस जायेगा, अपने घर लौट गया।


अगले दिन प्रातःकाल वह जंगल में गया तो देखा कि फैले हुए जाल में दुर्भाग्यवश एक सिंह फँस गया है। बहेलिया सोचने लगा-यह सिंह मुझे खा लेगा।


अतः मुझे यहाँ से भाग जाना चाहिए। तभी सिंह ने व्याध से कहा-“रे मानव! तुम्हारा kalज्याण हो! यदि तुम मुझे इस जाल से मुक्त कर दोगे तो मैं तुम्हें नहीं मारूँगा।"


शिकारी ने सिंह को जाल से बाहर निकाल दिया। सिंह घबरा रहा था, अतः उसने कहा-“मानव! मुझे प्यास लगी है।

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नदी से जल लाकर मेरी प्यास मिटाओ।" व्याध पानी भर लाया। पानी पीकर सिंह शिकारी से बोला-“मेरी प्यास बझ गई।


अब मुझे भूख लगी है। अब मैं तुम्हें खाऊँगा।" शिकारी कहने लगा-“मैंने तुम्हारे साथ धर्म निभाया, पर तुम तो मुझे मारकर अधर्म कमा रहे हो।"


सिंह बोला-“अरे मूर्ख! धर्म करने से धक्के मिलते हैं और पाप करने से पुण्य होता है। तुम किसी से भी पूछकर देख सकते हो।"


मनुष्य ने नदी के पानी से पूछा तो नदी का पानी कहने लगा-“ऐसा ही होता है। मनुष्य मेरे अन्दर स्नान करते हैं, कपड़े धोते हैं और मल-मूत्र भी मेरे अंदर फेंककर चले जाते हैं।

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अत: धर्म से हानि और पाप से लाभ होता ही है।" | वह व्यक्ति वृक्ष के पास गया और अपनी व्यथा-कथा उसे सुनाकर पूछा-“क्या सिंह का आचरण उचित है?"


वृक्ष ने उत्तर दिया-“लोग हमारी छाया में विश्राम करते हैं, हमारे फल खाते हैं और कुल्हाड़ी से मार करके हमें सदा कष्ट देते रहते हैं। चाहे जहाँ से हमें काट देते हैं।


भाई, धर्म में दण्ड ओर पाप में भलाई होती ही है।" __ पास ही एक लोमड़ी बेर की झाड़ियों के पीछे बैठी इन सब बातों को सुन रही थी।


वह एकदम उस मनुष्य के पास आई और कहने लगी-“क्या बात है, मुझे भी बताओ।" भयभीत मनुष्य बोला-“आहा मौसी! तुम सही समय पर आ गई।

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मैंने इस सिंह के प्राणों की रक्षा की, पर यह मुझे ही खा जाना चाहता है।" यह कहकर उसने लोमड़ी को पूरी कहानी सुना दी।


लोमड़ी ने मनुष्य से कहा-“बात मेरी समझ में नहीं आ रही। अच्छा, तुम जाल को उसी तरह फैलाओ।"


मनुष्य ने जाल फैला दिया। लोमड़ी ने सिंह से कहा-“जंगल के राजा! इस आदमी की बात पर मुझे विश्वास नहीं हो रहा।


आप कैसे इस जाल में फंस गये, यह मैं अपनी आँखों से देखना चाहती हूँ।" सिंह उस घटना को दिखाने के लिए जाल में घुस गया। लोमड़ी बोली-“अब बार-बार कूदकर दिखाओ।"

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सिंह ने वैसा ही किया। निरन्तर कूदने से वह थक गया। जाल में दुःखी और असहाय हो गया और गिर पड़ा।


वह पुनः प्राणों की भीख माँगने लगा। लोमड़ी ने सिंह से कहा-“तुम ठीक ही कह रहे थे कि धर्म से धक्के और पाप से पुण्य प्राप्त होता है।"


शिकारी ने सिंह को जाल में बँधा देखा तो प्रसन्न होकर घर लौट गया।

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