Dharmik Stories in Hindi
(राख की रस्सी)
एक अमीर व्यक्ति था। चालाकी और हाजिरजवाबी में उसका जवाब नहीं था। इस मामले में कोई उसको जीत नहीं सकता था।
हर तरह सुख-चैन की जिन्दगी कट रही थी। पर उसका जवान बेटा उस जैसा चालाक और हाजिरजवाब नहीं था, इसलिए उसे हर समय चिन्ता सताती रहती थी। वह सोचता था-मेरे बाद इसका गुजारा कैसे होगा?
एक दिन उसने अपने बेटे को सौ भेड़ें सौंपते हुए कहा-“इन भेड़ों को शहर ले जाओ और इन पर गेहूँ से भरे सौ बोरे लादकर ले आओ।"
Dharmik Stories in Hindi
बेटा भेड़ों को लेकर शहर तो पहुँच गया पर सौ बोरा गेहूँ कहाँ से खरीदता? पैसे तो उसके पास थे ही नहीं।
इसी समस्या के सोच-विचार में वह एक सड़क के किनारे बैठ गया। कोई उपाय उसे सूझ नहीं रहा था, इसलिए परेशान भी हो रहा था।
तभी एक लड़की आई और उसने लड़के की परेशानी का कारण पूछा। लड़के ने अपनी समस्या बताई तो उसने कहा-"चिन्ता मत करो, मैं तुम्हारी समस्या का समाधान किये देती हूँ।"
Dharmik Stories in Hindi
लड़की ने भेड़ों के बाल उतारकर बाजार में बेच दिये और गेहूँ के सौ को खरीदकर उन भेड़ों पर लाद दिये।
अमीर का बेटा प्रसन्न होता हुआ लौट चला। वह सोच रहा था, मेरे पिता मुझसे बहुत प्रसन्न होंगे। पर जब उसने सारी बात पिता को सुनाई तो उन्हें कोई प्रसन्नता नहीं हुई।
दूसरे दिन उसने बेटे से कहा-“पिछले दिन भेड़ों के बाल उतारकर बेचना मुझे अच्छा नहीं लगा। अब तुम दुबारा भेड़ों को लेकर जाओ और जौ के सौ बोरे लादकर ले जाओ।"
अमीर का बेटा शहर जाकर पुन: उसी स्थान पर जा बैठा। वही लड़की फिर आई। लड़के ने अपनी समस्या पुनः उसके सामने रखी तो लड़की ने सभेड़ों के सींग काटकर बेच दिये और जौ के सौ बोरे भेड़ों पर लदवा दिये।
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ने भेड़ें और जौ के सौ बोरे पिता को सौंपकर उसने पूरी बात बयान कर दी। अमीर ने सोचा-“मेरी सारी चालाकी पछड़ रही है।
अतः उसने अपने का बेटे से कहा-“उस लड़की से कहो कि वह राख की चार गज लम्बी रस्सी के बनाकर दे।"
बेटा उस लड़की के पास गया और पिता की बात उससे कह दी। लड़की बोली-“उनसे कहो कि मैं राख की रस्सी बना तो दूंगी पर वह उन्हें अपने गले में पहननी होगी।"
अमीर को जब यह बात कही गई तो उसने सोचा-ऐसी रस्सी बन ही नहीं सकती। इसलिए उसने यह शर्त स्वीकार कर ली।
Dharmik Stories in Hindi
अगले दिन लड़की ने चार गज की रस्सी मँगाकर एक पत्थर की शिला पर रखी और जला दी। रस्सी जलकर राख हो गई पर रस्सी का आकार ज्यों का त्यों रहा।
वह पत्थर की उस शिला को अमीर के पास ले गई। उसने अमीर से कहा-“लीजिए मालिक, राख की रस्सी सेवा में प्रस्तुत है, अब आप इसे पहन लें।"
अमीर उस रस्सी को देखकर आश्चर्य में पड़ गया। उसने सोचा, इस रस्सी को पहना तो क्या, उठाया भी नहीं जा सकता। यह तो हाथ लगते ही टूट जायेगी।
लड़की की होशियारी के सामने अमीर की चालाकी और हाजिरजवाबी धरी-की-धरी रह गई। वह बहुत शर्मिन्दा हुआ।