Dharmik Stories in Hindi /पुरुष हो, पुरुषार्थ करो, उठो
Dharmik Stories in Hindi
पुरुष हो, पुरुषार्थ करो, उठो
एक राजा अपने मन्त्रि-मण्डल में से प्रधानमन्त्री चुनना चाहता था। इस पद के लिए तीन प्रत्याशी मैदान में थे। उनमें से एक को चुना जाना था।
राजा ने उनकी परख के लिए एक योजना बनाई। तीनों को अपने पास बुलाया। उनके आ जाने पर राजा ने एक कोठरी की ओर संकेत करते हुए कहा-
“यह कोठरी जो आपको दीख रही है, इसमें आप तीनों प्रत्याशी बन्द कर दिये जायेंगे। बाहर से ताला लगा दिया जायगा।
आप तीनों में से जो भी व्यक्ति अन्दर से ताला खोलकर बाहर आ जायेगा उसी को प्रधानमन्त्री बना दिया जायेगा।"
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तीनों मन्त्री उस कोठरी में बंद कर दिये गये। उनमें से एक ने सोचा-कोठरी के अन्दर रहते हुए बाहर का ताला खोलना सम्भव ही नहीं है।
अत: उसने चुपचाप बैठे रहना ही ठीक समझा और कोई भी प्रयत्न नहीं किया। दूसरा मन्त्री कुछ करने को उठा तो सही, पर तत्काल अपने स्थान पर बैठ गया। उसने सोचा-यह बेतुकी शर्त पूरी करना सम्भव ही नहीं है।
तीसरा मन्त्री सोचने लगा-यह शर्त बेतुकी तो है ही, पर इसमें कोई-न-कोई रहस्य अवश्य है। शर्त आखिर राजा ने रखी है।
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राजा राजा है और बुद्धिमान राजा है। वह उठा और दरवाजे को धक्का मार दिया। धक्का लगते ही दरवाजा खुल गया।
दरवाजा बंद था और उसमें ताला भी लगा था पर चाबी नहीं घुमाई गई थी। धक्का लगते ही ताला उसमें से निकल गया। मन्त्री बाहर आ गया। शर्त के अनुसार उसे प्रधानमन्त्री बना दिया गया।
जो समस्या के हल के लिए कोई प्रयन्त न करके हाथ पर हाथ धरे बैठा रहता है, निष्क्रिय रहता है, वह समस्या को हल नहीं कर सकता।
इसके विपरीत जो समस्या के हल के लिए पुरुषार्थ करता है, वह अपने लक्ष्य में सफल होकर मंजिल प्राप्त कर लेता है। अतः पुरुष हो, पुरुषार्थ करो, उठो। हृदय की सब दुर्बलता तजो॥
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