kahaniyan /वास्तविक अपराधी :

 kahaniyan

kahaniyan /वास्तविक अपराधी :

वास्तविक अपराधी : 

उचित दंड बात तब की है जब धारा नगरी में राजा भोज का शासन था। राज्य में एक निर्धन ब्राह्मण रहता था। 


परिवार में केवल तीन सदस्य थे-स्वयं वह ब्राह्मण, उसकी पत्नी और ब्राह्मण की माँ। आजीविका का कोई समुचित साधन नहीं था। जब ब्राह्मण कहीं से कुछ माँगकर ले आता तो सबको भोजन मिल जाता था।


एक दिन उस ब्राह्मण को भिक्षा में कहीं से कुछ नहीं मिला। वह खाली हाथ घर लौट आया। उसे भूख लग रही थी, अत: वह बहुत व्याकुल था। 


उसने अपनी पत्नी से कहा-“आज मुझे कहीं से कुछ नहीं मिला। इधर-उधर भटकने के कारण मैं बहुत थक गया हूँ और मुझे बड़ी जोर से भूख भी लगी है। जल्दी से कुछ खाने को दो।'

 kahaniyan


पत्नी ने यह बात सुनी तो क्रोध से वह आग-बबूला हो गई। वह बोली- “मेरे पास है ही क्या जो आपको खाने को दूं?"

ब्राह्मण बदहवास होकर बोला- “मैं जो कुछ भी लाता हूँ, सब तुम्हें सौंप देता हूँ। कुशल गृहिणी का यह आवश्यक कर्तव्य है कि वह घर में आई हुई सामग्री में से कुछ बचाकर रखे, ताकि कभी भूखा न रहना पड़े।"


ब्राह्मण का वाक्य पूरा होने से पहले ही पत्नी तड़ाक से बोली-“क्या कभी आप इतना अन्न लेकर आये हैं कि उसमें से कुछ बचाया जा सकता। 


सच तो यह है कि आज तक आप जो कुछ भी माँगकर लाये हैं उससे कभी भी हमें भरपेट भोजन नहीं मिला। मेरी समझ में नहीं आता कि जो लोग अपनी पत्नी को भरपेट भोजन नहीं दे सकते, वे विवाह ही क्यों करते हैं।"

 kahaniyan


होते-होते दोनों में कहा-सुनी बढ़ गई। नौबत यहाँ तक आ पहुँची कि क्रोध में आकर ब्राह्मण ने अपनी पत्नी को पीट डाला। अंतत: मामला राजा भोज के पास पहुँचना ही था, पहुँच गया।


राजा ने ब्राह्मण से पूछा- “क्या तुमने अपनी पत्नी को पीटा है?"

ब्राह्मण चुप खड़ा रहा। राजा ने कहा-“लगता है, बात सही है। बताओ, तुमने उसे क्यों पीटा?" .


ब्राह्मण बोला-“हाँ महाराज! मैंने अपनी पत्नी को पीटा। इसके लिए मुझे ग्लानि हो रही है। इसके लिए मुझे अत्यन्त पश्चात्ताप हो रहा है। आखिर मैं क्या करूँ? मैं अपने परिवार का भरण-पोषण नहीं कर पाता। उन्हें सन्तुष्ट नहीं रख पाता। 

 kahaniyan


इस अपराध के लिए जो भी दंड आप चाहें, मुझे दें। मैं दंड भोगने और आपका आदेश सुनने को आपके सामने तैयार खड़ा हूँ।"


राजा बहुत देर तक सोच में पड़े रहे, फिर फैसला सुनाते हुए बोले-“इस ब्राह्मण को एक हजार स्वर्ण-मुद्रायें दी जायें।"


राजा भोज का निर्णय सुनकर सभी उपस्थित जन आश्चर्य में पड़ गये। तभी राजा ने पुनः कहा-“दंड उसी को देना चाहिए जिसके द्वारा अपराध हो। 


इस ब्राह्मण को जिस अपराध के लिए दंड पाने को यहाँ लाया गया है, वह अपराध दरिद्रता ने किया है। अतः दंड दरिद्रता को ही मिलना चाहिए। इस ब्राह्मण का तो इस कार्य में कोई अपराध ही नहीं है, फिर उसे दंड कैसे दिया जा सकता है? 


अत: मैंने ब्राह्मण के शत्रु दरिद्रता को ही समाप्त कर दिया है। हाँ, यदि किसी सम्पन्न व्यक्ति ने यह अपराध किया होता तो मेरी ओर से उसे अवश्य ही कठोर दंड दिया जाता।"

  दृष्टान्त महासागर के सभी दृष्टांतो की लिस्ट देखें नीचे दिये लिंक पर क्लिक  करके। -clickdrishtant mahasagar list

https://www.bhagwatkathanak.in/p/blog-page_24.html

 kahaniyan

kahaniyan /वास्तविक अपराधी :

0/Post a Comment/Comments

आपको यह जानकारी कैसी लगी हमें जरूर बताएं ? आपकी टिप्पणियों से हमें प्रोत्साहन मिलता है |

Stay Conneted

(1) Facebook Page          (2) YouTube Channel        (3) Twitter Account   (4) Instagram Account

 

 



Hot Widget

 

( श्री राम देशिक प्रशिक्षण केंद्र )

भागवत कथा सीखने के लिए अभी आवेदन करें-


close