motivational kahani in hindi (जूती का सम्मान)

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(जूती का सम्मान)

अमीर खुसरो निजामुद्दीन औलिया के पक्के और सच्चे शिष्य थे। गुरु पर उनकी पूर्ण श्रद्धा थी। वह पहले मुलतान के एक अफसर के यहाँ नौकरी करते थे।


वह नौकरी उन्होनें किसी कारण छोड़ दी और अपना सारा सामान भैंसे पर लादकर गुरुजी से मिलने के लिए दिल्ली की ओर चल पड़े।


उसी बीच हजरत निजामुद्दीन के पास एक निर्धन व्यक्ति आया। उसने हजरत से कहा- “मालिक! मेरी लड़की का विवाह पक्का हो गया है।


यदि आप मेरी कुछ सहायता कर दें तो मैं आपका बड़ा अहसान मानूँगा।" हजरत बोले-“आज तो मेरे पास कुछ है नहीं, तुम कल आना।"

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दूसरे दिन वह आदमी आया तो हजरत ने कहा-“भाई! आज भी मुझे कहना पड़ रहा है कि अभी मेरे पास तुम्हें देने के लिए कुछ नहीं है। कल फिर आना, शायद कुछ मिल गया तो तुम्हें दे दूंगा।"


इस प्रकार तीन दिन निकल गये पर हजरत को कोई भेंट चढ़ाने नहीं आया। चौथे दिन भी जब वह वापस जाने लगा तो उन्होंने उसे अपनी जूती दे दी।


बेचारा गरीब व्यक्ति जूती को देखकर निराश तो हुआ पर हजरत साहब की दी हुई वस्तु के लिए वह इनकार भी नहीं कर सका। - वह उस जूती को ही लेकर जाने लगा।


तभी उसे लाव-लश्कर के साथ आते खुसरो दिखाई पड़े। अमीर खुसरो को ऐसा लगा जैसे आने वाले आदमी की ओर से गुरु की गन्ध आ रही है।

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पर उन्हें अपने गुरु निजामुद्दीन कहीं दिखाई नहीं पड़े। जब वह आदमी खुसरो के सामने होकर निकला तो उन्होंने समझा कि यह गन्ध इसी आदमी की ओर से आ रही है।


उन्होंने उसे रोका और पूछा-“तुम कहाँ से आ रहे हो भाई!" उस आदमी ने अपनी पूरी दासतान उन्हें सुना दी। खुसरो बोले-“क्या तुम इस जूती को बेच सकते हो?"


वह आदमी बोला-“इसे आप बिना पैसे दिये भी ले सकते हैं, क्योंकि यह मेरे लिए किसी काम की नहीं है।" किन्तु खुसरो ने सभी ऊँट और उन पर लदा सारा सामान उस आदमी को देकर जूती उससे खरीद ली।

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केवल अपने, अपने दो बच्चों और पत्नी के लिए एक ऊँट और उस पर लदा सामान अपने लिए रख लिया। वह आदमी उन्हें दुआएँ देता हुआ ऊँट और सामान लेकर चला गया।


खुसरो हजरत के पास पहुंचे। उनकी जूती उन्होंने उनके चरणों में रख दी। जब हजरत ने अपनी जूती को देखा तो उन्होंने खुसरो से पूछा- “इसके बदले तुमने क्या दिया है?"


या खुसरो ने जो कुछ दिया था, गिना दिया। हजरत ने कहा-“बहुत सस्ते में मिल गई तुम्हें यह जूती!"


फिर भी खुसरो का अपने प्रति इतना आत्मीय प्रेम अनुभव करके गुरु ने स्नेहपूर्ण शब्दों में कहा-“इस जूती की कब्र मेरी कब्र के साथ ही बनाना।" खुसरो ने हजरत साहब के सामने सिर झुका दिया।

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