motivational kahani in hindi /सन्त कष्टों को सहज ही सह लेते हैं

 motivational kahani in hindi

motivational kahani in hindi /सन्त कष्टों को सहज ही सह लेते हैं

सन्त कष्टों को सहज ही सह लेते हैं

एक थे शेख। उनका नाम था फरीद। शेख फरीद अत्यन्त सहज स्वभाव के और अत्यन्त विद्वान व्यक्ति थे। अध्यात्म शास्त्र के पहुँचे हुए सन्त थे। एक बार वे एक गाँव में ठहरे हुए थे।


वहाँ उनके दर्शन करने एवं अपनी जिज्ञासा शान्त करने के लिए अनेक व्यक्ति आया करते थे। उन्हीं दिनों एक व्यक्ति आया और उसने शेख साहब से पूछा-“महाराज! लोग कहते हैं कि जब इसामसीह को फाँसी पर लटकाया जा रहा था तो उनका चेहरा प्रसन्नता से चमक रहा था।


फाँसी पर चढ़ने का उन्हें तनिक भी दुख या भय नहीं था। उलटे उन्होंने भगवान से प्रार्थना की थी कि इन दण्ड देने वालों को क्षमा कर दें।"

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वह व्यक्ति थोड़ी देर रुका और फिर बोला-“यह भी सुना जाता है कि जब मन्सूर के हाथ-पैर काटे गये, आँखें फोड़ी गई तो उसने उफ् तक नहीं की थी और सब कुछ सहज भाव से हँसते हुए सह लिया था।


....पर मुझे लगता कि ऐसा होना असम्भव है और यह बात विश्वास कर लेने योग्य नहीं है शेख फरीद उस व्यक्ति की बात को शान्त भाव से सुनते रहे।


जब का कथन पूरा हो गया तो उन्होंने एक कच्चा नारियल उसे देकर कहा-“इस नारियल को फोड़ दे।"


व्यक्ति ने मन में अनुमान लगाया-शेख साहब को मेरी बात का उत्तर देने के लिए कुछ सूझ नहीं रहा है, इसलिए मेरा ध्यान इस ओर से हटाकर दूसरी ओर लगा देना चाहते हैं। अतः वह बोला-“महाराज! मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं मिला।"

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फरीद साहब सहज ढंग से बोले-“पहले इस नारियल को तोड़। लेकिन इस बात का ध्यान रखना कि इसकी गरी और खोल अलग-अलग हा जायें।"


_व्यक्ति एकदम बोला-“यह कैसे हो सकता है, महाराज! यह नारियल तो कच्चा है और इसकी गरी और खोल दोनों परस्पर जुड़े हुए हैं।


भला इस स्थिति में गरी खोल से अलग हो सकती है क्या?"


शेख साहब ने उसे दूसरा नारियल दिया जो सूखा था। नारियल देकर उससे कहा-“अब इसे फोड़कर इसकी गरी को अलग कर लो।" यह सुनते ही व्यक्ति ने नारियल फोड़कर गरी अलग करके उनके सामने रख दी।

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___फरीद साहब ने जिज्ञासु से पूछा- “इस नारियल की गरी खोल से अलग कैसे हो गई?" व्यक्ति ने उत्तर में कहा-“गरी सूखी थी इसलिए खोल से अलग थी, अतः यह निकल आयी।"


शेख साहब तनिक मुस्कराये, फिर बोले-“वत्स! यही तुम्हारे प्रश्न का उत्तर है। तुम लोगों का शरीर खोल से जुड़ा होता है।


संसार से चिपका रहता है। अतः जब शरीर को चोट लगती है तो उसकी अन्तरात्मा को भी पीड़ा पहुँचती है।


लेकिन ईसा और मन्सूर जैसे उच्च कोटि के सन्त अपने शरीर को उस खोल से अलग रखते हैं। इसलिए यातना मिलने पर न तो उन्हें कोई पीड़ा हुई और न यातना मिलने का क्लेश। पर वत्स! मुझे लगता है कि तू तो कच्चा नारियल है।


इसी कारण से तेरे मन में यह विचार उत्पन्न हुआ कि ईसा को फाँसी पर चढ़ते समय और मन्सूर को हाथ-पैर कटते और आँखें फोड़े जाते समय जो यातना दी गई उससे उन्हें कोई पीड़ा या मलाल नहीं हुआ, न तो यह सम्भव है और न विश्वास करने योग्य।"

  दृष्टान्त महासागर के सभी दृष्टांतो की लिस्ट देखें नीचे दिये लिंक पर क्लिक  करके। -clickdrishtant mahasagar list

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