prerak prasang of swami vivekananda in hindi (मानव-सेवा सच्ची पूजा)

 prerak prasang of swami vivekananda in hindi

prerak prasang of swami vivekananda in hindi (मानव-सेवा सच्ची पूजा)

(मानव-सेवा सच्ची पूजा) 

स्वामी विवेकानन्द जी अपने आश्रम में शान्तिपूर्वक ध्यानमग्न बैठे थे। तभी वहाँ एक नवयुवक आया और स्वामीजी के चरण स्पर्श करके शान्त होकर बैठ गया। 


स्वामी जी ने उसे आशीर्वाद दिया और स्नेह के साथ कहा-“वत्स! मुझे ऐसा लग रहा है कि तुम्हें कोई चिन्ता परेशान किये हुए है उसी में उलझे हुए हो।” 


नवयुवक बोला-“भगवन्! मेरी परेशानी की समस्या बड़ी कठिन है। उसी के समाधान के लिए आपके श्रीचरणों में उपस्थित हुआ हूँ।"


विवेकानन्द ने कहा- “बताओ, तुम्हारी वह समस्या कौन सी है? मैं अवश्य ही उस जटिल समस्या से मुक्ति प्राप्त करने का कारगर सफल उपाय बताकर तुम्हारा समाधान कर दूंगा।"


नवयुवक ने अपनी समस्या बताई- “स्वामी जी! मैंने अनेक धर्मग्रन्थ पढ़े हैं। कई धर्माचार्यों के पंथों से जुड़ा हूँ। पर आज तक मुझे यह ज्ञात नहीं हो सका है कि वास्तविक सत्य क्या है? 

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मैं नहीं जानता कि पूजा क्या है और भगवान के दर्शन किस प्रकार हो सकते हैं? साक्षात्कार संभव भी है या नहीं।"


नवयुवक के कथन से विवेकानन्द जी अत्यन्त प्रसन्न हुए। उन्होंने स्नेह के साथ नवयुवक से पूछा-"वत्स! उस परमपिता परमात्मा से साक्षात्कार हो जाने के लिए अब तक क्या-क्या उपाय किये हैं?"


नवयुवक ने बताया-“वन्दनीय स्वामिन्! प्रभु का ध्यान करने के लिए मैं अपने कमरे का द्वार बंद करके समाधि लगाकर बैठता हूँ पर मेरा मन प्रभु के ध्यान में स्थिर नहीं रहता। वह इधर-उधर भटकता रहता है। 


कृपया कोई ऐसा सरल उपाय सुझाइए जिससे मेरा ध्यान प्रभु-चरणों में निरबाध-रूप से जुड़ा रहे; वहाँ स्थिर हो जाये।" _ विवेकानन्द जी ने मुस्कराकर स्नेह-सनी-वाणी में कहा-“दरवाजा बंद करने की कोई आवश्यकता नहीं, उसे खोलने की जरूरत है। 

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दरवाजे से निकलकर संसार के दीन-दुखी, दरिद्र और असहाय रोगियों के पास जाओ। लाखों लोग तुम्हारी सहायता पाने की प्रतीक्षा कर रहे हैं।


जाति, धर्म, नस्ल और पंथ के भेद-भाव को मिटा दो और नि:स्वार्थ रूप से तन-मन-धन से मानव-सेवा में लग जाओ। भूखों को भोजन दो और प्यासों को पानी पिलाओ। जितना बन सके, मन, वचन और कर्म (मनसा, वाचा, कर्मण) से दूसरों का भला करने में व्यस्त हो जाओ।


याद रखो, दूसरों की सेवा, दूसरों पर दया, दूसरों के साथ सहानुभूति एवं दरिद्र-नारायण की सेवा ही प्रभु की सच्ची भक्ति और पूजा है। दूसरों का भला करने से निस्सन्देह तुम्हारे अशान्त और चंचल मन को शान्ति प्राप्त होगी और साथ ही होगी प्रभु-दर्शन की सुखद अनुभूति।


मानव की सेवा ही आत्मशान्ति कर कल्याण करेगी और यही मुक्ति तक पहुँचायेगी। जो प्राणी मनुष्य का तन पाकर दूसरों की भलाई और उनकी सेवा में अपना सर्वस्व निछावर कर देते हैं वे संसार में महान एवं पूज्य बनकर अमर हो जाते हैं।”


विवेकानन्द जी की स्नेहिल वाणी से यह सन्देश सुनकर नवयुवक के मन एवं आँखों से अज्ञान का अन्धकार दूर हो गया और उसके ज्ञान-चक्षु खुल गये।


वह उठा, स्वामी जी के चरणों का मस्तक से स्पर्श किया और उत्साहपूर्वक मानव-सेवा के अभियान पर निकल पड़ा।

  दृष्टान्त महासागर के सभी दृष्टांतो की लिस्ट देखें नीचे दिये लिंक पर क्लिक  करके। -clickdrishtant mahasagar list

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