kahaniyan kahaniyan
(असली-नकली)
एक था साहूकार। उसने काम-काज के लिए एक नौकर रखा हुआ था। साहूकार नौकर से बहुत अधिक काम लेता था।
परिणाम यह हुआ कि जब उससे सहन नहीं हुआ तो एक दिन साहूकार के घर से भाग गया। साहूकार उसे खोजकर ले आने के लिए निकला।
बहुत भाग-दौड़ करने के बाद वहे मिला। साहूकार ने उसे दो-चार चाँटे लगाये और घर ले आया। अब वह उस नौकर से पहले से भी अधिक काम लेने लगा। नौकर भी सब काम खुशी-खुशी करता रहा।
कुछ महीने बीत गये। एक दिन उस साहूकार के दरवाजे पर एक लड़का आया। उसने साहूकार के पैर पकड़कर विनयपूर्वक निवेदन किया-“मालिक! मुझे क्षमा कर दीजिए।
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मैं आपको बिना बताये आपके घर से काम छोड़कर भाग गया, यह मेरा बहुत बड़ा अपराध है। आप मुझे फिर से नौकरी पर रख लीजिए, अब ऐसा अपराध मैं कभी नहीं करूँगा।"
साहूकार बड़े असमंजस में पड़ गया। दोनों नौकरों की कद-काठी एवं शक्ल-सूरत एक जैसी थी। साहूकार की समझ में नहीं आ रहा था कि उसका असली नौकर कौन है?
वह जिसे वह पकड़कर लाया था या यह जो सामने खड़ा है। बहुत गौर करके देखने पर साहूकार समझ गया कि जिस नौकर को वह पकड़कर लाया था वह उसका अपना असली नौकर नहीं है।
साहूकार ने नकली नौकर से पूछा- “मेरा असली नौकर तो यह है जो तुम्हारे सामने खड़ा है, फिर तुम कौन हो?"
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वह बोला-“आपका नौकर।"
साहूकार को उस पर गुस्सा आ गया। उसने सख्ती से पूछा- “सच बताओ, तुम कौन हो?"
वह फिर बोला-“आपका नौकर हूँ और मेरा नाम लुकमान है।"
साहूकार को यह समझते देर नहीं लगी कि मेरे सामने नौकर के रूप में हकीम लुकमान साहब खड़े हैं। उसने हकीम साहब के पैर पकड़ लिये और शर्मिन्दा होते हुए कहा-“मुझे क्षमा कर दीजिए, मैं आपको पहचान नहीं पाया।"
लुकमान साहब बोले-“क्षमा तो मैं कर दूंगा। पर इसके लिए मेरी एक शर्त है और वह शर्त यह है कि आज से तुम किसी नौकर को सताओगे नहीं।"
साहूकार ने शर्त को स्वीकार करते हुए कहा-“ठीक है, लेकिन आप यह तो बताइए कि आप इतने दिन तक यहाँ इतने कष्ट क्यों सहते रहे? चाँटे खाने के बाद भी आपने अपना नाम नहीं बताया।"
हकीम लुकमान साहब बोले-“साहूकार साहब, इसमें मेरा लाभ था। मैंने यहाँ रहकर यह अनुभव प्राप्त किया कि नौकर के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए।
मेरे घर में भी एक नौकर है। मैं उससे कई प्रकार के उलटे-सीधे काम लेता रहता हूँ। मुझे पता ही नहीं चलता कि उसे कौन-सा काम अच्छा लगता है और कौन-सा बुरा। अब इसका ज्ञान हो गया है।"