श्रीमद्भागवत के विविध सिद्ध मंत्रों का प्रयोग /bhagwat sidha mantra

 विविध संकल्प सिद्धि के लिए

श्रीमद्भागवत के विविध सिद्ध मंत्रों का प्रयोग

श्रीमद्भागवत के विविध सिद्ध मंत्रों का प्रयोग /bhagwat sidha mantra


संकट निवृत्ति के लिए

कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने ।

प्रणतक्लेशनाशाय गोविन्दाय नमो नमः ।।


लक्ष्मी प्राप्ति के लिए

तत आरम्भ नन्दस्य ब्रजः सर्वसमृद्धिमान् ।

हरेर्निवासात्मगुणैः रमाक्रीडमभुन्नृप ।।


वर प्राप्ति के लिये

कात्यायनि महामाये महायोगिन्यधीश्वरि ।

नन्दगोपसुतं देवि पतिं मे कुरु ते नमः ।।

अथवा

नमस्ये त्वाम्बिकेऽभीक्ष्णं स्वसन्तानयुतां शिवाम् ।

भूयात् पति में भगवान् कृष्णस्तदनुमोदताम् ।।


पुरुष विवाह के लिए

नरेन्द्र ताञ्चा कविभिर्विगर्हिता,

राजन्यबन्धोर्निजधर्मवर्तिनः ।

तथापि याचे तव सौहृदेच्छया,

कन्यां त्वदीयांन हि शुल्कदा वयम् ।।

अथवा

भगवान भीष्मकसुतामेवं निर्जित्य भुमियान् ।

पुरमानीय विधिवदुपयेमे कृरुद्वह ।।


सभी प्रकार की कामनाओं के लिए

अकामः सर्वकामो वा मोक्षकाम उदारधीः ।

तीव्रण भक्तियोगेन यजेत पुरुषं परम् ।।


संकल्प सिद्धि के लिये

अवतारो हरेोऽयं कीर्तयेदन्वहं नरः ।

संकल्पास्तस्य सिद्धयन्ति स याति परमां गतिम् ।।


सर्प भय निवृत्ति के लिए

य एतत् संस्मरेन्मय॑स्तुभ्यं मदनुशासनम् ।

कीर्तयन्नुभयोः सन्ध्योर्न युष्मद् भयमाप्नुयात् ।।


पुत्र प्राप्ति के लिए

देवकिसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते ।

देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ।।


विद्या प्राप्ति के लिए

मा शारदे नमस्तुभ्यं काश्मीरपुरवासिनी ।

त्वामहं प्रार्थये नित्यं विद्या दानञ्च देहि मे ।।

अथवा

श्रीं ह्रीं सरस्वत्यै स्वाहा ।


शीघ्र विवाह संस्कार के लिये

पत्नी मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम् ।

तारिणीं दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम् ।।


रोग निवृत्ति के लिए

धन्वन्तरिश्च भगवान् स्वयमेव कीर्ति-

र्नाम्ना नृणां पुरुरुजां रुज आशु हन्ति ।

यज्ञे च भगममृतायुरवावरुन्ध,

आयुश्च वेदमनुशास्त्यवतीर्य लोके ।।

अथवा

धन्वन्तरिदैर्घतम आयुर्वेदप्रवर्तकः ।

यज्ञभुक् वासुदेवांशः स्मृतिमात्रार्तिनाशनः ।।


सर्वत्र विजय प्राप्ति के लिए

विजयाभिमुखो राजा श्रुत्वैतदभियाति यान् ।

बल तस्मै हरन्त्यग्रे राजानः पृथवे यथा ।।


निःसन्तान को सन्तान प्राप्ति के लिए

तथा निर्धन को धन प्राप्ति के लिये

त्रिकृत्वः इदमाकर्ण्य नरो नार्यथवाऽऽदृता ।

अप्रजः सुप्रजतमो निर्धनो धनवत्तमः ।।


मोक्ष प्राप्ति के लिए

योगीन्द्राय नमस्तस्मै शुकाय ब्रह्मरूपिणे ।

संसारसर्पदष्टं यो विष्णुरातममूमुचत् ।।


भगवत्प्राप्ति के लिए

हा नाथ रमण प्रेष्ठ क्वासि-क्वासि महाभुज ।

दास्यास्ते कृपणाया मे सखे दर्शय सन्निधिम् ।।

अथवा

तासामाविरभूच्छौरिः स्मयमानमुखाम्बुजः ।

पीताम्बरधरः स्रग्वी साक्षान्मन्मथमन्मथ ।।

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