दरशन दो घनश्याम नाथ मोरी darshan do ghanshyam nath mori
दरशन दो घनश्याम नाथ मोरी अँखिया प्यासी रे।
मन-मन्दिर की ज्योति जगा दो घट घट वासी रे।।
मन्दिर-मन्दिर मूरति तेरी, फिर भी न देखी सूरत तेरी।
युग बीते ना आई मिलन की पूरनमासी रे।।
द्वार दया का जब तू खोले, पंचम स्वर मे गूंगा बोले।
अन्धा देखे लँगड़ा चलकर पहुँचे काशी रे।।
पानी पीकर प्यास बुझाऊँ नैनन को कैसे समझाऊँ।
आँख मिचौनी छोड़ दे अब तो मनके वासी रे।।