जय श्री रूप महारस-सागर। jay shri rup maharas sagar
जय श्री रूप महारस-सागर।
दर्शन परशन वचन रसायन आनन्दह के सागर ।।
अति गम्भीर धीर करुणामय, प्रेमभक्ति के आगर।
उज्ज्वल-प्रेम महामणि प्रकटित देश गौड़ वैरागर।।
सद्गुण मण्डित पण्डित-रञ्जन वृन्दावन निज नागर।
कीरति विमल सुयश तेंहि 'माधो' सतत् रहहु हिये जागर।।

