पिया तेरी चितवन में कछु टोना। piya teri chitvan me kachhu tona
पिया तेरी चितवन में कछु टोना।
तन मन बिसरि गयो तबही ते देख्यो श्याम सलोना।।
दिंग रहिवे ] होत विकल मन भावत नाहिं भौना।
लोक चबाव करत घर-घर में धरि रहिये जिये मौना।।
छूटी लोक-लाज गृह-तन की और कहा अब होना।
'रसिक' प्रीतम की बानिक निरखत भूल गई गृह गौना।।