भारतीय संतो के अमूल्य वचन एवं सुविचार
ब्रह्मलीन परम श्रद्धेय श्रीजयदयालजी गोयन्दकाके अमृतोपदेश
गङ्गा-यमुना आदि तीर्थ तो स्नान-पान आदिसे पवित्र करते हैं; किंतु भगवान्के भक्तोंका तो दर्शन और स्मरण करनेसे ही मनुष्य तुरंत पवित्र हो जाता है; फिर भाषण और स्पर्शकी तो बात ही क्या है ! तीर्थोंमें तो लोगोंको जाना पड़ता है और जाकर स्नानादि करके वे पवित्र होते हैं; किंतु महात्माजन तो श्रद्धा-भक्ति होनेसे स्वयं घरपर आकर पवित्र कर देते हैं। , -.श्रद्धापूर्वक किया हुआ महापुरुषोंका सङ्ग भजन और ध्यानसे भी बढ़कर है
लोगोंसे छोटे-छोटे जीवोंकी बहुत हिंसा होती है। हमें चलने, हाथ धोने, कुल्ला करने तथा मल- -मूत्रका त्याग करनेमें इस बातका ध्यान रखना चाहिये।
हम इन जीवोंके जीवनका कुछ मूल्य नहीं समझते, किंतु स्मरण रखना चाहिये कि इस उपेक्षाके कारण बदलेमें हमें भी ऐसी ही निर्दयताका शिकार होना पड़ेगा।
जो मनुष्य जीवोंकी हिंसाका कानून बनाता है, उसे तरह-तरहके कष्ट उठाने पड़ेंगे। यदि कोई पुरुष कुत्तेको रोटी देना बंद करेगा तो उसे भी कुत्ता बनकर भूखों मरना पड़ेगा।
यदि किसीने कुत्तोंको मारनेका कानून बनाया तो उसे भी कुत्ता बनकर निर्दयतापूर्वक मृत्युका सामना करना पड़ेगा। कसाइयोंकी तो बड़ी ही दुर्दशा होगी। धन्य है उन राजाओंको, जिनके राज्यमें हिंसा नहीं थी।