ब्रह्मलीन परम श्रद्धेय श्रीजयदयालजी गोयन्दकाके अमृतोपदेश
उद्धारका अर्थ क्या है? उन्नति। रुपये कमाना उन्नति नहीं है। संतान-वृद्धि भी उन्नति नहीं है। यह सब तो यहीं धरे रहेंगे। इनका मोह त्यागकर आत्मोद्धारके अति विलक्षण मार्गपर आगे बढ़िये। समयको व्यर्थ न खोइये।
परम दयालु परमात्माके कानूनके अनुसार जो अपराधी अपनी भूलको सच्चे दिलसे स्वीकार करता हुआ भविष्यमें फिर अपराध न करनेकी प्रतिज्ञा करता है और सच्चे हृदयसे ईश्वरके शरण होकर सर्वस्वसहित अपनेको उनके चरणों में अर्पण कर देता है एवं ईश्वरकी कड़ी-से-कड़ी आज्ञाको, उनके भयानक-से-भयानक विधानको, उनके प्रत्येक न्यायको सानन्द स्वीकार करता तथा उसे पुरस्कार समझता है, साथ ही अपने किये हुए अपराधोंके लिये क्षमा नहीं चाहकर दण्ड ग्रहण करनेमें खुश होता है, ऐसे सरल भावसे सर्वस्व अर्पण करनेवाले शरणागत भक्तको भगवान् अपराधोंसे मुक्त करके अभय कर देते हैं।