भारतीय महापुरुषों के अनमोल विचार
ब्रह्मलीन परम श्रद्धेय श्रीजयदयालजी गोयन्दकाके अमृतोपदेश
ऐसे सुर-दुर्लभ मनुष्य-जन्मको पाकर भी जो लोग ताश-चौपड़ खेलते, गाँजा- भाँग आदि नशा करते और व्यर्थका बकवाद तथा लोक-निन्दा करते रहते हैं, वे अपना अमूल्य समय ही व्यर्थ नहीं बिताते; बल्कि मरकर तिर्यग्योनि अथवा इससे भी नीच गतिको प्राप्त होते हैं।
परंतु बुद्धिमान् पुरुष, जो जीवनकी अमूल्य घड़ियोंका महत्त्व समझकर साधनमें तत्पर हो जाते हैं, बहुत शीघ्र अपना कल्याण कर सकते हैं।
अतः जिज्ञासुओंको उचित है कि वे समयके सदुपयोग और सुधारके लिये विशेषरूपसे दत्तचित्त होकर साधनको परिपक्व बनानेमें तत्पर हो जायें।