भक्ति सर्वश्रेष्ठ है
भक्ति सर्वश्रेष्ठ है-'भक्तिरेव गरीयसी' (नारद-भक्तिसूत्र ८१)। प्रेमका नाम भक्ति है- 'पन्नगारि सुनु प्रेम सम भजन न दूसर आन'। प्रेम है-भगवान् और उनके गुण, लीला, चरित्र आदि अच्छे लगें। जैसे प्यास लगनेपर जलकी याद आती है, जल अच्छा लगता है, ऐसे भगवान् अच्छे लगें।
भक्तिसे भगवान् वशमें हो जाते हैं। मुक्ति तो पूतनाको भी मिल गयी! मुक्ति तो भगवान्की चरण-रजमें है। भक्ति बड़ी सुगम है। भगवान् प्यारे लगें, मीठे लगें—यह भक्ति है।